"शरद पूर्णिमा का चाँद"
चाँदी जैसी आब लिए
धवल ज्योत्सना की
ऊँगली थाम...
बादलों पर कर सवारी
नीलाम्बर आंगन में
उतरा है अपनी
पूरी ठसक भरी
सज-धज के साथ
शरद पूर्णिमा का चाँद
रात की सियाही में
कहीं भी..धरती पर उगे
अनगिनत दिपदिपाते
अपने सरीखे दिखते
भाई-बंधुओं के बीच
ठगा सा सोचता है
रूकूं या वापस जाऊँ..
★★★★★
बहुत बहुत सुंदर अलग सा अहसास ।
जवाब देंहटाएंसच कृत्रिम रोशनी ने लगता है चांद की रौनक चुरा ली हो ।
सुंदर प्रस्तुति मीना जी ।
शरद पूर्णिमा आपके जीवन में सुधा रौशन करें, सदा सर्वदा।
आपकी शुभेच्छाएँ और स्नेह सदैव मेरे लिए अनमोल थाती है कुसुम जी !! हृदय की असीम गहराईयों से आभार !! मेरी लेखनी को सार्थकता मिली आपकी अनमोल सराहना से ।
हटाएंचन्द्रमा की सुंदरता सी मनमोहक रचना ,सादर नमन मीना जी
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार कामिनी जी !! आपकी अनमोल प्रतिक्रिया सदैव उत्साहवर्धन करती है ।
हटाएंचन्द्रमा की सुंदरता के अहसासों को शब्द देकर कितनी सहज और सुन्दर रचना रच डाली है.....
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद संजय जी !
हटाएंचाँद की सुंदरता का बहुत ही सुंदर वर्णन किया हैं आपने,मीना दी।
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत आभार ज्योति बहन ।
हटाएंबहुत सुंदर रचना मीना जी
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार अनुराधा जी ।
हटाएं