झील किनारे...
बसी है बैया कॉलोनी,
सूखी शाखों पर ।
मेरे मन की सोचों जैसी...
थकान भरी और,
स्पन्दनहीन ।
🍁🍁🍁
सब कुछ तो है समय भी,
और ...
समय की मांग भी ।
लेकिन...
मैं और केवल अपनी मैं के साथ,
दोनों...
चले जा रहे हैं किनारे-किनारे ।
🍁🍁🍁
कछुआ सिमट जाये जैसे...
अपने ही खोल में
वैसे ही ...
खुद के खोल में डूबा मन
बादलों में छिपे सूरज से...
अपने आंगन में
धूप का एक टुकड़ा मांगता है ...
🍁🍁🍁🍁
लाजवाब!!
जवाब देंहटाएंमीना जी मनोभावों को इतना गहनता से उकेरा है आपने
जो सीधी हृदय तक उतरती हैं।
शब्दों में दर्द बह रहा है जो स्पष्ट दिखाई दे रहा है ।
पाठक के हृदय को छूती एक सार्थक रचना।
अभिनव।
🙏🙏 आभार कुसुम जी ! लेखनी को सार्थकता मिली आपकी अनमोल प्रतिक्रिया से ..तहेदिल से पुनः शुक्रिया.।
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 22 जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसादर आभार यशोदा जी मुखरित मौन में रचना साझा करने हेतु ।
हटाएंसब कुछ तो है समय भी,
जवाब देंहटाएंऔर ...
समय की मांग भी ।
लेकिन...
मैं और केवल अपनी मैं के साथ,
दोनों...
चले जा रहे हैं किनारे-किनारे
सबकुछ होते हुए भी अंतरमुखी मन यूँ ही अकेला रह जाता है सिर्फ अपने साथ..
बहुत ही लाजवाब सृजन
वाह!!!
सृजन को सार्थकता प्रदान करती प्रतिक्रिया के लिए स्नेहिल आभार सुधा जी ।
हटाएंसुन्दर क्षणिकाये।
जवाब देंहटाएंसादर आभार सर 🙏
हटाएंसुंदर क्षणिकाएँ....
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार विकास जी ।
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार सर .
हटाएंमैं और मेरा मैं ... किसी एक का मिटना कहाँ आसान ... मैं मिटा तो सब कुछ मिट गया ... दुसरे से ये मोह जाल ... माया का जाल ...
जवाब देंहटाएंअच्छी कक्षणिकाएं हैं सभी ...
क्षणिकाओं का मर्म स्पष्ट करती प्रतिक्रिया के लिए तहेदिल से आभार नासवा जी ।
हटाएंबहुत ही सुन्दर, सार्थक क्षणिकाएं
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार अभिलाषा जी ।आपकी प्रतिक्रिया सदैव लेखनी को ऊर्जा प्रदान करती है ।
हटाएं🍁🍁🍁
जवाब देंहटाएंकछुआ सिमट जाये जैसे...
अपने ही खोल में
वैसे ही ...
खुद के खोल में डूबा मन
बादलों में छिपे सूरज से...
अपने आंगन में
धूप का एक टुकड़ा मांगता है
बहुत ही खूबसूरत क्षणिकाएं ,
आपकी सराहना पा कर लेखन का मान बढ़ा..हार्दिक आभार ज्योति जी ।
हटाएंवाह क्या सुंदर लिखावट है सुंदर मैं अभी इस ब्लॉग को Bookmark कर रहा हूँ ,ताकि आगे भी आपकी कविता पढता रहूँ ,धन्यवाद आपका !!
जवाब देंहटाएंAppsguruji (आप सभी के लिए बेहतरीन आर्टिकल संग्रह) Navin Bhardwaj
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार नवीन जी आपके ब्लॉग के आर्टिकल जरूर पढूंगी ।
हटाएंमन के भावों को सुंदर शब्दों में पिरोया है आपने ,सादर नमन मीना जी
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार कामिनी जी ! आपकी सुन्दर सराहनीय प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार ।
हटाएंकहने को क्षणिकाएं हैं
जवाब देंहटाएंजीवन समेटे हैं खुद में ये
हम अपने अपने खोल में सिमटे यही सोचते हैं की हम किस तरह का जीवन जी रहे हैं , मगर यहां हर कोई अपने ही खोल में घूम रहा हैं
सोच को गहरे डुबो देने वाला सृजन , गहरे भावों को मज़बूत शब्दावली की माला में यूँ पिरोया है आपने की इक सुंदर रचना बन गयी
सच आज हर मन अपने अंधेरों में घुलता इक """धूप का एक टुकड़ा मांगता है ..
सदर नमन आपके लेखन को
आपकी सराहना सम्पन्न समीक्षात्मक प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थकता दी । आपका स्नेह यूं ही बना रहे । असीम आभार जोया जी ।
हटाएंकछुआ सिमट जाये जैसे...
हटाएंअपने ही खोल में
वैसे ही ...
खुद के खोल में डूबा मन
बादलों में छिपे सूरज से...
अपने आंगन में
धूप का एक टुकड़ा मांगता है ...
वाह! एक अलग ही तेवर की अत्यंत सराहनीय क्षणिकाएं प्रिय मीना जी 👌👌👌 सनेह और शुभकामनायें 🌹🌹🙏🌹🌹
आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से लेखन को सार्थकता मिली प्रिय रेणु बहन 🌹🙏 सस्नेह आभार ।
हटाएंhttps://keedabankingnews.com/nira-app-se-personal-loan-kaise-le-in-hindi/
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