कड़वे घूंट सा आवेश
तो पी लिया
मगर...
गहरी सांसों में मौन भरे
पलकों की चिलमन में
एक क़तरा...
अटका रह गया वह
अभी तक वहीं ठहरा है
खारे सागर सा..
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हर दिन
एक वादा..
कभी न तोड़ने के लिए
और…,
अगले ही दिन
एक विमर्श..
उसे तोड़ने के लिए
🍁
चलो !!
आज यूं भी कर लें
हवाओं में घुली आशाएं
सांसों में भर लें
उड़ा दें एक फूंक में
सारी चिंताएं..
दूर करें मन के क्लेश
पंछी से गुनगुनाएं
निखरी-धुली फिज़ाओं के
स्वागत में ...
खुले हृदय से बाहें फैलाएं
🍁