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शुक्रवार, 22 नवंबर 2019

तांका

शाश्वत आभा
मनस्वी नगपति
आदि सृष्टि सी
स्वर्णिम रश्मियां
सौन्दर्य स्थितप्रज्ञ

मानस-सर
अमृत सम अम्बु
निर्बन्ध मुक्त
सुषमा नैसर्गिक
दृग-मन विस्मित

पुष्प गुच्छ सी
सुवासित मधुरम्
विबुध धरा
हिमगिरि आंचल
प्रकृति अनुपम

★★★★★

14 टिप्‍पणियां:

  1. अभिनव, अनुपम सुंदर ऋचाओं सी ,मन को शीतलता देती अभिराम अभिव्यक्ति मीना जी मन मोह लिया।

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  2. आपकी सुन्दर सराहनीय उत्साहवर्धित करती प्रतिक्रिया के लिए हृदय की असीम गहराईयों से आभार कुसुम जी ।

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  3. हाइकु के बाद यह दूसरी विधा से वाकिफ हुआ। सुन्दर ताँका। मैं भी इस विधा में कुछ रचने की कोशिश करूँगा।

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  4. पर्वतीय क्षेत्र प्राकृतिक सुषमा के धनी होते हैं । हाइकु और तांका प्रकृति से जुड़ाव रखते हैं । इस विधा पर आपके सृजन की प्रतीक्षा रहेगी । हार्दिक आभार विकास जी ।

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  5. जी नमस्ते,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२३ -११ -२०१९ ) को "बहुत अटपटा मेल"(चर्चा अंक- ३५२८) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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    उत्तर
    1. बहुत बहुत आभार अनीता जी मंच प्रस्तुति के लिए मेरे सृजन को मान देने के लिए ।

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  6. आप तो पन्त जी की योग्य उत्तराधिकारी हैं मीना जी !

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    उत्तर
    1. आपकी सराहना अनमोल है गोपेश जी । बहुत बहुत
      आभार ।

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"