मानव जीवन में लगभग तीन-चार वर्ष की उम्र से
भाग-दौड़ का क्रम शुरू होता है जो जीवनपर्यंत चलता
रहता है । समय की रेखा शैशवावस्था से बढ़नी शुरू होती है जो नश्वरता के छोर पर खत्म होती है लेकिन काम
रहता है । समय की रेखा शैशवावस्था से बढ़नी शुरू होती है जो नश्वरता के छोर पर खत्म होती है लेकिन काम
और आगे के प्लान अपने लिए सोचने का समय ही नहीं
देते । इन्हीं ख्यालों को रूप देने की एक कोशिश-
देते । इन्हीं ख्यालों को रूप देने की एक कोशिश-
कभी कुछ कहना बाकी है ,
कभी कुछ सुनना बाकी है ।
यूं ही कट गई उम्र सारी ,
न जाने क्या-क्या बाकी है ।।
कभी यह भी करना है ,
और फिर वह भी करना है ।
वक्त नहीं बस खुद के खातिर ,
न जाने क्या-क्या करना है ।।
बिन पहियों वाली है ,
ये जीवन की गाड़ी है ।
हर दिन की आपाधापी में ,
एक दिन थम जानी है ।।
🍁🍁🍁
सटीक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार सर !
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 19 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएं"सांध्य दैनिक मुखरित मौन" में सृजन साझा करने हेतु सादर आभार सर !
हटाएंबिन पहियों वाली है ,
जवाब देंहटाएंये जीवन की गाड़ी है ।
हर दिन की आपाधापी में ,
एक दिन थम जानी है ।।
बहुत खूब,बस यही तो शाश्वत सत्य है,
जब भी दो घड़ी ठहरकर खुद के बारे में सोचते है तो यही अहसास होता हैकि -"एक पल तो ठीक से जिया भी नहीं और जिंदगी गुजर भी गई"बहुत ही सुंदर सृजन मीना जी,सादर नमस्कार
रचना को सार्थकता प्रदान करती समीक्षा से सृजन का मान बढ़ा ...हार्दिक आभार सहित सादर नमस्कार कामिनी जी!
हटाएंजीवन का शाश्वत आपने बहुत सहजता है से बयां कर दिया है मीना जी । सुंदर! भावाभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसृजन का मान बढ़ाती सराहनीय सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार सहित सादर नमस्कार कुसुम जी!
हटाएंजीवन के एक पल को परिभाषित करती बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीय मीना दी।
जवाब देंहटाएंसादर
सृजन का मान बढ़ाती सराहनीय सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु स्नेहिल आभार अनीता ! सस्नेह...,
हटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार सर !
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 20.8.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
रचना को चर्चा मंच की चर्चा में सम्मिलित करने हेतु सादर आभार दिलबाग सिंह जी.
जवाब देंहटाएंकभी यह भी करना है ,
जवाब देंहटाएंऔर फिर वह भी करना है ।
वक्त नहीं बस खुद के खातिर ,
न जाने क्या-क्या करना है ।।
जीवन की आपाधापी को दर्शाती सटीक पंक्तियाँ.....सच कहा आपने करने को इतना कुछ होता है कि इतना कुछ करने के चक्कर में ही यहाँ से वहाँ दौड़ते रहते हैं....
बहुत सुन्दर सारगर्भित समीक्षात्मक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार विकास जी ।
हटाएंजीवन के झंझावातों को प्रकट करती सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार सर !
हटाएंबिन पहियों वाली है, ये जीवन की गाड़ी है । एक दिन थम जानी है ।
जवाब देंहटाएंफिर भी यह करना है, वह करना है; न जाने क्या-क्या करना है !!
बहुत ही खूब !
उत्साहवर्धन करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार सर .
हटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति सखी
जवाब देंहटाएंसृजन को सार्थकता प्रदान करती सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सखी ।
हटाएंसब के साथ यही होना है इसलिए क्यों बड़े बड़े प्लान बनाओ ... जो है उसे पूर्ण करो जो है उसको सोचो ... कुछ न कुछ तो बाकी रह जाएगा जो पूर्ण नहीं हो सकेगा इंसान से ...
जवाब देंहटाएंसृजन के मर्म को प्रवाह मिला आपके अनमोल प्रतिक्रिया से...तहेदिल से आभार नासवा जी ।
हटाएं