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शनिवार, 29 अगस्त 2020

"क्षणिकाएं"

कड़वे घूंट सा आवेश
 तो पी लिया
मगर...
गहरी सांसों में मौन भरे
 पलकों की चिलमन में
एक क़तरा...
अटका रह गया वह
अभी तक वहीं ठहरा है
खारे सागर सा..
🍁

हर दिन 
एक वादा..
कभी न तोड़ने के लिए
और…,
अगले ही दिन
एक विमर्श..
उसे तोड़ने के लिए
🍁

चलो !!
आज यूं भी कर लें
हवाओं में घुली आशाएं
सांसों में भर लें
उड़ा दें एक फूंक में
सारी चिंताएं..
दूर करें मन के क्लेश
पंछी से गुनगुनाएं
निखरी-धुली फिज़ाओं के
स्वागत में ...
खुले हृदय से बाहें फैलाएं
🍁

शनिवार, 22 अगस्त 2020

"नीरवता"

नीरवता के दौरान…
काम-काज की खटपट के साथ
किसी पेड़ से 
पक्षी की टहकार
एकांत का ...
वाद्ययन्त्र लगता है
क्योंकि इससे जीवन राग  
 जो गूंजता है…
 एज्यूकेशन एंड वर्क फ्रॉम होम ने
अवधारणा पुष्ट की है...
 सामाजिक और वैश्विक दूरियों में
 ग्लोबल विलेज के अस्तित्व की
कोरोना आपदा काल ने
बहुत कुछ बदला है...
इन्सान के जीने का ढंग
सोचने समझने का नजरिया
अनुकूल पर्यावरण और
प्रतिकूल भुगतान संतुलन
साथ ही सीखा दी है...
विकट परिस्थितियों से
उबरने की अद्भुत ताकत

***

बुधवार, 19 अगस्त 2020

"जीवन"

मानव जीवन में लगभग तीन-चार वर्ष की उम्र से
भाग-दौड़ का क्रम शुरू होता है जो जीवनपर्यंत चलता
रहता है । समय की रेखा शैशवावस्था से बढ़नी शुरू होती  है जो नश्वरता के छोर पर खत्म होती है लेकिन काम 
और आगे के प्लान अपने लिए सोचने का समय ही नहीं
देते । इन्हीं ख्यालों को रूप देने की एक कोशिश-

कभी कुछ कहना बाकी है ,
कभी कुछ सुनना बाकी है ।
यूं ही कट गई उम्र सारी ,
न जाने क्या-क्या बाकी है ।।

कभी यह भी करना है ,
और फिर वह भी करना है ।
वक्त नहीं बस खुद के खातिर ,
न जाने क्या-क्या करना है ।।

बिन पहियों वाली है ,
ये जीवन की गाड़ी है ।
हर दिन की आपाधापी में ,
एक दिन थम जानी है ।।

🍁🍁🍁

रविवार, 16 अगस्त 2020

"त्रिवेणी"

खामोशी की जुबान गंभीर होती है ।
जब बोलती है तो उसकी गूंज ,

 बेआवाज़ ही ,दूर तक सुनाई देती है  ।।

🍁🍁🍁

अपनी जगह देख 'डोंट डिस्टर्ब' का टैग  ।
बिना बताये चुपचाप लौट जाती है ,

नींद का भी अपना स्वाभिमान है  ।।

🍁🍁🍁

पूनम का चाँद ठिठुरा सा लगता है ।
चाँदनी की पैरहन में भी नमी भरी है ,

कई दिनों से सूरज दूज का चाँद जो हो गया है ।।

🍁🍁🍁







शनिवार, 8 अगस्त 2020

"बंद दरवाज़े"

खोलना चाहती थी
मन की वीथियों के
बंद दरवाजे ...
नेह में डूबे
फुर्सत के लम्हों में
मगर…
कुंडी-तालों पर
जंग लगा था
दुनियादारी का…
नेह का तेल
पानी सा हो गया
या फिर…
चाबी खो गई
वक्त के दरिया में
जल्दबाजी में…
मेरी स्मृति ही ,
धूमिल हो गई थी कहीं

🍁🍁🍁

सोमवार, 3 अगस्त 2020

"चिट्ठी"

मेरी बातें तुम तक पहुँचे, 
एक ऐसा पैगाम लिखूं ।
फिर सोचा एक बार यह  ,
कि चिट्ठी तेरे नाम लिखूं ।।

कितने पन्ने लिख लिख फाड़े ,
मन भावन कुछ लिखा नहीं ।
भा जाये  तुम को जो बातें ,
लिखना ऐसा हुआ नहीं ।।

दिन-दिन होती भारी कंबली ,
भोर लिखूं या सांझ लिखूं ।।
फिर सोचा एक बार यह  ,
कि चिट्ठी तेरे नाम लिखूं ।।

पलता रहता उर में संशय ,
रिक्त-रिक्त जीवन लगता ।
शून्य जगत तुम बिन जैसे ,
खारे सागर सा बहता ।।

चक्रव्यूह सी फेरी मन की ,
अटल कौन से भाव लिखूं ।
 फिर सोचा एक बार यह  ,
कि चिट्ठी तेरे नाम लिखूं ।।

🍁🍁🍁

【चित्र : गूगल से साभार】