Copyright

Copyright © 2024 "मंथन"(https://www.shubhrvastravita.com) .All rights reserved.

शुक्रवार, 18 अक्टूबर 2019

"समय "



सांझ की चौखट पर
आ बैठी दोपहरी
कब दिन गुजरा
कुछ भान  नही...
नीड़ों में लौट पखेरु
डैनों में भर
उर्जित जीवन
उपक्रम करते सोने का
वे कब सोये 
फिर कब जागे
पौ फटने तक
अनुमान नही...
गुजरा हर दिन
एक युग जैसा
कितने युग गुजरे
बस यूंहीं
अवचेतन मन को
ज्ञान नही...

★★★★★

22 टिप्‍पणियां:

  1. उपक्रम करते सोने का
    वे कब सोये
    फिर कब जागे
    पौ फटने तक
    अनुमान नही...

    सुंदर चिंतन।
    जिन प्रश्नों का उत्तर अवचेतन मन के पास रहता है, मानव उस पर ध्यान नहीं देता , परंतु जिन कुछ प्रश्नों का उत्तर उसके पास नहीं रहता, उस पर वह सदैव चिंतन करते रहता है, जो है मनुष्य उसे जानना नहीं चाहता, जो नहीं है उसके लिए व्याकुल है।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली शशि भाई । हार्दिक आभार ।

      हटाएं
  2. बहुत ही बेहतरीन रचना मीना जी

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत खूब मीना जी

    आपको ढेरों शुभकामनाएं

    मेरी नयी postदुआ  पर पधार कर होंसला बढ़ाए

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. स्वागत एवं बहुत बहुत आभार अश्विनी जी । आपकी रचना "दुआ" पढ़ी..बेहद अच्छा लिखते हैं आप । हार्दिक शुभकामनाएं ।

      हटाएं
  4. सांझ की चौखट पर
    आ बैठी दोपहरी
    कब दिन गुजरा
    कुछ भान नही...
    वाह!!!
    बहुत ही सार्थक, सारगर्भित, लाजवाब भावाभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी अनमोल प्रतिक्रिया से लेखन को सार्थकता मिली सुधा जी । उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत आभार ।

      हटाएं
  5. इंतज़ार में या वियोग में डूबी हुई अपलक नजरों को समय के पंखों का क्या भान।
    प्यारी रचना।
    मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है 👉👉  लोग बोले है बुरा लगता है

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हौसला अफजाई के लिए हार्दिक आभार रोहित जी ।
      आपकी रचना "लोग बोले हैं बुरा लगता है" कभी अभी पढ़ी आपका लेखन सदैव उम्दा ही होता है । बहुत सुन्दर रचना है ।

      हटाएं
  6. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (२० -१०-२०१९ ) को " बस करो..!! "(चर्चा अंक- ३४९४) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मेरे सृजन को चर्चा मंच पर मान देने के लिए हृदयतल से आभार अनीता जी ।

      हटाएं
  7. उत्तर
    1. स्वागत आपका ब्लॉग पर नीलांश जी । उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत आभार आपका ।

      हटाएं
  8. मीना दी,मानव मन हमेशा सवालों में उलझा रहता हैं। मानव मन की इस स्थिति को बहुत ही सुंदरता से व्यक्त किया हैं आपने।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत आभार ज्योति बहन ।

      हटाएं
  9. सुन्दर और सार्थक कविता शब्दों में अपनापन सा लगता है

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अपनत्व भरी आपकी अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार संजय जी !

      हटाएं
  10. यही जीवन है ... इसका अनुमान कहाँ रह पाता है ...
    कब सांझ आ जाती है ... अँधेरा सब को लील लेता है ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. रचना के भाव संवर्द्धित करती अनमोल प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार नासवा जी ।

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"