(1)
गहरे में उतरो तो ही मिलते हैं मोती ।
उथले में तो काई-गारा ही हाथ लगता है ।
उत्कृष्टता वक्त और हुनर मांगती है ।।
(2)
खिड़कियों का अस्तित्व ताजगी से जुड़ा है ।
व्यर्थ आगमन बहिर्गमन के लिए नही ।
अनावश्यक हस्तक्षेप से मर्यादाएं टूटती हैं ।।
(3)
चलते रहना है अनवरत गंतव्य तक ।
रूकना और मुड़ कर देखना कैसा ?
नदियों का स्वभाव लौटना नहीं होता ।।
★★★★★
त्रिवेणी बहुत अच्छी लगी.
जवाब देंहटाएंहर तीसरी पंक्ति ऊपर लिखित दो का सार है.
मेरी नई पोस्ट पर स्वागत है आपका 👉🏼 ख़ुदा से आगे
आपकी अनमोल प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद रोहित जी । आपका सृजन अत्यंत उम्दा है ।
हटाएंलाजवाब त्रिवेणी मीना जी सार्थक तो हैं ही साथ ही गहनता लिए अप्रतिम विचार ।
जवाब देंहटाएंआपकी प्रतिक्रिया सदैव लेखन को सार्थकता प्रदान करती है कुसुम जी । हृदयतल से आभार ...
हटाएंसुंदर, सार्थक और सटीक उपदेश देती रचना
जवाब देंहटाएंप्रणाम, दीदी जी
शुभाशीष सहित हृदयतल से आभार शशि भाई ।
हटाएंआपकी हर एक पंक्ति सुविचार के रूप में मेरी कक्षा के फलक पर सजेगी मीना जी ! कितनी गहराई है हर एक विचार में !
जवाब देंहटाएं"उत्कृष्टता वक्त और हुनर मांगती है ।।"
एक शिक्षिका के द्वारा दिया यह सम्मान मेरे लिए बहुत बड़ा सम्मान है..लेखन सफल हुआ आपके मान भरे वचनों से । हृदयतल से आभार मीना जी ।
हटाएंजब भी व्यस्तता घेर लेती है ब्लॉग में बहुत कुछ पीछे रह जाता है ...अब जैसे आपके ब्लॉग पर कई दिनों बाद आना हुआ पर तो सुन्दर त्रिवेणी पढ़ने को मिली
जवाब देंहटाएंखिड़कियों का अस्तित्व ताजगी से जुड़ा है वाह .....सुंदर त्रिवेणी मीना जी
मुझे आपकी एक त्रिवेणी आज भी याद है मीना जी
पछुआ पुरूवाई संग सौंधी सी महक है
कहीं पहली बारिश की बूँद गिरी होगी ।
माँ के हाथ की सिकती रोटी यूं ही महका करती थी ।।
आपकी ब्लॉग पर उपस्थिति सदैव सृजनात्मकता को मान देती है संजय जी । जब भी पधारे आपका हार्दिक स्वागत है ।
हटाएंमेरे सृजन को मान देने के लिए हृदयतल से धन्यवाद ।
देखन में छोटी लगें, भाव किन्तु गंभीर !
जवाब देंहटाएंआपकी सराहना से लेखन का मान बढ़ा..हार्दिक धन्यवाद आपका ।
हटाएंभाव-गाम्भीर्य से लबालब 'त्रिवेणी' का वाचन दिल ख़ुश कर गया। गंभीर चिंतन से उभरी कविता कालजयी हो जाती है। नीतिगत संदेश जो व्यक्ति को सदैव तर-ओ-ताज़ा रखता है सृजन में दृष्टव होना चाहिए। इस कमी को बख़ूबी समझता है आपका सृजन।
जवाब देंहटाएंबधाई एवं शुभकामनाएँ।
लिखते रहिए।
आपकी सराहना भरी प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली...मनोबल संवर्द्धन के लिए आपका हार्दिक आभार ।
हटाएंवाह अति सुंंदर हर एक त्रिवेणी अति सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंतीन पंक्तियों में संपूर्ण सार लिखना सच में सराहनीय है।
आपकी लिखी त्रिवेणी मुझे सदा बेहद पसंद है दी और आपसे सीखना भी है।
बहुत बहुत आभार श्वेता मान देने के लिए .. तुम्हारी सराहनीय प्रतिक्रिया मेरे लिए सदैव अनमोल है ।
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (१३ -१०-२०१९ ) को " गहरे में उतरो तो ही मिलते हैं मोती " (चर्चा अंक- ३४८७) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
मेरे सृजन को चर्चा मंच की प्रस्तुति में सम्मिलित करने के लिए बहुत बहुत आभार अनीता जी ।
हटाएंवाह बहुत सुंदर आदरणीया
जवाब देंहटाएंउत्तम,अनुपम 👌
कोटिशः नमन आपकी पंक्तियों को
सुन्दर सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार आँचल जी ।
हटाएंब्शुत ही प्यारी त्रिवेणी भावनाओं की --
जवाब देंहटाएंये अंश तो मन को छू गया प्रिय मीना जी
लते रहना है अनवरत गंतव्य तक ।
रूकना और मुड़ कर देखना कैसा ?
नदियों का स्वभाव लौटना नहीं होता ।।
बहुत बड़ी बात कहदी आपने | सस्नेह शुभकामनायें आपके लिए |
आपकी उपस्थिति और सारगर्भित प्रतिक्रिया सदैव हौसला अफजाई करती है रेणु बहन । बहुत बहुत आभार ...,
हटाएंसुंदर व सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंआपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ.. हार्दिक धन्यवाद आपका ।
हटाएंउत्कृष्टता वक्त और हुनर मांगती है । एकदम सही।
जवाब देंहटाएंस्वागत आपका 'मंथन' पर.. हार्दिक धन्यवाद गोपाल जी ।
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