खोलना चाहती थी
मन की वीथियों के
बंद दरवाजे ...
नेह में डूबे
फुर्सत के लम्हों में
मगर…
कुंडी-तालों पर
जंग लगा था
दुनियादारी का…
नेह का तेल
पानी सा हो गया
या फिर…
चाबी खो गई
वक्त के दरिया में
जल्दबाजी में…
मेरी स्मृति ही ,
धूमिल हो गई थी कहीं
🍁🍁🍁
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 09 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएं"पांच लिंकों का आनन्द" में रचना साझा करने के लिए सादर आभार यशोदा जी ।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (09-08-2020) को "भाँति-भाँति के रंग" (चर्चा अंक-3788) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--
चर्चा मंच पर रचना साम्मिलित करने हेतु सादर आभार सर .
हटाएंमगर…
जवाब देंहटाएंकुंडी-तालों पर ,
जंग लगा था ।
दुनियादारी का…
नेह का तेल ,
पानी सा हो गया ।
या फिर…
चाबी खो गई ,
अक्सर यही होता है... बहुत खूब...,बेहतरीन अभिव्यक्ति मीना जी,सादर नमन
सृजन को सार्थकता प्रदान करती सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए सहृदय आभार कामिनी जी ! सादर नमन .
हटाएंबहुत खूब,बेहतरीन अभिव्यक्ति,सादर अभिवादन
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार सर .
हटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार सर.
हटाएंबहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन प्रतिकात्मक शैली में गूँथे कोमल भाव सराहना से परे है।
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन हेतु बधाई आदरणीय मीना दी।
सादर
आपकी सराहना सम्पन्न सारगर्भित प्रतिक्रिया सदैव उत्साहवर्धन करती है अनीता!स्नेहिल आभार..,
जवाब देंहटाएंसीमित शब्दों में बड़े अर्थ रखने वाली कविता, बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसारगर्भित प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार अनिल जी ।
हटाएंअपने कद से बड़ा अर्थ देती कविता, बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंखोलना चाहती थी
जवाब देंहटाएंमन की वीथियों के
बंद दरवाजे ...
मगर…
कुंडी-तालों पर
जंग लगा था
दुनियादारी का…..
दुनियादारी की परवाह में न जाने कितने ही दरवाजे यूँँही बन्द रह जाते हैं उम्र भर...
बहुत ही सुन्दर सार्थक एवं लाजवाब सृजन।
रचना को सार्थकता प्रदान करती सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए सहृदय आभार सुधा जी !
हटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार सर.
हटाएंबहुत सुंदर मीना जी।
जवाब देंहटाएंगहरे तक पैठती रचना ।
मन वीथिका के किवाड़ बस लोकाचार में बंद ही रह जाते हैं।
अभिनव सृजन।
आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से लेखनी सार्थक हुई कुसुम जी . हदय से असीम आभार .
हटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति सखी
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार सखी.
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार सर.
हटाएंअति सुन्दर !
जवाब देंहटाएंसादर आभार सर!
हटाएंकुछ अलग हट कर लाज़बाब रचना मीनाजी।
जवाब देंहटाएंरचना आपको अच्छी लगी लेखन सफल हुआ.. हार्दिक आभार . सादर...,
हटाएंमन की विथियाँ मन के द्वारा ही खुलती हैं ... पुनः प्रयास उन्हें फिर खोल देगा ... सतत प्रयास उन्हें खुला रखेगा ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही लाजवाब भावपूर्ण रचना ... श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई ....
सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए तहेदिल से आभार नासवा जी..आपको भी श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई !!
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