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शुक्रवार, 12 जून 2020

"स्त्रियाँ"

स्त्रियाँ चाह रखती आई हैं
फूलों से व्यक्तित्व की और  
 रंग -बिरंगे पंखों के साथ 
भावनाओं के साँचे में ढले
लौह-स्तम्भ से  घर की...
जिसमें देखती हैं वे 
सदियों से सदियों तक 
अपनी ही  हुकूमत...

अनपढ़ हो या पढ़ी-लिखी
बड़ी भोली होती हैं स्त्रियाँ
गुड्डे-गुड़ियों के  खेल के साथ 
 बन जाती हैं माँ और दादी जैसी ...
 सीख लेती हैं संवारना 
अपना घर-संसार 
और...स्वेच्छा से सारा दिन 
बनी फिरती हैं चक्करघिन्नी ...

कभी घर तो कभी दफ्तर
जीवन समर में कमर कसे 
डटी रहती हैं स्त्रियाँ...
जीवन की सांध्य बेला में
रण-क्षेत्र से लौटे सिपाही सी
घर के आंगन के बीच
तुलसी-चौरे पर जलाती दीपक
झांकती हैं स्मृति कपाट की झिर्रियों से 
करती रहती हैं आकलन
खोने और पाने का…. 

***
【चित्र-गूगल से साभार】

26 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 13 जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मुखरित मौन में रचना साझा करने के लिए सादर आभार
      यशोदा जी ।

      हटाएं
  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(१४- 0६-२०२०) को शब्द-सृजन- २५ 'रण ' (चर्चा अंक-३७३२) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. शब्द-सृजन में रचना को सम्मिलित करने के लिए तहेदिल से आभार अनीता जी ।

      हटाएं
  3. अनपढ़ हो या पढ़ी-लिखी
    बड़ी भोली होती हैं स्त्रियाँ
    गुड्डे-गुड़ियों के खेल के साथ
    बन जाती हैं माँ और दादी जैसी ...
    सीख लेती हैं संवारना
    अपना घर-संसार
    और...स्वेच्छा से सारा दिन
    बनी फिरती हैं चक्करघिन्नी ...
    सही कहा ये चक्करघिन्नी सा जीवन समर ही बन जाता है उनके लिए.... और इसी समर में विजेता होने की चाह ही है स्त्री जीवन...
    बहुत सुन्दर सार्थक सृजन।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से लेखन को सार्थकता मिली.
      स्नेहिल आभार सुधा जी .

      हटाएं
  4. स्त्री-जीवन के सतत संघर्ष की चिंतनीय अभिव्यक्ति।

    स्वाभिमान के लिए स्वामिनी बनने का सफ़र निस्संदेह दुष्कर है किंतु सुखद परिणाम लाता अवश्य है।

    बधाई एवं शुभकामनाएँ।

    लिखते रहिए।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली आदरणीय रविन्द्र जी 🙏 सहृदय आभार ।

      हटाएं
  5. बहुत खूब ... सच है नारी सा सक्षम किसी के पास नहीं ... थकती ही हो नहीं हैं ये ... सच में ये ही स्वामिनी है ...

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    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए तहेदिल से आभार नासवा जी ।

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  6. बेहद ख़ूबसूरत और भावपूर्ण कविता! बहुत बहुत बधाई!

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    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार संजय जी ।

      हटाएं
  7. बहुत ही सुंदर और सच भी ,परंतु अब समय बदल रहा है ,ऐसी औरतें कम नजर आ रही है ,ये तो हमारा समय रहा ,यही कारण है पहले भी निर्वाह हमने किया और अब भी निर्वाह हमी कर रहे है ,

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    उत्तर
    1. आपकी अमूल्य प्रतिक्रिया से लेखन के मर्म को प्रवाह मिला। समय बदले यह सोच ही सुखद अहसास है ।

      हटाएं
    2. बहुत सुंदर बात कही आपने ,स्त्री की दशा में सुधार जरूरी है ,

      हटाएं
    3. जी तहेदिल से आभार ज्योति जी ।

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"