नारी का व्यक्तित्व और कृतित्व सदैव रचनाकारों की
लेखनी का प्रिय विषय रहा है । मैं भी इस भावना से
परे नहीं हूँ । मुझे नारी का गृहस्थ जीवन की धुरी
होने के साथ-साथ उसका कर्मठ और बुद्धिमतापूर्ण
व्यक्तित्व बहुत मोहता है । नारी के उसी सशक्त
रुप को अपनी लेखनी से अंकित करने का प्रयास
मेरी तरफ से --
लेखनी का प्रिय विषय रहा है । मैं भी इस भावना से
परे नहीं हूँ । मुझे नारी का गृहस्थ जीवन की धुरी
होने के साथ-साथ उसका कर्मठ और बुद्धिमतापूर्ण
व्यक्तित्व बहुत मोहता है । नारी के उसी सशक्त
रुप को अपनी लेखनी से अंकित करने का प्रयास
मेरी तरफ से --
नही जानती किसी की नजर में , अहमियत मेरी ।
मैं जानती हूँ अपने घर में , हैसियत मेरी ।।
ओस का कतरा नहीं , जो टूट कर बिखर जाऊँ ।
कमजोर भी इतनी नहीं , यूं ही उपेक्षित की जाऊँ ।।
घर के कोने में सजा , 'कॉर्नर-पीस' नहीं हूँ मैं ।
मैं तुम्हारे सिर की पाग , अपना मान जानती हूँ मैं ।।
कोशिश भले ही कितनी भी हो , मुझको मिटाने की ।
चुन ली गर कोई डगर , फिर ना हट पाने की ।।
जीवनरुपी कैनवास पर , बिखरे अनगिनत रंग मैं ।
प्रकृति में सिमटी तेजोमय , सतरंगी आभा सी मैं ।।
★★★★★