अन्तर्मन से एक
आवाज़ आई
कुछ कहना है...
चुप !!
विवेक ने तुरन्त
कस दी नकेल
और...
दे डाली एक सीख
जब प्रकृति ने
संरचना में दिये
सुनने को दो कान..
देखने को दो आँख…
और
बोलने को एक जीभ
तो कुछ तो देख
समझ के सीख
सत्य वचन..
दाँतों की लाडली
यह तो..
बोल कर निकल लेती है
चंचल जो ठहरी
और..उसके बाद बेचारा मन
झेलता है..
झाड़ू की सींक से
बातों के चाबुक
जो पड़ते दिखते तो नही
बस..
अपने निशां छोड़ जाते हैं
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