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मंगलवार, 18 फ़रवरी 2020

"लकीरें"

मत बनाओ
लकीरों के दायरे
जानते तो हो…
लीक पर चलना
हर किसी को 
कब और कहाँ आता है
सीधी लकीरें भी
कहाँ बन पाती हैं
 इन्सान से…
लकीर खींचने का प्रयास
तो सदा सीधी का होता है
मगर रुप अक्सर 
वर्तुल ही बनता है
स्वतंत्रता कई बार
परतंत्रता बन जाती है
खुद की खातिर …
समझाइश के लिए
शब्दों का जाल भी
लगभग लकीरों सरीखा
ही लगता है और जाल…
उनमें कैद व्यक्तित्व
निखरते कब हैं ?
बस जड़ हो जाते है

★★★★★

26 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (19-02-2020) को    "नीम की छाँव"  (चर्चा अंक-3616)    पर भी होगी। 
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
     --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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    1. चर्चा मंच पर सृजन को मान देने के लिए हार्दिक आभार सर ।

      हटाएं
  2. वाह बहुत ही सुंदर सार्थक सटीक व्यख्या।
    खुद की खातिर …
    समझाइश के लिए
    शब्दों का जाल भी
    लगभग लकीरों सरीखा
    सुंदर सृजन।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी अनमोल प्रतिक्रिया से लेखन को सार्थकता मिली ... हृदयतल से आभार कुसुम जी ।

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  3. बहुत सुन्दर मीना जी !
    जीवन एक ऐसी पहेली है जिसका हल खोजते-खोजते मनुष्य ख़ुद एक पहेली हो जाता है.

    जवाब देंहटाएं
  4. सृजन सार्थकता प्रदान करती आपकी अनमोल प्रतिक्रिया ने लेखनी का मान बढ़ाया हार्दिक आभार सर 🙏

    जवाब देंहटाएं
  5. उत्तर
    1. आपकी सराहनीय प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली ..
      बहुत बहुत आभार आदरणीय🙏

      हटाएं
  6. वाह ! बहुत सुंदर चिंतन लकीरों पर मीना जी | सचमुच दायरों में कैद व्यक्तित्व का कुंठित हो जड़ हो जाना तय है | स्वाभाविक लय मेंबी जीवन जीने का आनंद ही कुछ और है | सस्नेह शुभकामनाएं|

    जवाब देंहटाएं
  7. प्रिय रेणु जी सस्नेहाभिवादन !
    ब्लॉग पर आपकी उपस्थिति और सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपकी हृदयतल से आभारी हूँ ।

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  8. हृदय को छू लेने वाली रचना ल‍िखती हैं मीना जी , वाह बेहद खूबसूरत

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से अभिभूत हूँ ... हृदयतल से आभार आपका 🙏

      हटाएं
  9. इच्छाओं को कैद करना कहाँ आसान होता है ,सभी अपने तरीके से चलना चाहते हैं जितना लोगों को रस्मों रिवाजों में जकड़ना चाहेंगे उतनी ही ज्यादा वे बाहर आने को व्याकुल हो जाएंगे इसलिए बेहतर है कि किसी को भी किसी परिधि में बांधना नहीं चाहिए. ..
    बहुत ही गहन विषय वस्तु पर आपकी कविता #लकीरें सुंदर और सटीक सृजन बधाई..।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सृजन के मर्म को स्पष्ट कर सार्थकता प्रदान करती सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से हार्दिक आभार अनु जी । सस्नेह...,

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  10. बहुत सुंदर और सटीक विवेचन करती रचना।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हृदयतल से आभार ज्योति जी । स्नेह बनाए रखें ।

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  11. बहुत पुराना मुहावरा है लकीर के फकीर
    और सदा उस पर नसीहतें भी दी जाती रही
    नया लिबास पसंद आया

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर आभार दी ! आपकी प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक
      हुआ ।

      हटाएं
  12. शब्दों का जाल भी
    लगभग लकीरों सरीखा
    ही लगता है और जाल…
    उनमें कैद व्यक्तित्व
    निखरते कब हैं ?

    बहुत खूब ,लाज़बाब सृजन मीना जी ,सादर नमन

    जवाब देंहटाएं
  13. आपकी सुन्दर सराहनीय प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली कामिनी जी ! सादर आभार ...,

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  14. लकीर खींचने का प्रयास
    तो सदा सीधी का होता है
    मगर रुप अक्सर
    वर्तुल ही बनता है
    सुंदर सार्थक सटीक व्यख्या लकीरों पर मीना जी
    सभी मित्रों को महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं !!
    हर हर महादेव

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    उत्तर
    1. महाशिवरात्रि पर्व की आपको भी सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएँँ संजय जी ! आपकी सुन्दर सराहनीय प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ ।

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"