समाचार सुनते हुए एक दिन न्यूज चैनल पर देखा-- "कोई बीमारी है
जो चीन के वुहान प्रान्त में फैल रही है ।" हॉस्पिटलों की अफरा-तफरी देख दुख हुआ और बीमारी का कारण "वैट मार्केट" है यह जान
कर क्षोभ भी कि क्या जरूरी है कुछ भी खाना ।ऐसे में ही एक दिन जाना कि इस बीमारी ने विश्व के अन्य देशों के साथ-साथ भारत में
भी दस्तक दे दी है ।
मेरी घूमने की आदत है बचपन से ही .. पहले घर की
लम्बी-चौड़ी छत पर शाम को बहन-भाइयों के साथ खेलते-खिलाते और बाद में दिन भर के कामों से फुर्सत पा कर अपने साथ जुड़े रहने
की खातिर कब आदत जीवन का अविभाज्य बन गई पता ही नहीं
चला । "अपार्टमेंट कल्चर" से जुड़ने के बाद छत की जगह बालकनी
ने ले ली और घूमने की जगह बिल्डिंग के "पाथ-वे" ने । मार्च की शुरुआत में एक दिन आदतानुसार घूमने जा रही थी तो उसने कहा - "मत जाओ ! जब तक महामारी पर नियन्त्रण ना हो । बीमार लोगों को अतिरिक्त सावधानी की जरूरत है ..तुम्हारे लिए हम भी अपने लिए अतिरिक्त सावधानी बरतेंगे क्योंकि हमें तुम्हारी जरुरत है ।" उसकी आधी नींद भरी आँखों में अपने लिये चिन्ता देख घूमने का विचार छोड़ दिया और वापस मुड़ गई अपने कमरे की ओर…पर्दे खींचते हुए नीचे की तरफ देखा.. लोग घूम रहे थे । मुझे लगा मेरी जिन्दगी थम सी गई है । हफ्ते भर बाद लॉकडाउन की घोषणा और दिन पर दिन कोरोना
के पूरे विश्व में बढ़ते प्रकोप के बारे में जान कर लगने लगा मेरी नहीं सबकी जिन्दगी थम सी गई है ।
परिवार के सदस्यों से मिलने अक्सर मुम्बई जाना
होता है ...वहाँ कई बार सुना है - "मुम्बई की रफ्तार धीमी नहीं होती कभी ।" सोचती हूँ थम गई है शहरों की रफ्तार और मुम्बई की भी । लम्बी-चौड़ी सड़कें सूनी ही दिखती हैं न्यूज़ चैनल्स में । बस... खाली और उद्विग्न मन दौड़ता रहता है थमी हुई जिन्दगी में । हर दिन न्यूज देखते या नेट पर पढ़ते हुए एक उम्मीद दामन कस कर थामे रहती
है -
कुछ ठीक हुआ.. कोई दवा सफल हुई..और फिर वही उम्मीद दिलासा देती है--कोई बात नहीं जो आज थमा है वो कल फिर से चलेगा और दौड़ेगा भी ...बस दिल की धड़कनें चलती रहनी चाहिए ।
और धड़कनों के चलते रहने के लिए एहतियात बरतना बहुत जरूरी है ।
***
वाह! कोरोना संकटकाल की विचारों में बनती-बिगड़ती यथार्थ से भरी तस्वीर उभार दी है आपने. दर्द को महसूस करा देना ही किसी भी लेखन की सफलता है. अर्थपूर्ण सृजन जो भविष्य में महत्त्वपूर्ण साबित होगा.
जवाब देंहटाएंबधाई दीदी.
सादर.
आपकी ऊर्जावान प्रतिक्रिया से लेखन को सार्थकता मिली
जवाब देंहटाएंअनीता ! स्नेहिल आभार मर्मस्पर्शी प्रतिक्रिया हेतु ।
एतिहात रखना बहुत जरूरी है।
जवाब देंहटाएंसारग्रभित आलेख।
आपकी प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली..सादर आभार आदरणीय 🙏
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 03 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएं"सांध्य मुखरित मौन में" सृजन को साझा करने के लिए सादर आभार आदरणीय 🙏
हटाएंसही कहा जिन्दगी थम सी गयी हैंऔर न जाने कब तक थमी रहेगी....सूनी गलियों में सन्नाटा पसरा है
जवाब देंहटाएंपहले तो पुलिस ने जबरदस्ती मार पीटकर अन्दर किया सबको...पर अब दहशत से दुबके हैं सभी अन्दर...
बहुत सुन्दर समसामयिक सृजन।
निर्बन्ध जीने वाले मानव को बंधन कहाँ भाते हैं मगर महामारी के समय में व्यवस्था और नियम पालन भी मानव हित में जरुरी हैं । सृजन पर सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए हृदय से असीम आभार सुधा जी !
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (04 मई 2020) को 'बन्दी का यह दौर' (चर्चा अंक 3691) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
चर्चा मंच की चर्चा में सृजन को सम्मिलित करने हेतु सादर आभार आ.रविन्द्र सिंह जी ।
हटाएंहौसला बना रहे।
जवाब देंहटाएंसादर आभार सर 🙏
जवाब देंहटाएंसबकी मनोस्थिति एक सी है
जवाब देंहटाएंसामयिक सार्थक चित्रण
स्वस्थ्य रहें.. दीर्घायु हों
आभार दी 🙏. आप भी ख्याल रखिएगा .
जवाब देंहटाएंकोई बात नहीं जो ,आज थमा है वो कल फिर से चलेगा और दौड़ेगा
जवाब देंहटाएंभी ...बस दिल की धड़कनें चलती रहनी चाहिए ।क्या बात कही हैं आपने मीना जी दिल को छू गई ,धड़कने चलती रही तो बाकी सब खुद ब खुद देर सवेर चलने ही लगेगी बस खुद का भी ख्याल रखे और अपनों का भी ,सुंदर अभिव्यक्ति ,सादर नमन
आपकी स्नेहिल अनमोल प्रतिक्रिया से मान बढ़ने के साथ-साथ लेखनी को सार्थकता मिलती है कामिनी जी .अपनत्व यूं ही बना रहे..आप भी आपना और अपनों का ख्याल रखें । सादर आभार ।
हटाएंवक्त का पहिया रुकता नहीं
जवाब देंहटाएंएक सा वक़्त कभी नहीं
विचारशील प्रस्तुति
सृजन को सार्थकता प्रदान करती अनमोल प्रतिक्रिया के लिए हृदय से सादर आभार कविता जी ।
हटाएंबस दहशत से ही थमा हुआ है सब कुछ। कुछ रोग की दहशत से थमे हैं तो कुछ पुलिस की। दहशत की बजाय आत्मअनुशासन से थमे होते तो बेहतर होता। बहुत अच्छा लेख, सकारात्मक संदेश देता हुआ।
जवाब देंहटाएंआपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया से लेखन का मान बढ़ा । हार्दिक आभार मीना जी !
हटाएंये तो मौका मिला है लिखने पढ़ने का शौक पूरा करने का. फायदा उठाएं!शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंअनमोल प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार सर .
जवाब देंहटाएंसामयिक और सुन्दर पोस्ट
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार सर .
हटाएंमीणा दी, जो आज थमा है वो कल फिर से चलेगा और दौड़ेगा भी ...बस दिल की धड़कनें चलती रहनी चाहिए। और उसके लिए जरूरी हैं एहतियात बरतना। सुंदर आलेख।
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए असीम आभार ज्योति बहन ।
जवाब देंहटाएंआपने सही कहा। जिंदगी थम सी गयी है लेकिन यह थमना कुछ ही वक्त का है। ऐतिहात बरतेंगे तो इस बिमारी से भी उभर पायेंगे। बस हिम्मत और अनुशासन बनाये रखना है। सारगर्भित आलेख।
जवाब देंहटाएंहिम्मत,अनुशासन और उम्मीद के दामन के छोर से ही बंधा है पूरा विश्व..आपकी सुन्दर सकारात्मक प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली । असीम आभार विकास जी ।
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