'ताँका'
मुंशी प्रेमचंद के उपन्यास 'गोदान' के कथा नायक 'होरी' और उसके जैसी जिन्दगी जीते किसानों की मनस्थिति पर मन में उपजे भावों को अभिव्यक्त करने का एक प्रयास -
(1)
पूस की रात
देह में ठिठुरन
गिरता पाला
ठिठुरता अलाव
सोचों में डूबा मन
(2)
सर्दी या गर्मी
करता रखवाली
निज स्वप्नों की
श्रम सार्थक होगा
धनखेत खिलेगा
(3)
दुविधा भारी
बढ़ती महंगाई
मंडी की मंदी
दो पाटों में उलझी
पिसती सी जिन्दगी
★★★
दुविधा भारी
जवाब देंहटाएंबढ़ती महंगाई
मंडी की मंदी
दो पाटों में उलझी
पिसती सी जिन्दगी
यथार्थ ,सुंदर सृजन मीना जी ,सादर नमस्कार
जी..स्नेहाभिवादन कामिनी जी 🙏 हौसला अफजाई के लिए आपका हार्दिक आभार
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(20 -12 -2019) को "कैसे जान बचाऊँ मैं"(चर्चा अंक-3555) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता लागुरी 'अनु '
चर्चा मंच पर मेरे सृजन को मान देने के लिए हार्दिक आभार अनु जी ।
जवाब देंहटाएंसर्दी या गर्मी
जवाब देंहटाएंकरता रखवाली
निज स्वप्नों की
श्रम सार्थक होगा
धनखेत खिलेगा
बहुत सुंदर प्रिय मीना जी | होरी और उसके जैसे अन्य होरियों का जीवन इसी चिंतन में निकल जाता है , पर नहीं बदलते उनके नसीब | सस्नेह
सृजन का मर्म स्पष्ट करती सुन्दर सराहनीय हौसला अफजाई करती प्रतिक्रिया के लिए स्नेहिल आभार रेणु बहन ।
हटाएंबहुत शानदार
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार लोकेश जी ।
हटाएंसुंदर भाव पूर्ण ताँका सृजन मीना जी, सभी ताँका समानांतर सार्थक विषय पर ।
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत।
ताँका सृजन को मुखरता प्रदान करती सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ कुसुम जी ।
हटाएंदुविधा भारी
जवाब देंहटाएंबढ़ती महंगाई
मंडी की मंदी
दो पाटों में उलझी
पिसती सी जिन्दगी
.....सीधे मन में उतरती मीना जी
हार्दिक आभार संजय जी। ।
हटाएंवाह उपन्यास की आत्मा को संजोने का प्रयास ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर तांका ...
उत्साहवर्धन करती अनमोल प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत बहुत आभार नासवा जी ।
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