कस के मुट्ठी में बंद हैं वे
माँ से जिद्द कर लिए
सिक्के की तरह…
स्कूल से आते समय
खानी है टॉफी
संतरे वाली..जीरे वाली…
उस वक्त...
वो सिक्का गुम गया
निकाल लिया किसी ने
पेन्सिल बॉक्स से...
या फिर
गिर गया कहीं
मेरी ही लापरवाही से…
ख्वाब बस ख्वाब ही रहा
मगर याद रही नसीहत...
जो माँ ने दी-
सहेज कर रखो जो दुर्लभ है
तुम्हारी खातिर...
माँ की वो बात आज भी याद है
पूरी प्रगाढ़ता से
बाँध रखे हैं मुट्ठी में चंद ख्वाब...
जो मेरे वजूद के साथ मेरे अभिन्न हैं
वक्त के साथ वे ...
रिहाई मांगना भूल गए
और मैं मुट्ठी खोलना … ।।।
*****
【गूगल से साभार】
माँ से प्राप्त संस्कार जीवन भर साथ रहते हैं.
जवाब देंहटाएंसादर आभार मैम 🙏 आपकी उपस्थिति से सृजन का मान बढ़ा ।
हटाएंमगर याद रही नसीहत...
जवाब देंहटाएंजो माँ ने दी-
सहेज कर रखो जो दुर्लभ है
तुम्हारी खातिर...
सुंदर सृजन, मैम।
सृजन को सार्थकता देती प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार विकास जी ।
हटाएंमाँ की समृति को समेटे सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंसादर आभार सर 🙏
हटाएंमीना दी,माँ की यादों और नसीहतों को समेटती सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंआपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से लेखन को सार्थकता मिली ज्योति बहन ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंआपकी सराहना से रचना को सार्थकता मिली . असीम आभार सर .
हटाएंमाँ की वो बात आज भी याद है
जवाब देंहटाएंपूरी प्रगाढ़ता से
बाँध रखे हैं मुट्ठी में चंद ख्वाब...
जो मेरे वजूद के साथ मेरे अभिन्न हैं
वक्त के साथ वे ...
रिहाई मांगना भूल गए
और मैं मुट्ठी खोलना … ।
माँ की नसीहतों को गाँठ तो बांध ली ,मगर कई ख्वाब मुठ्ठी में बंद ही रह गए ,हृदयस्पर्शी सृजन सखी ,सादर नमन
सुन्दर सार्थक अनमोल प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार सखी .सस्नेह...
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(१६-०५-२०२०) को 'विडंबना' (चर्चा अंक-३७०३) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
**
अनीता सैनी
चर्चा मंच पर रचना साझा करने के लिए असीम आभार अनीता जी ।
हटाएंमाँ की समृति को समेटे हृदयस्पर्शी सृजन मीना जी
जवाब देंहटाएंअनमोल प्रतिक्रिया से लेखन को सार्थकता मिली संजय जी ।
हटाएंबेहद शानदार अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए असीम आभार लोकेश नदीश जी।
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंआभार सर !
हटाएंवो सिक्का गुम गया
जवाब देंहटाएंनिकाल लिया किसी ने
पेन्सिल बॉक्स से...
या फिर
गिर गया कहीं
मेरी ही लापरवाही से…
वट-वाटिका जैसे विशाल सन्दर्भ में भी एक पेन्सिल जैसे छोटी सी उपमा के द्वारा लापरवाही को प्रदर्शित करना आपकी रचना को अद्भुत/मुझे अचंभित करता है। बहुत ही सुंदर रचना ।
स्वागत अखिलेश शुक्ला जी..आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली । हार्दिक आभार ।
हटाएंमाँ की वो बात आज भी याद है
जवाब देंहटाएंपूरी प्रगाढ़ता से
बाँध रखे हैं मुट्ठी में चंद ख्वाब...
जो मेरे वजूद के साथ मेरे अभिन्न हैं
वक्त के साथ वे ...
रिहाई मांगना भूल गए
और मैं मुट्ठी खोलना … ।।।
माँ के दिये संस्कार उम्र भर याद रहते हैं
बहुत सुन्दर सार्थक सृजन
वाह!!!
सुन्दर सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए सस्नेह आभार सुधा जी ।
हटाएंबेहद खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंअसीम आभार अनुराधा जी ।
हटाएंMeena जी
जवाब देंहटाएंपू री प्रगाढ़ता से
बाँध रखे हैं मुट्ठी में चंद ख्वाब...
जो मेरे वजूद के साथ मेरे अभिन्न हैं
वक्त के साथ वे ...
रिहाई मांगना भूल गए
और मैं मुट्ठी खोलना
हम्म्म। .आज तक इसी दुविधा में हूँ रिहाई दे देनी चाहिए क्या? मुट्ठी खोल देनी चाहिए के नहीं ?
हर जवाब के साथ इक और सवाल आ जाता हे :)
देखिये कितनी मज़बूत है आपकी रचना सोच के घोड़ों को कितना दूर ले गयी
बहुत शानदार लेखन
कोविड -१९ के इस समय में अपने और अपने परिवार जानो का ख्याल रखें। .स्वस्थ रहे। .
जोया जी बहुत गहरी बात कह दी आपने ...अभिन्न होने के नाते उनके बिना भी अधूरापन है । शायद यह मेरा ही दृष्टिकोण हो ..दिल की गहराइयों से धन्यवाद जोया जी इतनी अनमोल प्रतिक्रिया के लिए । अपना व अपनों की सेहत का ख्याल रखिएगा ।
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