मानवता में वास है
असीम सर्वोच्च शक्ति का
बस संसार में अकाल है तो
केवल क़द्रदानों का...
देवदूत या परियाँ कपोल कल्पित
कल्पनाएँ नहीं हकीकत है ज़मीनी
जो हर पल होती है हमारे आस-पास
भोर बेला में सफाई कर्मी
कभी खाकी वर्दी में तो कभी
चिकित्साकर्मी के रूप में
ये रहते हैं सदा सर्वदा हमारे साथ-साथ
अपनी 'मैं' में डूबे हम न जाने कौन सी
पारदर्शिता की ऐनक ...
लगाए रखते हैं आँखों पर कि
इनका अक्स धुंधला तो क्या
दिखाई भी नही देता
तभी तो अक्सर
देखने - सुनने में आता है
कि लोग...
फेंकते हैं इन पर पत्थर
और करते हैं बिना सोचे-समझे
अपमानित...
चेत जाना चाहिए अभी भी वक्त है
यह फिसल गया हाथ से
तो पछताने के लिए
न तो समय बचेगा और न ही वजूद !!
★★★
सार्थक संदेश देती रचना ।
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने ये सब ही तो फरिश्ते हैं जो हमारे लिए नियामत हैं ।
सबसे पहले इन्हें सेल्यूट और साधुवाद।,🙏
सृजन का मान बढ़ाती अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार कुसुम जी 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक,समसामयिक अमानवीय व्यवहारों से व्यथित मन की सारगर्भित,सार्थक संदेश देती अभिव्यक्ति दी।
जवाब देंहटाएंकाश कि ये परिस्थितियों की गंभीरता को समझ पाते।
अक्षरशः सहमत हूँ।
बहुत अच्छी रचना।
बहुत सटीक,समसामयिक अमानवीय व्यवहारों से व्यथित मन की सारगर्भित,सार्थक संदेश देती अभिव्यक्ति दी।
जवाब देंहटाएंकाश कि ये परिस्थितियों की गंभीरता को समझ पाते।
अक्षरशः सहमत हूँ।
बहुत अच्छी रचना।
अभिव्यक्ति को सार्थकता प्रदान करती सहमति भरी प्रतिक्रिया से सृजन का मान बढ़ा श्वेता!हृदयतल से आभार ।
हटाएंसच कहा है ... अब भी मानवता की कद्र नहीं करेंगे ... वो बचाने के लिए खड़े हैं उनकी नहीं सुनेंगे तो देर ण हो जाये ...
जवाब देंहटाएंअच्छा सन्देश ...
संदेश के मर्म को सार्थक करती अनमोल प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ नासवा जी !
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसादर आभार सर .
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(१८-०४-२०२०) को 'समय की स्लेट पर ' (चर्चा अंक-३६७५) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
**
अनीता सैनी
चर्चा मंच की चर्चा में "संदेश' सम्मिलित करने हेतु हार्दिक आभार अनीता जी ।
हटाएंसही कहा ये फरिश्ते ही हैं अपनी परवाह किये बिना लोगों को रोगमुक्त करने का प्रयास कर रहे हैं पर न जाने कौन सी दुर्बुद्धि बैठी है इन लोगों के मन में जो इन फरिश्तों पर पथराव कर रहे हैं....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर समसामयिक संदेश देती रचना
रचना के मर्म को सार्थकता प्रदान करती समीक्षा के लिए असीम आभार सुधा जी !
हटाएंमानवता में वास है
जवाब देंहटाएंअसीम सर्वोच्च शक्ति का
बस संसार में अकाल है तो
केवल क़द्रदानों का...
बहुत खूब कही अपनी ,वैसे तो अब से पहले रोना था कि -" मानवता मर चुकी हैं " आज हर तरफ देवदूतों के रूप में मानवता खुद को सत्यापित करती दिखाई दे रही हैं तो कुछ बेगैरत लोग इसकी कदर नहीं कर रहे हैं ,विकट परिस्थितियों में मानव और दानव की सही पहचान होती हैं ,सुंदर संदेश देती लाज़बाब सृजन मीना जी
रचना का मर्म स्पष्ट करती सराहनीय प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार कामिनी जी !
हटाएंमानवीय संवेदनाओं का अभाव अब ज्यादा है
जवाब देंहटाएंसमझदारी कोशों दूर है
भावपूर्ण रचना
सृजन को सार्थकता प्रदान करती आपकी अनमोल प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सर .
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