तुम तो नहीं हो
मगर..
तुम्हारी यादों में
आजकल
मन भटकता बहुत है
कमरे की खिड़की से
निकल..
पहुँच जाता है सोने सी
भूरी बालू के छोटे से
ढूह पर...
पूछता है तुमसे
ये टीले पर धान कम
और...
उस तलाई में ज्यादा क्यों ?
पलट कर तुम
मुझे अन्तर समझाया करती थी
अब तुम तो नहीं हो
बस...
यादें हैं तुम्हारी
मगर इस मन का क्या ?
बौराया सा
एक के बाद दूसरा..
और न जाने कितने ही
प्रश्न करता था
तुम से...
कितने ही ऐसे सवाल
जिनके जवाब
तुम्हारे आँचल के
छोर से बँधे थे
कितने ही वैसे सवाल
जो उलझा कर तुम्हें
तुम में
झुंझलाहट भर देते थे
पता है...कल मैंने
कच्चे आम की
सब्जी बनाई थी
और...
इतने बरसों के बाद भी
उसमें स्वाद
तुम्हारे हाथों वाला ही था
लगता है ...
मेरे हाथ भी अब
तुम्हारे ख्यालों की
महक से
महकने लगे हैं
🍁🍁🍁
खुबसूरत एहसासों की सुगंध इस रचना में बसी है। 'एक बाद दूसरा' को 'एक के बाद दूसरा' कर दें।
जवाब देंहटाएंएक लम्बे अन्तराल के बाद अपनी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया देखना सुखद अनुभूति है । त्रुटि इंगित करने के लिए असीम आभार राही जी ।
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 04 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसांध्य संकलन में रचना को साझा करने हेतु सादर आभार आदरणीय दिग्विजय सिंह जी ।
हटाएंबहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति सराहना से परे।
जवाब देंहटाएंभाव और शब्दों को बहुत ही सुंदर ढंग से गूँथा है आदरणीय मीना दी।
सादर
स्नेहिल सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार आनीता ! सस्नेह...,
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (05-09-2020) को "शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ" (चर्चा अंक-3815) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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कल की चर्चा प्रस्तुति में रचना को मान देने के लिए सादर आभार सर !
हटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन के लिए आभारी हूँ सर .
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार सर .
हटाएंमीना जी आपकी रचनाओं में इतनी संवेदना होती है एक एक सब अंतर तक उतर कर अपनी कहानी कहने लगता है ।
जवाब देंहटाएंसच अद्भुत।
आपकी स्नेहपगी प्रतिक्रिया से रचना को मान मिला कुसुम जी हृदयतल से आभार ।
हटाएंसुन्दर!
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार मैम .
हटाएंसुंदर अभिव्यक्ति भावनाओं की।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार मीना जी !!
हटाएंइतने बरसों के बाद भी
जवाब देंहटाएंउसमें स्वाद
तुम्हारे हाथों वाला ही था
लगता है ...
मेरे हाथ भी अब
तुम्हारे ख्यालों की
महक से
महकने लगे हैं
वाह!!!
बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण ,लाजवाब सृजन
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया पाकर लेखन को सार्थकता मिली ।हार्दिक आभार सुधा जी !
हटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार सर.
हटाएंलगता है ...
जवाब देंहटाएंमेरे हाथ भी अब
तुम्हारे ख्यालों की
महक से
महकने लगे हैं
संवेदनाओं से भरी अंतर्मन को छूती हुई ,भावपूर्ण,लाज़बाब सृजन मीना जी,सादर नमन आपको
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया पाकर लेखन को सार्थकता मिली ।
हटाएंसादर नमस्कार सहित बहुत बहुत आभार
किसी अपने की यादें अक्सर उसके करीब ले जाती हैं फिर हर शै में वो ही वो होता है बस ... बहुत सुंदार रचना ...
जवाब देंहटाएंसृजन का मर्म सार्थक करती प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार नासवा जी ।
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