विरासत में मिले
मृदुल तेवर..
समय की तपती धूप खा कर
कंटीले हो गए और .....
स्वभाव का बढ़ता खारापन
सागर जल जैसा...
वक्त लगता है समझने में
खारापन इतना बुरा भी नहीं
जितना माना जाता है
🍁
निरभ्र नील गगन में
घिर आती हैं रोज घटाएँ...
उमड़-घुमड़ कर अपनी
गागर उंडेल रीत जाती हैं
धरा के आंगन पर...
मरकती हो गया
वसुधा का रंग भी...
और आसमान इन्द्रधनुषी
बस...एक मन का आंगन है
जिसके छोर से सांझ सी
अबोली उकताहट..
कस कर लिपटी है
जो हटने का नाम नहीं लेती
🍁
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (22-07-2020) को "सावन का उपहार" (चर्चा अंक-3770) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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प्रविष्टि को चर्चा में सम्मिलित करने हेतु सादर आभार सर ।
हटाएंसुंदर दोनों लघु कविताएँ ।..
जवाब देंहटाएंमन एकाकी हो जाए तो साँझ क्या हर बेला उकता देती है ... प्राकृति भी उसे कहाँ छेड़ पाती है ।..
कविताओं का मर्म स्पष्ट करती प्रतिक्रिया के लिए असीम आभार नासवा जी ।
हटाएंवाह!लाजबाब सृजन आदरणीय दी।
जवाब देंहटाएंदोनों ही लघुकविताएं बेहतरीन 👌।
सादर
वाह!लाजबाब सृजन आदरणीय दी।
जवाब देंहटाएंदोनों ही लघुकविताएं बेहतरीन 👌।
सादर
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से लेखन को सार्थकता मिली. स्नेहिल आभार अनुजा !
हटाएंबस...एक मन का आंगन है
जवाब देंहटाएंजिसके छोर से सांझ सी
अबोली उकताहट..
कस कर लिपटी है
जो हटने का नाम नहीं लेती
बहुत ही सुंदर,हृदयस्पर्शी पंक्तियाँ ,सादर नमन मीना जी
सराहनीय अनमोल प्रतिक्रिया से मनोबल संवर्द्धन हेतु असीम आभार कामिनी जी । सादर नमन ..
हटाएंगागर में सागर भरती अभिनव रचनाएं।
जवाब देंहटाएंगहन संवेदनाओं का अप्रतिम सृजन।
सराहना सम्पन्न अनमोल प्रतिक्रिया से लेखन का मान बढ़ा कुसुम जी ! असीम आभार..,
हटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंअनमोल प्रतिक्रिया से लेखन का मान बढ़ा सर! असीम आभार 🙏
हटाएंउम्दा लिखावट ऐसी लाइने बहुत कम पढने के लिए मिलती है धन्यवाद् (सिर्फ आधार और पैनकार्ड से लिजिये तुरंत घर बैठे लोन)
जवाब देंहटाएंहौसला अफजाई और बहुमूल्य सलाह हेतु बहुत बहुत आभार.
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