पीड़ा मन की बांटती, मैं रजनी के संग ।
माँ जाई तू बहन सी, छाया जैसा संग ।।
यामा,निशा,विभावरी , कितने तेरे नाम ।
तेरी राह निहारती ,जब चाहूँ आराम ।
सुन के सब की फिर गुने ,बोले मन की बात ।
अपनी मैं के फेर में , शह बन जाती मात ।।
दर्पण में छवि देख के , मनवा करे गरूर ।
हिय पलड़े गुण तौलिए, जीवन क्षण भंगुर ।।
तम के संग प्रकाश है ,भोर करे संकेत ।
शीत-घाम के साथ तू , मन कर निज से हेत ।।
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आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 20 जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसांध्य मुखरित मौन में सृजन को साझा करने के लिए सादर आभार यशोदा जी ।
हटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन हेतु सादर आभार ।
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(२१ -०६-२०२०) को शब्द-सृजन-26 'क्षणभंगुर' (चर्चा अंक-३७३९) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
शब्द-सृजन अंक में सृजन को सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार अनीता जी ।
हटाएंबहुत सुन्दर दोहे।
जवाब देंहटाएंयोग दिवस और पितृ दिवस की बधाई हो।
उत्साहवर्धन हेतु सादर आभार आदरणीय सर ! आपको भी योग दिवस एवं पितृ दिवस की आपको भी बहुत बहुत बधाई।
हटाएंदर्पण में छवि देख के , मनवा करे गरूर ।
जवाब देंहटाएंहिय पलड़े गुण तौलिए, जीवन क्षण भंगुर ।।
बहुत सुन्दर ..
उत्साहवर्धन हेतु सादर आभार कविता जी ।
हटाएंसुन के सब की फिर गुने ,बोले मन की बात ।
जवाब देंहटाएंअपनी मैं के फेर में , शह बन जाती मात ।।
वाह!!!
लाजवाब दोहे।
आपकी सरहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन का मान बढ़ा ..स्नेहिल आभार सुधा जी ।
हटाएंओ हो हो मीना जी
जवाब देंहटाएंपीड़ा मन की बांटती, मैं रजनी के संग ।
माँ जाई तू बहन सी, छाया जैसा संग ।।
ये तो बस क़त्ल लिख दिया आपने....माँ जाई तू बहन सी, छाया जैसा संग ।। ufffff बहुत ही प्यारी प् ंकियाँ लिखीं हैं
यामा,निशा,विभावरी , कितने तेरे नाम ।
तेरी राह निहारती ,जब चाहूँ आराम
पहला दोहा ख़तम क्र अगले पे पाहुहकि तो फिर रुकना पड़ा । .वाह
बहुत बहुत बधाई मीना जी
बहुत होई अच्छे सुंदर दोहे हुए हैं \
आपकी ऊर्जात्मक सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से लेखन का मान और लेखन के लिए रूझान बढ़ जाता है जोया जी ! हृदय की असीम गहराइयों से स्नेहिल आभार ।
जवाब देंहटाएंरजनी को माँ जायी बहिन कहना बहुत प्रभावी लगा . बहुत सुन्दर दोहे हैं मीना जी
जवाब देंहटाएंसृजन सार्थक हो गया मैम । आप जैसी विदुषी की सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से .. सादर आभार 🙏
हटाएंबहुत सुंदर दोहे मीना जी
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार ज्योति जी ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन दोहे
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार लोकेश नदीश जी .
हटाएंओह!
जवाब देंहटाएंअद्भुत भावाभिव्यक्ति।
इतने सुंदर और सार्थक दोहे मीना जी कभी कभी स्तब्ध हो जाती हूं आपकी असाधारण सृजन क्षमता से मैं अभिभूत हो जाती हूं।
आपकी स्नेहमयी प्रतिक्रिया मेरी लेखनी को ऊर्जा प्रदान करती है कुसुम जी । हृदयतल से आभार आपका ।
हटाएंदर्पण में छवि देख के , मनवा करे गरूर ।
जवाब देंहटाएंहिय पलड़े गुण तौलिए, जीवन क्षण भंगुर ।।
बहुत खूब ,सादर नमन मीना जी
सहृदय आभार कामिनी जी ।
हटाएंपीड़ा मन की बांटती, मैं रजनी के संग ।
जवाब देंहटाएंमाँ जाई तू बहन सी, छाया जैसा संग ।।
वाह!! सरल, स्नेहिल दोहवाली 👌👌👌
हृदय की असीम गहराइयों से स्नेहिल आभार प्रिय रेणु जी🌹🙏
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