(1)
थके तन में बोझल मन
डूब रहा है यूं .....
जैसे..अतल जल में
पत्थर का टुकड़ा
(2)
स्नेहिल अंगुलियों की
छुवन मांगता है मन..
बन्द दृगों की ओट में
नींद नहीं..जलन भरी है
(3)
दिखावे से भरपूर
ढेर सारी गर्मजोशी
आजकल के
रिश्ते-नाते भी ..
हायब्रिड गुलाब
जैसे लगते हैं
★★★
लाजवाब मीना जी कितनी सटीक कितनी वास्तविक ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति।
आपकी प्रतिक्रिया से उत्साह और ऊर्जा का संचार हुआ मन में..हार्दिक आभार कुसुम जी ।
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवावार 17 नवम्बर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएं"सांध्य दैनिक मुखरित मौन" मेरी क्षणिकाओं को सम्मिलित करने के लिए सादर आभार यशोदा जी ।
हटाएंवाह !आदरणीया दीदी जी
जवाब देंहटाएंनि:शब्द हूँ.अप्रतिम सृजन.गागर में सागर
तीनों क्षणिकाएँ एक से बढकर एक...
कुछ मेरा भी कहने का मन हुआ.
ख़्वाहिशों के शैल में
धूप-सी आहट चाहती हूँ
थक गयी ए ज़िंदगी
अब सुकून चाहती हूँ
सादर
वाह !! इतनी खूबसूरत प्रतिक्रिया !! सृजन का मान बढ़
हटाएंगया । मन की असीम गहराईयों से आभार अनीता ।
सस्नेह ।
बेहतरीन यथार्थ चित्रण दी।
जवाब देंहटाएंसुंदर क्षणिकायें
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दिखावे से भरपूर
ढेर सारी गर्मजोशी
आजकल के
रिश्ते-नाते भी ..
हायब्रिड गुलाब
जैसे लगते हैं।
सराहना भरी प्रतिक्रिया से क्षणिकाओं का मान बढ़ गया और मेरे मन में हर्ष ..बहुत बहुत आभार श्वेता । सस्नेह ।
हटाएंहारे हारे से फिरते हैं
जवाब देंहटाएंमन पिया की पहुंच से दूर
कोई खुश्बू तो हो चाहे बनावटी ही सही।
लाजवाब रचना
सृजन पर सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिये हार्दिक आभार रोहित
जवाब देंहटाएंजी । आपकी हौसला अफजाई सदैव उत्साहवर्धन करती है ।
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (18-11-2019) को "सर कढ़ाई में इन्हीं का, उँगलियों में, इनके घी" (चर्चा अंक- 3523) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं….
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रवीन्द्र सिंह यादव
चर्चा मंच पर मेरे सृजन को साझा करने के लिए सादर आभार रविंद्र जी ।
हटाएंदिखावे से भरपूर
जवाब देंहटाएंढेर सारी गर्मजोशी
आजकल के
रिश्ते-नाते भी ..
हायब्रिड गुलाब
जैसे लगते हैं
वाह बेहतरीन प्रस्तुति मीना जी।
सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को मान मिला अनुराधा जी । बहुत बहुत आभार ।
हटाएंहाइब्रिड गुलाब से रिश्ते ...
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ कहती हुयी हैं ये क्षणिकाएं ... गहराई समेटे हुए कुछ शब्द ...
लेखन का मर्म स्पष्ट करती प्रतिक्रिया से लेखनी को मान मिला नासवा जी । आपकी उपस्थिति सदैव हौसला अफजाई करती है । बहुत बहुत आभार ।
हटाएंआजकल के
जवाब देंहटाएंरिश्ते-नाते भी ..
हायब्रिड गुलाब
जैसे लगते हैं
वाह बेहतरीन गहराई से निकली मन को गहरे तक छूती प्रस्तुति मीना जी।
आपकी उपस्थिति सदैव लेखनी का मान संवर्द्धन कर
हटाएंउत्साहवर्धन करती है संजय जी । बहुत बहुत आभार ।
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार ओंकार जी ।
हटाएंजीवन से जुडी बातों को दर्शाती सुन्दर क्षणिकाएँ।
जवाब देंहटाएंआजकल के
रिश्ते-नाते भी ..
हायब्रिड गुलाब
जैसे लगते हैं
बहुत बहुत आभार विकास जी ।
हटाएंबहुत बहुत खूब
जवाब देंहटाएंसुंदर क्षणिकाएं
हार्दिक आभार लोकेश जी ।
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