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रविवार, 17 नवंबर 2019

"क्षणिकाएं"

(1)
थके तन में बोझल मन
डूब रहा है यूं .....
जैसे..अतल जल में
पत्थर का टुकड़ा

(2)
स्नेहिल अंगुलियों की
छुवन मांगता है मन..
बन्द दृगों की ओट में
नींद नहीं..जलन भरी है

(3)
दिखावे से भरपूर
ढेर सारी गर्मजोशी
आजकल के
रिश्ते-नाते भी ..
हायब्रिड गुलाब 
जैसे लगते हैं

★★★

24 टिप्‍पणियां:

  1. लाजवाब मीना जी कितनी सटीक कितनी वास्तविक ।
    बहुत सुंदर प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी प्रतिक्रिया से उत्साह और ऊर्जा का संचार हुआ मन में..हार्दिक आभार कुसुम जी ।

      हटाएं
  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवावार 17 नवम्बर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. "सांध्य दैनिक मुखरित मौन" मेरी क्षणिकाओं को सम्मिलित करने के लिए सादर आभार यशोदा जी ।

      हटाएं
  3. वाह !आदरणीया दीदी जी
    नि:शब्द हूँ.अप्रतिम सृजन.गागर में सागर
    तीनों क्षणिकाएँ एक से बढकर एक...
    कुछ मेरा भी कहने का मन हुआ.
    ख़्वाहिशों के शैल में
    धूप-सी आहट चाहती हूँ
    थक गयी ए ज़िंदगी
    अब सुकून चाहती हूँ
    सादर

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    1. वाह !! इतनी खूबसूरत प्रतिक्रिया !! सृजन का मान बढ़
      गया । मन की असीम गहराईयों से आभार अनीता ।
      सस्नेह ।

      हटाएं
  4. बेहतरीन यथार्थ चित्रण दी।
    सुंदर क्षणिकायें
    ----
    दिखावे से भरपूर
    ढेर सारी गर्मजोशी
    आजकल के
    रिश्ते-नाते भी ..
    हायब्रिड गुलाब
    जैसे लगते हैं।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना भरी प्रतिक्रिया से क्षणिकाओं का मान बढ़ गया और मेरे मन में हर्ष ..बहुत बहुत आभार श्वेता । सस्नेह ।

      हटाएं
  5. हारे हारे से फिरते हैं
    मन पिया की पहुंच से दूर
    कोई खुश्बू तो हो चाहे बनावटी ही सही।

    लाजवाब रचना

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  6. सृजन पर सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिये हार्दिक आभार रोहित
    जी । आपकी हौसला अफजाई सदैव उत्साहवर्धन करती है ।

    जवाब देंहटाएं
  7. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (18-11-2019) को "सर कढ़ाई में इन्हीं का, उँगलियों में, इनके घी" (चर्चा अंक- 3523) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं….
    *****
    रवीन्द्र सिंह यादव

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    उत्तर
    1. चर्चा मंच पर मेरे सृजन को साझा करने के लिए सादर आभार रविंद्र जी ।

      हटाएं
  8. दिखावे से भरपूर
    ढेर सारी गर्मजोशी
    आजकल के
    रिश्ते-नाते भी ..
    हायब्रिड गुलाब
    जैसे लगते हैं
    वाह बेहतरीन प्रस्तुति मीना जी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से सृजन को मान मिला अनुराधा जी । बहुत बहुत आभार ।

      हटाएं
  9. हाइब्रिड गुलाब से रिश्ते ...
    बहुत कुछ कहती हुयी हैं ये क्षणिकाएं ... गहराई समेटे हुए कुछ शब्द ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. लेखन का मर्म स्पष्ट करती प्रतिक्रिया से लेखनी को मान मिला नासवा जी । आपकी उपस्थिति सदैव हौसला अफजाई करती है । बहुत बहुत आभार ।

      हटाएं
  10. आजकल के
    रिश्ते-नाते भी ..
    हायब्रिड गुलाब
    जैसे लगते हैं
    वाह बेहतरीन गहराई से निकली मन को गहरे तक छूती प्रस्तुति मीना जी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी उपस्थिति सदैव लेखनी का मान संवर्द्धन कर
      उत्साहवर्धन करती है संजय जी । बहुत बहुत आभार ।

      हटाएं
  11. जीवन से जुडी बातों को दर्शाती सुन्दर क्षणिकाएँ। 
    आजकल के
    रिश्ते-नाते भी ..
    हायब्रिड गुलाब
    जैसे लगते हैं

    जवाब देंहटाएं
  12. बहुत बहुत खूब
    सुंदर क्षणिकाएं

    जवाब देंहटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"