संभल कर चल !
सांझ के साये में...,
सांझ के साये में
घूमते हैं नर-पिशाच
तेरे संभले डग
और तेरी बुद्धिमता…,
तेरा रक्षा कवच है
खुद पर कर यकीन
तेरा यकीन ही
देगा तुझे ताकत
महिषासुरमर्दिनी सी …,
जानती तो है तू !
दोधारी तलवार है
तेरी जिन्दगी…
अबला है तो...
रोती क्यों हैं ?
सबला है तो
बेलौस क्यों है ?
शतरंज की बिसात
जैसी है जिन्दगी
जरा सी अनदेखी
पलट देती है बिसात
चंद हमदर्दी के अल्फाज़
और फिर…
वही ढाक के तीन पात
★★★
वही 'इंडिया शाइनिंग'
जवाब देंहटाएंवही 'जगद गुरु भारत'
लेकिन माओं, बहनों, बहुओं और बेटियों का क्या होगा?
वही 'ढाक के तीन पात'
सवाल तो बहुत हैं बस जवाब ही नदारद हैं ।
जवाब देंहटाएंवाहः बहुत उम्दा
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार !
हटाएंशतरंज की बिसात
जवाब देंहटाएंजैसी है जिन्दगी
जरा सी अनदेखी
पलट देती है बिसात
चंद हमदर्दी के अल्फाज़
और फिर…
वही ढाक के तीन पात
वाह!!!
बहुत ही सुन्दर सटीक...
उत्कृष्ट सृजन के लिए ढेर सारी बधाई मीना जी !
रचना सराहना हेतु हृदय कघ आसीम गहराईयों से आभार सुधा जी । सस्नेह वन्दे ।
हटाएंसुंदर!
जवाब देंहटाएंजी हार्दिक आभार ।
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (09-12-2019) को "नारी-सम्मान पर डाका ?"(चर्चा अंक-3544) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं…
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
चर्चा मंच पर रचना को मान देने हेतु सादर आभार ।
हटाएंशतरंज की बिसात
जवाब देंहटाएंजैसी है जिन्दगी
जरा सी अनदेखी
पलट देती है बिसात
चंद हमदर्दी के अल्फाज़
और फिर…
वही ढाक के तीन पात... वाह !बेहतरीन सृजन दीदी जी
सादर
आपकी प्रतिक्रिया से रचना को मुखरता मिली ..,हृदय से असीम आभार ।
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार अनुराधा जी ।
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (10-12-2019) को "नारी का अपकर्ष" (चर्चा अंक-3545) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हार्दिक आभार आदरणीय शास्त्री जी ।
जवाब देंहटाएं"अबला है तो...
जवाब देंहटाएंरोती क्यों हैं?
सबला है तो
बेलौस क्यों है?"
ब्लॉग पर उपस्थिति हेतु आपका हार्दिक आभार ।
जवाब देंहटाएंखुद का विश्वास ही काम आता है ...
जवाब देंहटाएंसच है महिषासुरमर्दिनी बन जाना जरूरी है आज नारी को ...
रचना को सार्थकता देती प्रतिक्रिया के हृदय से असीम आभार नासवा जी ।
हटाएंचंद हमदर्दी के अल्फाज़
जवाब देंहटाएंऔर फिर…
वही ढाक के तीन पात
वाह!!!
बहुत ही सुन्दर सटीक...
उत्कृष्ट सृजन...मीना जी
उत्साहवर्धन करती सुन्दर सराहनीय प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार संजय जी ।
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