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शनिवार, 4 अप्रैल 2020

"समय"

( 1 )

चिनार के पत्तों से
मुठ्ठी की रेत सा
फिसलता कोहरा
आसमान में …,
छिटपुट तारों के बीच
उदास सा शुक्र तारा
और…
स्थिर पलों में
तिल तिल खर्च होता
आदमी….

(2)

बोझल तेवर लिए
हवाएँ ...
शून्य ताकती
नीरव पगडंडियां...
दिन-रात के सन्नाटे को
भेदती है….
एक चिड़िया की
टिटकार...
बैचेन पखेरु भी
व्याकुल हैं….
खामोश उड़ान की तेजी
जता रही है….
इनको भी चिन्ता है
अपने अपनों की….

★★★★★

22 टिप्‍पणियां:

  1. लाजवाब सृजन मीना जी ।
    इतनी गहरी संवेदनाएं आपने कम शब्दों में उकेर दी अद्भुत अभिनव ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. संवेदनाओं को समझने के लिए आभार कुसुम जी । आजकल मनस्थिति कमोबेश सृजन के जैसी ही है ।

      हटाएं
  2. बैचेन पखेरु भी
    व्याकुल हैं….
    खामोश उड़ान की तेजी
    जता रही है….
    इनको भी चिन्ता है
    अपने अपनों की….
    सही कहा मीनाजी सभी व्याकुल हैं इस विश्वव्यापी बिमारी से....
    बहुत सुन्दर भावपूर्ण सृजन।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सृजन का मर्म स्पष्ट करती प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार सुधा जी । सस्नेह...

      हटाएं
  3. खामोश उड़ान की तेजी
    जता रही है….
    इनको भी चिन्ता है
    अपने अपनों की….
    गहरी संवेदनाएं लिए मार्मिक सृजन मीना जी ,सादर नमन आपको

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ कामिनी जी ! स्नेहिल आभार ।

      हटाएं
  4. गहरे भाव ...
    आज हर किसी की चिंता है .... इस सन्नाटे की, खुद की ...
    काश संवेदनशील रहे सब सदा के लिए ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपके ऊर्जावान अनमोल शब्दों के लिए हृदयतल से आभार नासवा जी ।

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"