नारी का व्यक्तित्व और कृतित्व सदैव रचनाकारों की
लेखनी का प्रिय विषय रहा है । मैं भी इस भावना से
परे नहीं हूँ । मुझे नारी का गृहस्थ जीवन की धुरी
होने के साथ-साथ उसका कर्मठ और बुद्धिमतापूर्ण
व्यक्तित्व बहुत मोहता है । नारी के उसी सशक्त
रुप को अपनी लेखनी से अंकित करने का प्रयास
मेरी तरफ से --
लेखनी का प्रिय विषय रहा है । मैं भी इस भावना से
परे नहीं हूँ । मुझे नारी का गृहस्थ जीवन की धुरी
होने के साथ-साथ उसका कर्मठ और बुद्धिमतापूर्ण
व्यक्तित्व बहुत मोहता है । नारी के उसी सशक्त
रुप को अपनी लेखनी से अंकित करने का प्रयास
मेरी तरफ से --
नही जानती किसी की नजर में , अहमियत मेरी ।
मैं जानती हूँ अपने घर में , हैसियत मेरी ।।
ओस का कतरा नहीं , जो टूट कर बिखर जाऊँ ।
कमजोर भी इतनी नहीं , यूं ही उपेक्षित की जाऊँ ।।
घर के कोने में सजा , 'कॉर्नर-पीस' नहीं हूँ मैं ।
मैं तुम्हारे सिर की पाग , अपना मान जानती हूँ मैं ।।
कोशिश भले ही कितनी भी हो , मुझको मिटाने की ।
चुन ली गर कोई डगर , फिर ना हट पाने की ।।
जीवनरुपी कैनवास पर , बिखरे अनगिनत रंग मैं ।
प्रकृति में सिमटी तेजोमय , सतरंगी आभा सी मैं ।।
★★★★★
बेहतरीन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंहौसला अफजाई के लिए तहेदिल से आभार लोकेश जी ।
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (३०-११ -२०१९ ) को "ये घड़ी रुकी रहे" (चर्चा अंक ३५३५) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
चर्चा मंच की प्रस्तुति में रचना को सम्मिलित करने के लिए आत्मिक आभार अनीता जी ।
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 29 नवम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएं"सांध्य दैनिक मुखरित मौन" में रचना को साझा करने के लिए सादर आभार यशोदा जी ।
हटाएंओस का कतरा नहीं , जो टूट कर बिखर जाऊँ ।
जवाब देंहटाएंकमजोर भी इतनी नहीं , यूं ही उपेक्षित की जाऊँ
बहुत सुंदर और सार्थक रचना मीना जी।
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के आत्मिक आभार अनुराधा जी ।
हटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंसादर आभार ।
हटाएंबहुत सुंदर भावपूर्ण रचना।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार नीतीश जी ।
हटाएंनारी शक्ति को जागृत करती हुई बहुत ही बेहतरीन कविता लिखी आपने सत्य कहा अगर वहअड़ तो कोई उसे उसके कर्मों से डिगा नहीं सकता है, वह मान सम्मान चाहती जरूर है लेकिन अगर कोई उसके मान सम्मान को तहस-नहस करने के लिए आगे बढ़ेगा तो यकीनन वह अपने बचाव के लिए खड़े होने का प्रयास करेगी बहुत ही अच्छी लगी आप की कविता आज के समय में ऐसी कविताएं पढ़कर हमें प्रेरित होकर अपने बचाव के लिए आगे आना चाहिए
जवाब देंहटाएंआपकी व्याख्यायित प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली अनु जी । ऊर्जावान और सारगर्भित टिप्पणी के लिए हृदय से आभार ।
हटाएंनारी के अंदर निहित शक्ति को जागृत करती भावपूर्ण रचना ,सादर नमन मीना जी
जवाब देंहटाएंस्नेहिल नमन कामिनी बहन । आपकी प्रतिक्रिया सृजन का मान और मेरा मनोबल संवर्धन करती है । हार्दिक आभार ।
हटाएंनारी किसी भी रूप में घर का अहम् अंग होती है ... इसकी उपेक्षा न करनी चाहिए न होनी चाहिए ... सच कहूं तो घर नारी से ही घर रहता है अन्यथा मकान इंटों को ... सार्थक अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंरचना का मर्म स्पष्ट करती सारगर्भित और सुन्दर समीक्षात्मक टिप्पणी के लिए आत्मिक आभार नासवा जी ।
हटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंजी हार्दिक आभार ।
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