(1)
बेसबब नंगे पाँव ...
भागती सी जिन्दगी
कट रही है बस यूं …
जैसे एक पखेरु
लक्ष्यहीन उड़ान में...
समय के बटुए से
रेजगारी खर्च रहा हो …
(2)
नेह के धागों से
बुनी थी वह कमीज
वक्त के साथ...
नेह के तन्तु
सूखते गए और….
कमीज की सींवन दुर्बल
एक युग के बाद
धूल अटी गठरी से ...
उस कमीज का टुकड़ा
घनघनाया…
फोन की घंटी के रुप में...
★★★
जीवन के यथार्थ को दर्शाती संवेदनशील रचनाएँ
जवाब देंहटाएंप्रणाम दी।
उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार शशि भाई ।
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 07 नवम्बर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को सांध्य दैनिक मुखरित मौन में साझा करने के लिए आभार दिग्विजय जी ।
हटाएंनिराशा से भरी सुन्दर क्षणिकाएं मीनाजी! जिगर मुरादाबादी का एक शेर याद आ गया -
जवाब देंहटाएंयूँ ज़िंदगी गुज़ार रहा हूँ, तेरे बगैर,
जैसे कोई गुनाह, किये जा रहा हूँ मैं.
आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ जैसवाल जी । हौसला अफजाई के लिए हार्दिक आभार ।
हटाएंबहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति मीना जी ,सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंसस्नेह नमस्कार कामिनी बहन । आपकी अनमोल प्रतिक्रिया सदैव उत्साहवर्धन करती है ।
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (08-11-2019) को "भागती सी जिन्दगी" (चर्चा अंक- 3513)" पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं….
-अनीता लागुरी 'अनु'
मेरे सृजन को चर्चा मंच में साझा करने के लिए हार्दिक आभार अनु जी ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति मीना जी
जवाब देंहटाएंहौसला अफजाई के लिए तहेदिल से आभार अनुराधा
हटाएंजी ।
भूली बिसरी सच्ची मोहब्बत आ ही जाती है एक दिन।
जवाब देंहटाएंकुछ तो हम बेसबब ही कर रहे हैं
जैसे आदत पड़ी हो करने की।
कमाल की क्षणिकाएं।
मेरी नई पोस्ट पर स्वागत है👉👉 जागृत आँख
सृजन की सराहना हेतु हार्दिक आभार रोहित जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ... दमदार ...
जवाब देंहटाएंदोनों क्षणिकाएं जीवन के रोष्टों के इर्द-गिर्द ... उनके ताने बाने को बाखूबी बयान करती हैं ...
उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार नासवा जी ।
हटाएंबिना मकसद की ज़िन्दगी को बाखूबी दर्शाती है पहली क्षणिका। वक्त भले ही रिश्तों में दूरियाँ पैदा कर दें लेकिन हमारी एक छोटी सी कोशिश ही उस रिश्ते को दोबारा जीवित कर देती है। जैसे कई बार पानी की कमी से मुरझाते हुए पौधा मृतप्राय तो हो जाता है लेकिन पानी की कुछ बूँदे ही उसके कृशकाय शरीर में ऊर्जा का संचार कर देती हैं और वह खिलखिलाने लगता है। बशर्ते वह बूँदे थोड़े थोड़े अंतराल में बरसती रहें।सुंदर क्षणिकाएं।
जवाब देंहटाएंविस्तृत व्याख्यात्मक प्रतिक्रिया से क्षणिकाओं को गति और सार्थकता मिली विकास जी । आपका तहेदिल से शुक्रिया ।
हटाएंक्या बात है...दमदार बहुत बढ़िया...काफी कुछ कह दिया आपने !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार संजय जी ।
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