मत बनाओ
लकीरों के दायरे
जानते तो हो…
लीक पर चलना
हर किसी को
कब और कहाँ आता है
सीधी लकीरें भी
कहाँ बन पाती हैं
इन्सान से…
लकीर खींचने का प्रयास
तो सदा सीधी का होता है
मगर रुप अक्सर
वर्तुल ही बनता है
स्वतंत्रता कई बार
परतंत्रता बन जाती है
खुद की खातिर …
समझाइश के लिए
शब्दों का जाल भी
लगभग लकीरों सरीखा
ही लगता है और जाल…
उनमें कैद व्यक्तित्व
निखरते कब हैं ?
बस जड़ हो जाते है
★★★★★
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (19-02-2020) को "नीम की छाँव" (चर्चा अंक-3616) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
चर्चा मंच पर सृजन को मान देने के लिए हार्दिक आभार सर ।
हटाएंवाह बहुत ही सुंदर सार्थक सटीक व्यख्या।
जवाब देंहटाएंखुद की खातिर …
समझाइश के लिए
शब्दों का जाल भी
लगभग लकीरों सरीखा
सुंदर सृजन।
आपकी अनमोल प्रतिक्रिया से लेखन को सार्थकता मिली ... हृदयतल से आभार कुसुम जी ।
हटाएंबहुत सुन्दर मीना जी !
जवाब देंहटाएंजीवन एक ऐसी पहेली है जिसका हल खोजते-खोजते मनुष्य ख़ुद एक पहेली हो जाता है.
सृजन सार्थकता प्रदान करती आपकी अनमोल प्रतिक्रिया ने लेखनी का मान बढ़ाया हार्दिक आभार सर 🙏
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंआपकी सराहनीय प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली ..
हटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय🙏
वाह ! बहुत सुंदर चिंतन लकीरों पर मीना जी | सचमुच दायरों में कैद व्यक्तित्व का कुंठित हो जड़ हो जाना तय है | स्वाभाविक लय मेंबी जीवन जीने का आनंद ही कुछ और है | सस्नेह शुभकामनाएं|
जवाब देंहटाएंप्रिय रेणु जी सस्नेहाभिवादन !
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आपकी उपस्थिति और सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपकी हृदयतल से आभारी हूँ ।
हृदय को छू लेने वाली रचना लिखती हैं मीना जी , वाह बेहद खूबसूरत
जवाब देंहटाएंआपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से अभिभूत हूँ ... हृदयतल से आभार आपका 🙏
हटाएंइच्छाओं को कैद करना कहाँ आसान होता है ,सभी अपने तरीके से चलना चाहते हैं जितना लोगों को रस्मों रिवाजों में जकड़ना चाहेंगे उतनी ही ज्यादा वे बाहर आने को व्याकुल हो जाएंगे इसलिए बेहतर है कि किसी को भी किसी परिधि में बांधना नहीं चाहिए. ..
जवाब देंहटाएंबहुत ही गहन विषय वस्तु पर आपकी कविता #लकीरें सुंदर और सटीक सृजन बधाई..।
सृजन के मर्म को स्पष्ट कर सार्थकता प्रदान करती सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से हार्दिक आभार अनु जी । सस्नेह...,
हटाएंबहुत सुंदर और सटीक विवेचन करती रचना।
जवाब देंहटाएंहृदयतल से आभार ज्योति जी । स्नेह बनाए रखें ।
हटाएंबहुत पुराना मुहावरा है लकीर के फकीर
जवाब देंहटाएंऔर सदा उस पर नसीहतें भी दी जाती रही
नया लिबास पसंद आया
सादर आभार दी ! आपकी प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक
हटाएंहुआ ।
शब्दों का जाल भी
जवाब देंहटाएंलगभग लकीरों सरीखा
ही लगता है और जाल…
उनमें कैद व्यक्तित्व
निखरते कब हैं ?
बहुत खूब ,लाज़बाब सृजन मीना जी ,सादर नमन
आपकी सुन्दर सराहनीय प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली कामिनी जी ! सादर आभार ...,
जवाब देंहटाएंलकीर खींचने का प्रयास
जवाब देंहटाएंतो सदा सीधी का होता है
मगर रुप अक्सर
वर्तुल ही बनता है
सुंदर सार्थक सटीक व्यख्या लकीरों पर मीना जी
सभी मित्रों को महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं !!
हर हर महादेव
महाशिवरात्रि पर्व की आपको भी सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएँँ संजय जी ! आपकी सुन्दर सराहनीय प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ ।
हटाएंबहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका 🙏
हटाएंबहुत सुंदर रचना 👌👌
जवाब देंहटाएंहृदयतल से आभार अनुराधा जी ।
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