माटी की देह से उठती मादक गंध ,
सूर्योदय के साथ दे रही है संदेशा ।
प्रकृति की देहरी पर पावस ने पांव रख दिये हैं ।।
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घंटे दिन में और दिन बदल रहे हैं महिनों में ,
मन के साथ घरों के दरवाजे भी बंद है ।
आरजू यही है महिने साल में न बदलें ।।
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वसन्त ,ग्रीष्म कब आई, कब गई,भान नहीं ,
खिड़की के शीशे पर ठहरी हैं पानी की बूदें ।
ओह ! बारिशों का मौसम भी आ गया ।।
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लेखनी और डायरी बंद है कई महिनों से ,
किताबें भी नाराज नाराज लगती हैं ।
कभी-कभी अंगुलियां ही फिसलती हैं 'की-बोर्ड'
पर ।।
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रोज का अपडेट कितने आए.., हैं..,और गए ,
सुप्रभात.. शुभरात्रि सा लगने लगा है ।
घर पर रहें..सुरक्षित रहें..यहीं प्रार्थना है ।।
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बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार सर ।
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (२५-०७-२०२०) को 'सारे प्रश्न छलमय' (चर्चा अंक-३७७३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
चर्चा मंच की प्रस्तुति में सृजन को सम्मिलित करने के लिए स्नेहिल आभार अनीता ।
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका .
हटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार सर .
हटाएंवसन्त ,ग्रीष्म कब आई, कब गई,भान नहीं ,
जवाब देंहटाएंखिड़की के शीशे पर ठहरी हैं पानी की बूदें ।
ओह ! बारिशों का मौसम भी आ गया ।।
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सही कहा आपने घर पर रहते रहते मौसम बदलने का भान भी नहीं हो रहा...पर क्या करें...
घर पर रहें सुरक्षित रहें
बहुत सुन्दर सृजन।
सारगर्भित अनमोल प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सुधा जी ।
हटाएंबेहद खूबसूरत रचना सखी
जवाब देंहटाएंतहेदिल से बहुत बहुत आभार सखी
हटाएंमन को छूता सराहनीय सृजन होता है आपका आदरणीय मीना दीदी।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन और बेहतरीन ।
सादर
उत्साहवर्धक अपनत्व भरी प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली अनुजा ! सहृदय आभार ।
हटाएंबहुत सुंदर
हटाएंहार्दिक आभार सर.
हटाएंघंटे दिन में और दिन बदल रहे हैं महिनों में ,
जवाब देंहटाएंमन के साथ घरों के दरवाजे भी बंद है ।
आरजू यही है महिने साल में न बदलें ।।
बहुत खूब,हर दिल में उमड़ती भावनाओं को शब्दों में पिरो दिया है आपने मीना जी,मन में कुछ ऐसी ही उथल-पुथल सी मची रह रही है,कहने को वक़्त ही वक़्त है मगर फुरसत नहीं है,लाजबाब अभिव्यक्ति,सादर नमन
आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता
हटाएंमिली। कोरोना महामारी के कारण बढ़ती चिन्ताएं खत्म ही नहीं होती । सादर आभार मर्मस्पर्शी प्रतिक्रिया हेतु ।
वर्तमान परिस्थितियों का सटीक चित्रण । हार्दिक आभार ।
जवाब देंहटाएं'मंथन'पर आपका हार्दिक स्वागत सर! आपकी अनमोल सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार ।
हटाएंसमय बलिहारी है। सुन्दर।
जवाब देंहटाएंमनोबल संवर्द्धन करती अनमोल प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सर ।
हटाएंमन को छूती खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंतहेदिल से आभार संजय जी .
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (20-3-22) को "सैकत तीर शिकारा बांधूं"'(चर्चा अंक-4374)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
विशेष प्रस्तुति में मेरी रचनाओं का चयन हर्ष और गर्व का विषय है मेरे लिए.., बहुत बहुत आभार कामिनी जी!
जवाब देंहटाएंकोरोना काल की अनुभूतियों का सटीक विश्लेषण।
जवाब देंहटाएंसारगर्भित अनमोल प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार कुसुम जी ।
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