कुहूक
कोयल की
गूंजी प्रभाती सी
सूर्योदय के
संग...
नेह
डोर बंधन
सांसों में घुल
हिय बीच
बसा..
अनचीन्हे
संदली ख्वाब
सीप में मोती
जैसे पनपते
प्रतिपल...
अचल
पाषाण फोड़
वह बह निकली
करने मैदान
उर्वर….
★★★
बहुत सुंदर मीना जी! सायली छंद का भाव पूर्ण सृजन ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार कुसुम जी ।
हटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय ।
हटाएंसुंदर,,,,, भावपूर्ण सृजन ,सादर नमन आपको
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार कामिनी जी । सस्नेह वन्दे ।
हटाएंअनचीन्हे
जवाब देंहटाएंसंदली ख्वाब
सीप में मोती
जैसे पनपते
प्रतिपल...बहुत खूब मीना जी
आपकी उत्साहवर्धित करती प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली । बहुत बहुत आभार अलकनंदा जी । सादर वन्दे ।
हटाएंलाजवाब सायली छन्द....
जवाब देंहटाएंवाह!!!
उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार सुधा जी ।
हटाएंवाह बहुत सुंदर आदरणीया मैम। सादर प्रणाम 🙏
जवाब देंहटाएंस्वागत आँचल आपका🌹 सुन्दर सराहनीय प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार । सस्नेह...
हटाएंनेह
जवाब देंहटाएंडोर बंधन
सांसों में घुल
हिय बीच
बसा
वाह !! भावों से भरा सुंदर सार्थक छंद !!!!
हृदयतल से हार्दिक आभार रेणु जी ! सस्नेह...
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