कुछ बातें ,कई बार
बन जाती हैं
वजूद की अभिन्न
कर्ण के ...
कवच-कुण्डल सरीखी
अलग होने के नाम पर
करती हैं तन और मन
दोनों ही छलनी
सर्वविदित है
शब्दों की मार ...
इनको भी
साधना पड़ता है
अश्व के समान
तुणीर से निकले
बाण हैं शब्द
जो लौटते नहीं..
जख़्म देते हैं
या फिर…
मरहम बनते हैं
सीमाओं को तोड़ते
अहंकार के
मद में डूबे शब्द
नहीं जानते कि
कब रख देंगे
किसी दिन
किसी…
महाभारत की नींव
★★★
शब्द ...
जवाब देंहटाएंबिना हड्डी की जिह्वा से मुल्ला शब्द कितना कुछ कर जाता है ... महाभारत से लेकर तुलसी तक बना देता है ये किसी को ... बहुत सार्थक रचना ...
सृजन को सार्थकता प्रदान करती अनमोल प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार नासवा जी ।
हटाएंऐतिहासिक कथानक के बिम्बों के साथ सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंअमूल्य प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सर ।
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 29 जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसांध्य दैनिक मुखरित मौन में" रचना साझा करने के लिए सहृदय सादर आभार यशोदा जी ।
हटाएंबहुत ही गहन चिंतन के साथ लिखी बेहतरीन अभिव्यक्ति आदरणीय मीना दीदी.सम्पूर्ण सृजन सराहना से परे है.हार्दिक बधाई .
जवाब देंहटाएंसादर
आपकी सारगर्भित सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया सदैव मनोबल
हटाएंसंवर्द्धन करती है अनुजा । बहुत बहुत आभार ।
सीमाओं को तोड़ते
जवाब देंहटाएंअहंकार के
मद में डूबे शब्द
नहीं जानते कि
कब रख देंगे
किसी दिन
किसी…
महाभारत की नींव
बहुत खूब,शब्दों का महत्व समझती सुंदर सृजन मीना जी,सादर नमन
आपकी सारगर्भित सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया सदैव मनोबल
हटाएंसंवर्द्धन करती है कामिनी जी । बहुत बहुत आभार ।
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (30-6-2020 ) को "नन्ही जन्नत"' (चर्चा अंक 3748) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
---
कामिनी सिन्हा
चर्चा मंच पर कल की चर्चा में रचना को सम्मिलित करने के लिए बहुत बहुत आभार कामिनी जी ।
हटाएंसही कहा आपने ,
जवाब देंहटाएंसीमाओं को तोड़ते
अहंकार के
मद में डूबे शब्द
नहीं जानते कि
कब रख देंगे
किसी दिन
किसी…
महाभारत की नींव।
यूं ही तो होती है महाभारत शुरूआत घाव देने वाला समझ ही नहीं पाता कि उसने कैसा विद्रूप बीज बो दिया।
सार्थक सारगर्भित लेखन।
सतसैया के दोहरे जैसे...
आपकी मनोबल संवर्द्धन करती स्नेहिल प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता और मेरी लेखनी को मान मिला। आपके सहयोग सम्पन्न मनोबल संवर्द्धन के लिए असीम आभार कुसुम जी 🙏
जवाब देंहटाएंअहंकार के विष बेल
जवाब देंहटाएंलिपटकर मन से
सोख लेते हैं
मन की पवित्रता
जिसकी
अपवित्र छाया निगल
लेती है
हृदय की
कोमलता और शांति।
---
बहुत सारगर्भित संदेश और प्रेरक सृजन दी।
रचना का प्रवाह देती सुन्दर भावपूर्ण पंक्तियों के माध्यम से अनमोल प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार श्वेता ।
हटाएंबहुत सार्थक भाव।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय 🙏
हटाएंजी मीना दीदी बहुत सुंदर रचना " शब्द" पढ़ने को मिली।
जवाब देंहटाएंसुबह - सुबह संत कबीर का यह संदेश स्मरण हो आया-
ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये |
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए ||
कभी मैंने भी शब्द पर एक लेख "शब्दबाण" लिखा था।
उचित कहा आपने द्रोपदी को महाभारत के पश्चात अच्छी तरह से समझ में आ गया होगा कि शब्द को किस तरह से संभाल कर बोलना चाहिए। पिता, पुत्र और भाई सब कुछ खोकर असंख्य महिलाओं को विधवा बनाकर स्वयं महारानी बनने का सुख निश्चित ही जीवन पर्यंत उन्हें चुभता रहा होगा।
शब्दों का अनर्गल प्रयोग चाहे किसी भी वर्ग द्वारा हो... हर युग में निन्दनीय है ।आपकी विश्लेषणात्मक प्रतिक्रिया के सहृदय आभार शशि भाई "शब्दबाण" लेख अवश्य पढूंगी ।
जवाब देंहटाएंकृपया प्रतिक्रिया *के लिए* पढ़े 🙏 .
हटाएंसीमाओं को तोड़ते
जवाब देंहटाएंअहंकार के
मद में डूबे शब्द
नहीं जानते कि
कब रख देंगे
किसी दिन
किसी…
महाभारत की नींव.. बहुत सुंदर और सटीक रचना सखी।
आपकी अनमोल प्रतिक्रिया से लेखन को सार्थकता मिली सखी . असीम आभार आपका .
हटाएंसीमाओं को तोड़ते
जवाब देंहटाएंअहंकार के
मद में डूबे शब्द
नहीं जानते कि
कब रख देंगे
किसी दिन
किसी…
महाभारत की नींव
सही कहा शब्द घाव भी देते है तो शब्द मलहम भी बनते हैं कहने को शब्द हैं पर वो कहते हैं न कि कड़वे शब्द मरकर भी नहीं भुलाये जाते....
बहुत ही सुन्दर सार्थक एवं सारगर्भित सृजन।
मनोबल संवर्द्धन करती विश्लेषणात्मक प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार सुधा जी ।
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जवाब देंहटाएंसीमाओं को तोड़ते
अहंकार के
मद में डूबे शब्द
नहीं जानते कि
कब रख देंगे
किसी दिन
किसी…
महाभारत की नींव
वाह बहुत ही खूबसूरत मीना जी ,लाजवाब ,एकदम सही
मनोबल संवर्द्धन करती सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए असीम आभार ज्योति जी ।
जवाब देंहटाएंप्रिय मीना बहन, आपकी इस अत्यंत महत्वपूर्ण रचना पर विलम्बित प्रतिक्रिया के लिए क्षमा प्रार्थि हूँ। शब्दों कासोच समझ कर प्रयोग करना हर इंसान के लिए नितांत जरूरी है।सचमुच शब्द भी तरकशसे निकले तीरों की भाँति वापिस नहीं आते। मानवता के सबसे
जवाब देंहटाएंबड़े नरसंहार महाभारत की नींव भी मर्मांतक क्ताक्षों ने रखी। सो अनर्गल वाचालता से छोटा क्या बड़ा क्या महाभारत तय है । सार्थक लेखन के लिए हार्दिक शुभकामनायें। 🌹🌹🙏🌹🌹
आपकी स्नेहिल समीक्षा से सृजन का मान बढ़ा प्रिय रेणु बहन ! आप क्षमा जैसा कुछ न कहे 🙏 आपका सदैव स्वागत है।आपकी टिप्पणी से सृजनात्मकता के लिए उत्साह द्विगुणित हो जाता है 🌹🌹🙏🌹🌹
हटाएंकृपया क्ताक्षों को कटाक्षो पढ़ें
हटाएंजी..🙏
हटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंउत्साह संवर्द्धन के लिए सादर आभार सर .
हटाएंसार्थक अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय🙏
हटाएंतुणीर से निकले
जवाब देंहटाएंबाण हैं शब्द
जो लौटते नहीं..
जख़्म देते हैं
या फिर…
मरहम बनते हैं
...लाजवाब ,एकदम सही मीना जी
बहुत समय के बाद आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया अपनी रचना पर देख कर हार्दिक प्रसन्नता हुई । बहुत बहुत आभार संजय जी ।
हटाएंशब्द वो कर सकते हों जो तेज़ से तेज़ तलवार नहीं कर सकती, आज के अंदर से खोखले होते समाज में शब्दों का प्रयोग बहुत मतव रखता हैं , अच्छे हों तो किसी को आगे बढ़ा देते हैं और तीखे -बुरे हों तो अंदर से तोड़ देता हैं
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक रचना .सार्थक अभिव्यक्ति
सत्य कथन जोया जी..आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया से लेखन को सार्थकता मिली । बहुत बहुत आभार ।
हटाएंwaah !!
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार सर !
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