उसकी दिनचर्या तारों भरी भोर से आरम्भ हो अर्द्धरात्रि में नीलाकाश की झिलमिल रोशनी के साथ ही समाप्त
होती थी । अक्सर काम करते करते वह प्रश्न सुनती - "तुम ही कहो ? कमाने वाला एक और खाने वाले दस..मेरे बच्चों का भविष्य मुझे अंधकारमय ही दिखता है ।" और वह सोचती रह जाती..,तीन माह पूर्व की नवविवाहिता के पास इन सवालों का कोई जवाब नहीं था ।
"सुनो ! मायके जा रही हो ? जब तक नहीं बुलायें वहीं
रहना । यहाँ टेंशन चल रही है । जैसे ही सब सही होगा
बुला लेंगे ।" आदेश पर उसने गर्दन हिला कर स्वीकृति
दे दी चलते-चलते ।
महिने भर बाद मायके में सुगबुगाहट - "कब जा रही हो ' लेने कब आ रहे हैं ?" फिर सवाल..लेकिन जवाब कहाँ थे उसके पास । लगभग तीन महिने बाद उसने निर्णय लिया सब सवालों के जवाब देने का । स्कूल- कॉलेज खुल गए थे
नये सत्र के साथ । वह कॉलेज गई.. एडमीशन की प्रक्रिया पूरी की..घर आ कर जैसे ही सब को अपने निर्णय से
अवगत कराया , कानाफूसी और आलोचनाओं के तेवर
तीखे हो गए - "आजकल की लड़कियां..धैर्य और सहनशक्ति छू कर भी नहीं निकली इन्हें ।" वह जानती थी तेवर और तीखे होंगे और आलोचनाएँ भी मगर फैसला हो चुका था ।
नये सत्र के साथ । वह कॉलेज गई.. एडमीशन की प्रक्रिया पूरी की..घर आ कर जैसे ही सब को अपने निर्णय से
अवगत कराया , कानाफूसी और आलोचनाओं के तेवर
तीखे हो गए - "आजकल की लड़कियां..धैर्य और सहनशक्ति छू कर भी नहीं निकली इन्हें ।" वह जानती थी तेवर और तीखे होंगे और आलोचनाएँ भी मगर फैसला हो चुका था ।
★★★★★
हृदय को मंथन करती बहुत सार्थक लघु कथा मीना जी ।
जवाब देंहटाएंबिन बोले बिना कहे सुने एक दृढ़ निश्चय का जो भाव आपने दिया है कहानी के अंत में वो आत्ममुग्ध कर गया।
आपकी सराहनीय सुन्दर सार्थक प्रतिक्रिया से लेखन सफल हुआ कुसुम जी ...त्वरित प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार ।
हटाएंबहुत खूब ...
जवाब देंहटाएंये सच है लोग, जमाना पूछता है पर फैंसला ले लेना चाहिए और समय रहते लेना चाहिए ... अच्छा मंथन ...
लघुकथा को सार्थकता प्रदान करती आपकी प्रतिक्रिया से मन अभिभूत हुआ...हृदयतल से धन्यवाद नासवा जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लघुकथा। लड़कियों के पास आत्मनिर्भर होने के अलावा और कोई रास्ता नहीं सम्मान से जीने का।
जवाब देंहटाएंआपकी उपस्थिति सदैव मुझे हर्ष और सृजन को सार्थकता देती है मीना जी ।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (13-11-2019) को "गठबन्धन की नाव" (चर्चा अंक- 3518) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
कल की चर्चा मंच की प्रस्तुति में मेरी लघुकथा को स्थान देकर मान देने के आपका हार्दिक आभार आदरणीय ।
हटाएंसही फैसला लिया नायिका ने, क्यों और कब तक जवाब दिया जाए। बहुत सुंदर और सार्थक सृजन 👌💐
जवाब देंहटाएंआपकी सुन्दर, सार्थक प्रतिक्रिया पा कर सृजन को सार्थकता मिली अनुराधा जी । बहुत बहुत आभार ।
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में बुधवार 13 नवम्बर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएं"पाँच लिंकों का आनन्द" में मेरी लघुकथा को साझा करने के लिए हृदयतल से आभार आपका..सादर ।
हटाएंनारी की विडंबना को बहुत ही सुंदर तरीके से व्यक्त किया हैं आपने।
जवाब देंहटाएंहौसला अफजाई के लिए हृदय से आभार ज्योति जी ।
हटाएंलोग बस बाते बनाते हैं। हमे उनकी परवाह किये बिना वह करना चाहिए जो सही है। अक्सर ऐसा फैसला लेने में लोग झिझकते हैं जो कि नहीं होना चाहिए। सार्थक लघु कथा। फैसला लेना सही था। जल्दी लिया वो और अच्छा था।
जवाब देंहटाएंआपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से लघुकथा को सार्थकता मिली विकास जी । उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत
हटाएंआभार ।
शानदार फ़ैसला मीना जी!
जवाब देंहटाएंआपकी लघुकथा बड़ी शिद्दत से स्त्री जीवन की ऊहापोह और दो पाटों के बीच पिसती हुई स्त्री का बेहतर भविष्य के लिये आत्मनिर्भर होने का समयोचित फ़ैसला बयां करती है।
प्रेरक एवम् उद्देश्यपूर्ण लघुकथा।
बधाई एवं शुभकामनाएं।
लिखती रहिए।
लघुकथा का मर्म स्पष्ट करती हुई आपकी सारगर्भित टिप्पणी के लिये सादर आभार रविन्द्र जी । आपकी प्रतिक्रिया सदैव उत्साहवर्धन करती है । सादर...
हटाएंवाह!!मीना जी ,बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति । सही है समय पर लिया गया फैसला ,जिदंगी परिवर्तित कर देता है । एक अच्छी सीख देती हुई लघुकथा ,कथा लघु है ,पर संदेश बहुत बडा़ ..।
जवाब देंहटाएंआपकी उपस्थिति सदा उत्साहवर्धन करती है शुभा जी । सराहना सम्पन्न सृजन को सार्थकता देती प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार ।
हटाएंसार्थक लेखन ....पूर्वाग्रहों को तोड़कर आज की नारी को स्वयं ही प्रगति की राह प्रशस्त करनी होगी । मानवीय दंद्व को उकेरती सुंदर लघुकथा ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर सराहना सम्पन्न उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार पल्लवी जी ।
हटाएंMeena जी
जवाब देंहटाएंसच कहूं... उठ कर सेल्यूट मारने को जी किया। और वो कहते हैं न ""तालियां रुकनी नहीं चाहियें "" वो वाली फीलिंग"1 पढ़ते पढ़ते अंत tak पहुंची और इक रौद्र मगर गुस्सैल स्वर कौंध उठा " शाबाश""
बहुत ही प्रभावशाली और ताक़त भरा लेखन
बधाई एवं शुभकामनाएं।
जोया जी,
हटाएं'अभिभूत हूँ आपके प्रंशसा भरे शब्दों से' मान बढ़ा लेखन
का..,आपकी अनमोल टिप्पणी प्रेरित और मार्ग प्रशस्त करेगी बेहतर सृजन के लिए । बहुत बहुत आभार ।
बहुत उम्दा
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार लोकेश जी ।
हटाएंबहुत ही सुंदर सृजन मन को छूती अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसादर
हौसला अफजाई के लिए हृदय से सस्नेह आभार अनीता जी!
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