ब्रह्मपुत्र का सिन्दूरी जल
और..
भोर की पहली किरण
पुल से गुजरते हुए
एक तैल चित्र सा दृश्य
अक्सर दृग पटल पर
उभर आता है
निरभ्र गगन के कैनवास पर
इन्द्रधनुष सा...
कुछ नाविक जाल लिए
कुछ मछली के ढेर लिए
घर से आते या घर जाते
ना जाने कौन से
सम्मोहन में बंधे ..
हिमालय श्रृंखला की गोद में
बसे इस अँचल में
एक बार का गया कोई
वापस अपने देस नहीं लौटता..
भूला-भटका यदि कोई
लौट भी आता है तो...
मेरी तरह स्मृति के गलियारों में
भटकता फिरता है
कामरूप के
काले जादू में बंधा
उस नाव और नाविक सा..
"जा रहा है कि आ रहा है" के
भंवर जाल का बोध कराता
जिसमें...
उलझ कर रह जाता है मन
दृष्टिभ्रम सदृश ..
***
आह...
जवाब देंहटाएंमन में बसी सुंदर, हमेशा ताजा रहने वाली याद और ये दृष्टिभ्रम।
सुंदर अति सुंदर लिखा है।
पधारें नई रचना पर 👉 आत्मनिर्भर
बहुत लंबे समय के बाद ब्लॉग जगत में आपकी उपस्थिति सुखद है । आभार आपका सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए...'आत्म निर्भर'के आमन्त्रण के लिए तहेदिल से आभार ।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (23-09-2020) को "निर्दोष से प्रसून भी, डरे हुए हैं आज" (चर्चा अंक-3833) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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सादर आभार सर चर्चा मंच पर रचना साझा करने हेतु.
हटाएंवाह मीना जी आपकी भाषा शैली मुग्ध ही नहीं करती बांध लेती है मुझे ठीक कामरूप के काले जादू जैसे।
जवाब देंहटाएंअभिनव सृजन मन की परतों से झांकता सा।
अभिभूत हूँ आपकी स्नेहसिक्त सराहना पाकर...असीम आभार कुसुम जी 🙏🙏
हटाएंहिमालय श्रृंखला की गोद में
जवाब देंहटाएंबसे इस अँचल में
एक बार का गया कोई
वापस अपने देस नहीं लौटता..
भूला-भटका यदि कोई
लौट भी आता है तो...
मेरी तरह स्मृति के गलियारों में
भटकता फिरता है
कामरूप के
काले जादू में बंधा
वाह!!!
बहुत ही सुन्दर.. मनभावनी कृति।
आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ.. बहुत बहुत आभार सुधा जी ःः
हटाएंशब्दों के आपने बेहतरीन चित्र खींचा है, मैम। सुन्दर।
जवाब देंहटाएंसराहनीय प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार विकास जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर 🌻
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार शिवम् जी ।
हटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार सर .
हटाएंसुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार अनीता जी ।
हटाएंबहुत सुंदर रचना, मीना दी।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार ज्योति जी ।
हटाएंभूला-भटका यदि कोई
जवाब देंहटाएंलौट भी आता है तो...
मेरी तरह स्मृति के गलियारों में
भटकता फिरता है
कामरूप के
काले जादू में बंधा
बहुत खूब,आपकी लेखन शैली में भी कुछ कम जादूगरी नहीं है,सादर नमन आपको
सादर अभिवादन कामिनी जी ! सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ.. बहुत बहुत आभार आपका ..,
हटाएंबहुत ही सुंदर सराहना से परे दी लाजवाब बिंब 👌
जवाब देंहटाएंसराहनीय प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार अनीता . सस्नेह..
हटाएंआदरणीया मीना भारद्वाज जी, बहुत अच्छी रचना है। सचमुच यहाँ गया कोई भी यहाँ से वापस नहीं लौटता!
जवाब देंहटाएंहिमालय श्रृंखला की गोद में
बसे इस अँचल में
एक बार का गया कोई
वापस अपने देस नहीं लौटता..
सुंदर अभिव्यक्ति!--ब्रजेन्द्रनाथ
आपकी अनमोल प्रतिक्रिया से रचना का मान बढ़ा आदरणीय सर! बहुत बहुत आभार उत्साहवर्धन हेतु 🙏🙏
हटाएंकामरूप के जादू का नाम ही सुना है....
जवाब देंहटाएंरचना की कुछ पंक्तियाँ सचमुच जादुई हैं -
"जा रहा है कि आ रहा है" के
भंवर जाल का बोध कराता
जिसमें...
उलझ कर रह जाता है मन
दृष्टिभ्रम सदृश ..
रचना आपको अच्छी लगी..लेखन सफल हुआ मीना जी!बहुत बहुत आभार आपका ।
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