घने हरे पेड़ों की बीच
न जाने क्यों ?
एक अकेला वही
सूखा क्यों है ?
अपने कमरे की
खिड़की से देखते हुए…
अक्सर सोचती हूँ
रोज साँझ के वक्त एक कौआ
ठूंठ डाल पर आ बैठता है
और ...
ताकता है सूनी सी
पगडण्डी की ओर
अंधेरा घिरने पर उड़ जाता है
जैसे इन्तज़ार खत्म हुआ...
उकताहट तब मेरे
सिर चढ़ कर बोलती है
जब…
पौ फटने से पूर्व एक कोयल
कर्कश सुर में कूकती है
जैसे गुस्सा उगल रही हो
अजीब सा इत्तेफ़ाक़ है...
हरियाली के बीच सूखा पेड़
कौए की मौन प्रतीक्षा
और कोयल की नाराजगी...।।
★★★★★
अजीब सा इत्तेफ़ाक़ है...
जवाब देंहटाएंहरियाली के बीच सूखा पेड़
कौए की मौन प्रतीक्षा
और कोयल की नाराजगी...
प्रकृति रूप बदल रही हैं स्वयं से ही ,कुछ परिवर्तन तो होगा ही ,
हमेसा की तरह चंद शब्दों में बहुत कुछ कहता लाज़बाब सृजन,सादर नमस्कार मीना जी
सादर अभिवादन कामिनी जी !
जवाब देंहटाएंआपकी अनमोल प्रतिक्रिया के लिए तहेदिल से आभार ।
पौ फटने से पूर्व एक कोयल
जवाब देंहटाएंकर्कश सुर में कूकती है
जैसे गुस्सा उगल रही हो
अजीब सा इत्तेफ़ाक़ है...
कमाल के इत्तिफाक संजोए हैं आपने मीना जी!
बहुत ही सुन्दर सार्थक सृजन
वाह!!!
आपकी ऊर्जावान प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ सुधा
हटाएंजी । बहुत बहुत आभार ।
पृथ्वी दिवस को सार्थक करती सुन्दर पोस्ट।
जवाब देंहटाएंअनमोल प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार सर ।
हटाएंअजीब सा इत्तेफ़ाक़ है...
जवाब देंहटाएंहरियाली के बीच सूखा पेड़
कौए की मौन प्रतीक्षा
और कोयल की नाराजगी...।।
बहुत खूब !!!!!
सरल, सहज, सुंदर काव्य चित्र और उद्विग्नता से जूझते कवि मन के मार्मिक उदगार ! आपकी लेखनी थोड़े में ज्यादा कहने में सक्षम है |सस्नेह शुभकामनाएं|
प्रिय रेणु बहन ! ऊर्जावान सार्थकता सम्पन्न समीक्षा के लिए हृदयतल से स्नेहिल हार्दिक आभार 🙏🙏 .आपकी प्रतिक्रिया से सदैव मन में लेखन के प्रति उत्साह का संचार होता है .
जवाब देंहटाएंसृष्टि क़ा बहुत ही सरल और सुंदर विवेचन,मीना दी।
जवाब देंहटाएंहृदयतल से स्नेहिल आभार ज्योति जी ।
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(२५-०४-२०२०) को 'पुस्तक से सम्वाद'(चर्चा अंक-३६८२) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
**
अनीता सैनी
चर्चा मंच पर मेरी रचना को सम्मिलित करने हेतु हार्दिक आभार अनीता जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति, बधाई.
जवाब देंहटाएंअसीम आभार डॉ. जेन्नी शबनम जी .
हटाएंवाह! कविता में निहित अंतरकथा बिंबों और प्रतीकों के माध्यम से जीवन का यथार्थ बयाँ कर रही है। जीवन का विसंगतियों से त्रस्त होकर विरोधाभासी होना बस वक़्त का फेर है अगले दिन परिस्थिति बदल भी सकती है।
जवाब देंहटाएंगूढ़ार्थ लिए एक उत्कृष्ट रचना जिसमें मंथन के लिए पर्याप्त सामग्री पिरोई गई है।
बधाई एवं शुभकामनाएँ।
लिखते रहिए।
सृजन को सार्थकता प्रदान करती अमूल्य समीक्षा के लिए असीम आभार रविन्द्र सिंह जी .
हटाएंबहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार नीतीश जी ।
हटाएंबहुत कुछ कहता लाज़बाब सृजन मीना जी
जवाब देंहटाएंसुन्दर सराहनीय प्रतिक्रिया से लेखन को सार्थकता मिली । बहुत बहुत आभार संजय जी ।
हटाएंसमय की मार कटु अनुभव कराती हैं फिर भी इंसान नासमझी करने में कोई कोताही नहीं बरतता
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति
सृजन को सार्थकता देती अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार कविता जी ।
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंविसंगतियों पर विहंगम दृष्टि देती गहन रचना ।
बहुत सुंदर मीना जी ।
आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया से सृजन का मान बढ़ा कुसुम
जवाब देंहटाएंजी . बहुत बहुत आभार .