अतृप्त तृष्णाएं अनन्त और असीम हैं ।
निस्सार संसार में यही जीवन की रीत है ।।
कोल्हू का बैल मानव भ्रम में जीता रहता सदा ।
स्पर्धाओं में भागते-दौड़ते कभी कम नही हुई व्यथा ।।
अनेकों रूप धरे पिपासाएं हर दम मन को उलझाती ।
काम-क्रोध ,लोभ-मोह जीवन के अभिन्न साथी ।।
मिल गया अगर सब कुछ तो भी तुष्टि नही है ।
अधूरी रह गई अभिलाषाएं अभी अधूरी क्यों है ।।
अधूरी इच्छाओं को पूरा करने की आशा ।
हो गई यदि सभी पूरी तो और पाने की प्रत्याशा ।।
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जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (१८ -०१ -२०२०) को "शब्द-सृजन"- 4 (चर्चा अंक -३५८४) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
-अनीता सैनी
शब्द सृजन में चर्चा मंच पर रचना को मान देने के लिए हार्दिक आभार अनीता जी ।
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" कल शनिवार 18 जनवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंमुखरित मौन मे सृजन को साझा करने हेतु हार्दिक आभार यशोदा जी ।
हटाएंबहुत सुंदर सृजन मीना जी!
जवाब देंहटाएंपिपासा और तृष्णा का सही व्याख्यात्मक स्वरूप दिखाया आपने ।
बहुत सुंदर।
आपकी सुन्दर सराहनीय प्रतिक्रिया सदैव संबल और खुशी देती है कुसुम जी ।
हटाएंवाह!!मीना जी ,सुंदर सृजन ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार शुभा जी ।
हटाएंबेहद खूबसूरत सृजन सखी।बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार सखी ।
हटाएंबहुत सुन्दर मीना जी.
जवाब देंहटाएंतृष्णा को हम आम बोलचाल में हवस कहते हैं. यह प्रायः हमारे सभी नेताओं में पाई जाती है.
जी सर ! यह तो सर्वव्यापी है ..इस संसार में भला कौन बच पाया है इस भंवरजाल से.... बहुत बहुत आभार
हटाएंसर ! आपकी प्रतिक्रिया सदैव बहुमूल्य होती है ।
मन की तृष्णा की सही व्याख्या ,लाज़बाब रचना मीना जी ,सादर नमन
जवाब देंहटाएंसादर अभिवादन कामिनी जी !आपकी सृजन को सार्थकता देती अनमोल प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार ।
हटाएंमन की पिपासाएं ऐसे ही भंवरजाल में उलझाती रहती हैं बहुत सुन्दर सारगर्भित सार्थक सृजन
जवाब देंहटाएंवाह!!!
सृजन को सार्थकता देती आपकी अनमोल प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार सुधा जी । सस्नेह...
हटाएंबहुत उम्दा
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार लोकेश नदीश जी ।
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