एक मुद्दत के बाद
आईने की रेत हटा
खुद के जैसा
खुद की नजर से
तुमको देखा
पहली बार लगा
वक्त गुजरा कहाँ हैं
वहीं थम गया है
तुम्हारी पल्लू संभालती
अंगुलियों से लिपटा
उजली धूप सी हँसी के साथ
मानो कह रहा हो..
गुजर जाऊँ मैं वो हस्ती नहीं
तह दर तह सिमटा रहा
युगों से..,
मैं तो यहीं- कहीं
तुम्हारे ही आस-पास रहा
सर्दियों की ढलती धूप में
गर्मी की तपती लूओं में
सावन की बौछारों से भीगता
विस्मृत स्मृति के गलियारों में
🍁🍁🍁
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 05 जुलाई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनन्द" में रचना साझा करने के लिए सादर आभार यशोदा जी ।
हटाएंसही कहा माना दीदी।
जवाब देंहटाएंवक़्त तो जीवनपर्यंत संग ही रहता है। सर्दी, गर्मी और बारिश की तरह सिर्फ़ उसका रंग बदलता है। रूप उसका जैसा भी हो वह स्मृतियों में सदैव रहता है। जैसे अपना ऐसा कोई प्रिय हो, जिसने कभी हर्ष तो कभी दर्द दिया हो।
भावपूर्ण सृजन।
सारगर्भित समीक्षात्मक प्रतिक्रिया हेतु सहृदय आभार शशि भाई 🙏
हटाएंपहली बार लगा
जवाब देंहटाएंवक्त गुजरा कहाँ हैं
वहीं थम गया है
तुम्हारी पल्लू संभालती
अंगुलियों से लिपटा
बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति सखी
सराहना भरी प्रतिक्रिया के लिए सहृदय आभार सखी ।
हटाएंपहली बार लगा
जवाब देंहटाएंवक्त गुजरा कहाँ हैं
वहीं थम गया है
तुम्हारी पल्लू संभालती
अंगुलियों से लिपटा.
बहुत ही सुंदर हृदयस्पर्शी सृजन आदरणीय मीना दी .
सराहना भरी प्रतिक्रिया के लिए स्नेहिल आभार
हटाएंअनीता ।
गुलज़ार ही की इक पंक्ति याद आ गयी
जवाब देंहटाएंवक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर
इसकी आदत भी आदमी सी है
बहुत प्यारी रचना रची है आपने
ये पंकितियाँ खासकर बहुत सुंदर रची हैं
तुम्हारे ही आस-पास
सर्दियों की ढलती धूप में
गर्मी की तपती लूओं में
सावन की बौछारों से भीगा
विस्मृत स्मृति के गलियारों में
हृदयस्पर्शी सृजन
शुभकामानएं
आपकी मनमोहक प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार जोया जी ।
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार सर .
हटाएंतुम्हारी पल्लू संभालती
जवाब देंहटाएंअंगुलियों से लिपटा
यादों में सजीव सदा रहें.. उन्हें नमन
सादर आभार दी🙏
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (06-07-2020) को 'नदी-नाले उफन आये' (चर्चा अंक 3754)
पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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-रवीन्द्र सिंह यादव
चर्चा मंच पर रचना सम्मिलित करने हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय रविन्द्र जी ।
हटाएंबहुत सुंदर पंक्तियाँ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार नीतीश जी ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति मीना जी
जवाब देंहटाएंसादर आभार सर .
हटाएंकई बार उम्र गुज़र जाती है पर वक़्त वहीँ रहता है ...
जवाब देंहटाएंस्मृतियों का सहारा रहे तो कई बार तो उम्र भी नहीं गुज़रती ... बहुत मोहक रचना है ...
सृजन का मर्म स्पष्ट करती अनमोल प्रतिक्रिया हेतु असीम आभार नासवा जी ।
हटाएंउजली धूप सी हँसी के साथ
जवाब देंहटाएंमानो कह रहा हो..
गुजर जाऊँ मैं वो हस्ती नहीं
तह दर तह सिमटा युगों से
मैं तो यहीं- कहीं…
बहुत ही सुंदर ,
अनमोल प्रतिक्रिया के लिए सहृदय आभार ज्योति जी ।
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