स्वार्थ जब हो बड़े अपने
मानवता- चर्चा कैसे हो ।
फूटते पाँवों के छाले ।
दर्द महसूस हो तो हो ।।
कहीं पर भोर है उजली ।
कहीं चहुंओर अंधियारा ।।
बना पत्थर हृदय माली ।
तिनके का कौन सहारा ।।
धरती पर आग बरसती है ।
मेघों का पानी भी सूखा ।।
चले जा रहे हैं जत्थों में ।
बेबसों का मन बल है ऊँचा ।।
अरे ओ पत्थर दिल वालों ।
कभी इनकी भी सुध तो लो ।।
छोड़ कर तूं- मैं तुम अपनी ।
कभी तो जन-सेवा कर लो ।।
संकट से उबरे सब निर्बल ।
दायित्व निबाहो अब मन से ।।
मत फेरो अपनी आँखे तुम ।
आपदा ग्रस्त जन रक्षण से ।।
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【 चित्र - गूगल से साभार 】