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रविवार, 29 दिसंबर 2019

"स्वागत"

आवरण बद्ध कल बस ,
अपने खोल से निकलने ही वाला है ।
हर बार की तरह आज ,
बस कल में बदलने ही वाला है ।।
आज और कल यूं ही ,
साल दर साल बदलते रहेंगे ।
हर बार की तरह इस बार भी ,
आधी रात को पटाखें बजते रहेंगे ।
कहीं अल्कोहलिक बेवरेज के महंगे दौर चलेंगे
और रंगीन होती रहेंगी मधुशालाएं ।
कहीं रहेगी फिक्र सदा की तरह रोजी रोटी की
और जलती रहेंंगी अतृप्त अरमानों की ज्वालाएं ।
चिन्तन-मनन के लिए तीन सौ चौसठ दिन ,
एक दिन का उत्सव तो मन ही सकता है ।
दरवाजे पर खड़ा नया साल हम से, 
अभिनन्दन की उम्मीद तो रख ही सकता है ।
छोड़़ो किन्तु -परन्तु के झंझट
मन में उत्साह का संचार करो ।
फिर से आ गया नया साल ,
हँस बोल  स्वागत सत्कार करो ।

★★★★★

बुधवार, 25 दिसंबर 2019

"सायली छंद"

Merry Christmas to all of you 🎅

एक प्रयास सायली छंद लिखने का… , भावाभिव्यक्ति के लिए शब्दों का क्रम - 1,2,3,2,1रहेगा ।

(1)

जिन्दगी
तेरे इम्तिहान
कितने अभी बाकी
बावरा मन
पूछे...

(2)

चलो
फिक्र को
फूंक से उड़ाएँ
थोड़ा हँसे
खिलखिलाएँ...

(3)

अंजुरी
भर ख्वाब
मुट्ठी में बन्द
चमकते जुगनुओं
जैसे...

(4) 

स्मृतियों
का सूत
जीवन रुपी चरखा
कातता रहता
अनवरत...

★★★

गुरुवार, 19 दिसंबर 2019

"ताँका"

'ताँका' 

मुंशी प्रेमचंद के उपन्यास 'गोदान' के कथा नायक 'होरी' और उसके जैसी जिन्दगी जीते किसानों की मनस्थिति पर मन में उपजे भावों को अभिव्यक्त करने का एक प्रयास -

(1)

पूस की रात
देह में ठिठुरन
गिरता पाला
ठिठुरता अलाव
सोचों में डूबा मन

(2)

सर्दी या गर्मी
करता रखवाली
निज स्वप्नों की
श्रम सार्थक होगा
धनखेत खिलेगा

(3)

दुविधा भारी
बढ़ती महंगाई
मंडी की मंदी
दो पाटों में उलझी
पिसती सी जिन्दगी


★★★

शनिवार, 14 दिसंबर 2019

"विचार"


वे …,
चले आ रहे हैं 
सदियों से…
आज इसके साथ
तो कल उसके

आँखें बन्द करने से
जो हैं वे
बदलते कहाँ हैं ?
चल रहें हैं 
जल , थल ,अग्नि ,
वायु और आकाश जैसे
पंचभूत बन
प्राणों के साथ …,

जब होते हैं
मन मुताबिक तो
देते हैं …,
असीम आनन्द
तो कभी चाबुक से बरस
दुख भी देते हैं

सुनो…,
हम दोनों मे से
किसे मारना चाहते  थे ?
मुझे…,या फिर 
उन्हें …,

★★★


रविवार, 8 दिसंबर 2019

"संकल्प"

संभल कर चल !
सांझ के साये में...,
सांझ के साये में
घूमते हैं नर-पिशाच
तेरे संभले डग
और तेरी बुद्धिमता…,
तेरा रक्षा कवच है
खुद पर कर यकीन 
तेरा यकीन ही
देगा तुझे ताकत
महिषासुरमर्दिनी सी …,

जानती तो है तू !
दोधारी तलवार है 
तेरी जिन्दगी…
अबला है तो...
रोती क्यों हैं ?
सबला है तो
बेलौस क्यों है ?

शतरंज की बिसात 
जैसी है जिन्दगी
जरा सी अनदेखी
पलट देती है बिसात
चंद हमदर्दी के अल्फाज़
और फिर…
वही ढाक के तीन पात

★★★





शुक्रवार, 6 दिसंबर 2019

।। कुंडलियां ।।

"बेटी"

बेटी घर का मान है, मन उपवन का फूल ।
मात-पिता की लाडली , यह मत जाओ भूल ।।
यह मत जाओ भूल , याद रखना नर-नारी ।
रखती सब का मान , मान की वह अधिकारी ।।
कह 'मीना' यह बात, करो मत यूं अनदेखी ।
बेटों सम अधिकार , हम से मांगती बेटी

"किसान"

जी तोड़ मेहनत करे , खेतों बीच किसान ।
फल की आशा के बिना , जीवन लगे मसान ।।
जीवन लगे मसान , करे क्या वह बेचारा ।
धरती माँ का लाल , फिरे वो मारा मारा ।।
कह 'मीना' बिन आस ,गृहस्थी रुकती चलती ।
पालन अब परिवार ,  मुश्किल हो गया है जी ।।

( एक प्रयास कुंडलियां लिखने का ✍️)

★★★★★

मंगलवार, 3 दिसंबर 2019

"नियति"

आड़ी-टेढ़ी पगडंडी ,
और उसके दो छोर ।
एक दूजे से मिलने की ,
आस लिए चले जा रहे हैं ।
उबड़-खाबड़ रास्तों से  ,
कभी पास-पास , कभी दूर-दूर ।
हमें आपस में बाँधने को ,
ना पगडण्डी है , 
और ना ही कोई कूल-किनारा ।
मगर फिर भी ,
बन्धन तो बन्धन है ।
हमें बाँधता है ,
सब की 'आँखों का तारा' ।
कभी घटता , कभी बढ़ता ,
नीलगगन की शोभा ...
दुग्ध धवल सा चाँद ।
दिन-भर की दौड़-धूप ,
और उसके बाद विश्रांति काल ।
जब उससे ... 
नजरें मिलती है ,
मेरी भी.. तुम्हारी भी ।
 तो , तार जुड़ते हैं ,
मन के ..मन से..
आ जाती है ।
कुशल-क्षेम ..
मिलना ना मिलना ,
तो बस…
नियति की बात है ।

★★★

शुक्रवार, 29 नवंबर 2019

"नारी"

नारी का व्यक्तित्व और कृतित्व सदैव रचनाकारों की
लेखनी का प्रिय विषय रहा है । मैं भी इस भावना से
परे नहीं हूँ । मुझे नारी का गृहस्थ जीवन की धुरी
होने के साथ-साथ उसका कर्मठ और बुद्धिमतापूर्ण
व्यक्तित्व बहुत मोहता है । नारी के उसी सशक्त
रुप को अपनी लेखनी से अंकित करने का प्रयास
मेरी तरफ से --

नही जानती किसी की नजर में , अहमियत मेरी ।
मैं जानती हूँ अपने घर में , हैसियत मेरी ।।

ओस का कतरा नहीं , जो टूट कर बिखर जाऊँ ।
कमजोर भी इतनी नहीं , यूं ही उपेक्षित की जाऊँ ।।

घर के कोने में सजा  , 'कॉर्नर-पीस' नहीं हूँ मैं ।
मैं तुम्हारे सिर की पाग , अपना मान जानती हूँ मैं ।।

कोशिश भले ही कितनी भी हो , मुझको मिटाने की ।
चुन ली गर कोई डगर , फिर ना हट पाने की ।।

जीवनरुपी कैनवास पर , बिखरे अनगिनत रंग मैं ।
प्रकृति में सिमटी तेजोमय , सतरंगी  आभा सी मैं ।।

★★★★★

रविवार, 24 नवंबर 2019

।। मुक्तक ।।

(1)
वृक्षों के जैसा कोई उपकारी नही है
नष्ट करना इनको समझदारी नही है।
पोषित इन के दम पर पूरा पर्यावरण
वन रक्षण क्या सबकी जिम्मेदारी नहीं है
( 2 )
स्व को कर परमार्जित हम आगे बढ़ते हैं ।
अपनी 'मैं' को भूल कर सबकी सुनते हैं ।।
हो सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय का भाव ।
करे उन्नति सम्पूर्ण राष्ट्र ,यही स्वप्न देखते हैं ।।
(3)
ऐसे भी नौनिहाल हैं जो काँटों में पलते हैं ।
श्रम की भट्टी में वो लौह खण्ड से ढलते हैं ।।
दो अवसर उनको भी तो स्व उन्नयन का ।
नन्ही आशा के दीप उन नैनों में भी जलते हैं ।।
(4)
सकारात्मकता का भाव हृदय में संचित करेंगे ।
सर्वांगीण शिक्षा के कीर्तिमान अर्जित करेंगे ।।
नहीं रहे समाज में वर्गभेद और निरक्षर कोना ।
कैसे फिर विकास और उत्थान  से वंचित रहेंगे ।।

★★★★★

शुक्रवार, 22 नवंबर 2019

तांका

शाश्वत आभा
मनस्वी नगपति
आदि सृष्टि सी
स्वर्णिम रश्मियां
सौन्दर्य स्थितप्रज्ञ

मानस-सर
अमृत सम अम्बु
निर्बन्ध मुक्त
सुषमा नैसर्गिक
दृग-मन विस्मित

पुष्प गुच्छ सी
सुवासित मधुरम्
विबुध धरा
हिमगिरि आंचल
प्रकृति अनुपम

★★★★★

रविवार, 17 नवंबर 2019

"क्षणिकाएं"

(1)
थके तन में बोझल मन
डूब रहा है यूं .....
जैसे..अतल जल में
पत्थर का टुकड़ा

(2)
स्नेहिल अंगुलियों की
छुवन मांगता है मन..
बन्द दृगों की ओट में
नींद नहीं..जलन भरी है

(3)
दिखावे से भरपूर
ढेर सारी गर्मजोशी
आजकल के
रिश्ते-नाते भी ..
हायब्रिड गुलाब 
जैसे लगते हैं

★★★

मंगलवार, 12 नवंबर 2019

"फैसला"

उसकी दिनचर्या तारों भरी भोर से आरम्भ हो अर्द्धरात्रि में नीलाकाश की झिलमिल रोशनी के साथ ही समाप्त
होती थी । अक्सर काम करते करते वह प्रश्न सुनती - "तुम ही कहो ? कमाने वाला एक और खाने वाले दस..मेरे बच्चों का भविष्य मुझे अंधकारमय ही दिखता है ।" और वह सोचती रह जाती..,तीन माह पूर्व की नवविवाहिता के पास इन सवालों का कोई जवाब नहीं था ।
 "सुनो ! मायके जा रही हो ? जब तक नहीं बुलायें वहीं
रहना । यहाँ टेंशन चल रही है । जैसे ही सब सही होगा
बुला लेंगे ।" आदेश पर उसने गर्दन हिला कर स्वीकृति
दे दी चलते-चलते ।
महिने भर बाद मायके में सुगबुगाहट - "कब जा रही हो ' लेने कब आ रहे हैं ?" फिर सवाल..लेकिन जवाब कहाँ थे उसके पास । लगभग तीन महिने बाद उसने निर्णय लिया सब सवालों के जवाब देने का । स्कूल- कॉलेज खुल गए थे
नये सत्र के साथ । वह कॉलेज गई.. एडमीशन की प्रक्रिया पूरी की..घर आ कर जैसे ही सब को अपने निर्णय से
अवगत कराया , कानाफूसी और आलोचनाओं के तेवर
तीखे हो गए  - "आजकल की लड़कियां..धैर्य और सहनशक्ति छू कर भी नहीं निकली इन्हें ।" वह जानती थी तेवर और तीखे होंगे और आलोचनाएँ भी मगर फैसला हो चुका था ।

★★★★★

गुरुवार, 7 नवंबर 2019

"क्षणिकाएं"

(1)
बेसबब नंगे पाँव ...
भागती सी जिन्दगी
कट रही है बस यूं …
जैसे एक पखेरु 
लक्ष्यहीन उड़ान में...
समय के बटुए से
रेजगारी खर्च रहा हो …

(2)

नेह के धागों से 
बुनी थी वह  कमीज
वक्त के साथ...
नेह के तन्तु
सूखते गए और….
कमीज की सींवन दुर्बल
एक युग  के बाद
धूल अटी गठरी से ...
उस कमीज का टुकड़ा
घनघनाया…
फोन की घंटी के रुप में...

★★★

सोमवार, 4 नवंबर 2019

"जिन्दगी"


वक्त की शाख पर
ढेरों लम्हें उगे थे
झड़बेरियों मे लदे बेरों सरीखे
कुछ-कुछ खट्टे
कुछ -कुछ मीठे
लम्हा-लम्हा चुन लिया चिड़िया के चुग्गे सा
भर लिया दामन में
और बस..बन  गई
अनुभूत पलों में पगी खट्टी- मीठी जिन्दगी

★★★

शुक्रवार, 1 नवंबर 2019

"अक्सर"

अक्सर खामोश लम्हों में
किताबें भंग करती हैं
मेरे मन की चुप्पी…
खिड़की से आती हवा के साथ
पन्नों की सरसराहट
बनती है अभिन्न संगी…
पन्नों से झांकते शब्द
सुलझाते हैं मन की गुत्थियां
शब्द शब्द झरता है पन्नों से
हरसिंगार के फूल सा…
नीलगगन में चाँद
बादलों की ओट से झांकता
धूसर सा लगता है…
कशमकश के लम्हों में
एक खामोश सी नज़्म
साकार हो उठती है अहसासों में
बस उसी पल…
प्रभाकर की अनुपस्थिति में
पूर्णाभा के साथ
मन आंगन में..सात रंगों वाला…
इन्द्र धनुष खिल उठता है 

★★★

मंगलवार, 29 अक्टूबर 2019

"वर्ण पिरामिड"

(1)
है
द्वैत
अद्वैत
मतान्तर
निर्गुण ब्रह्म
घट घट व्याप्त
प्रसून सुवासित
(2) 
 है
सृष्टि
अनन्त
निराकार
परमतत्व
अनहद नाद
आवरण भूलोक
(3)
है
पर्व
अनूप
भाईदूज
रक्षाकवच
बहन का नेह
सर्वकामना पू्र्ति
(4)
है
विश्व
बन्धुत्व
अन्तर्भाव
मूल आधार
परराष्ट्र नीति
महनीय भारत

🌸🌸🌸




मंगलवार, 22 अक्टूबर 2019

"वर्ण पिरामिड'

ओ 
मेरे
दीपक 
हर तम 
सकल हिय
कर ज्योतिर्मय 
हो प्रफुल्लित मन
✳️ ✳️ ✳️ ✳️
माँ
तेरी
ममता
स्नेहाशीष
रक्षा कवच
मेरे जीवन का
तुझ से सम्पूर्णता
✳️ ✳️ ✳️ ✳️