(1)
मानो या ना मानो
दिल की धडकनों जैसा
बेशुमार लगाव है तुम से
जेनेटिक प्रॉब्लम की सुनते ही
उसके लिए भी तो यूं ही
बेहिसाब प्यार छलका था
जैसे तुम्हारे लिए छलकता है
प्रतिदिन… प्रतिपल...
(2)
अजीब सी
हलचल होती है
दूध के उबाल सी….
जब कहीं विनम्रता को
निर्बलता समझ
लिया जाता है
दादुर के वक्ता होने पर
कोयल का मौन
कोयल की कमजोरी नहीं
उसका अपना मूड है
(3)
रिश्तों में गाढ़ापन हो तो
संबंधों में प्रगाढ़ता होती है
ठहराव के साथ….,
फिर रक्त का गाढ़ापन
जिन्दगी के लिए
खतरनाक और उसके
ठहराव में बाधा कैसे….,
कला और विज्ञान में
यहीं मूलभूत फर्क है
तथ्यों को सत्यता की खातिर
दोनों के अपने अपने तर्क हैं
✴️✴️✴️
बहुत बढ़िया क्षणिकाएँ, मीना दी।
जवाब देंहटाएंहौसला अफजाई के लिए स्नेहिल आभार ज्योति बहन !
हटाएंसुन्दर, सार्थक, हृदयस्पर्शी...सुंदर क्षणिकाएँ
जवाब देंहटाएंमीना जी मैं कभी कभी सोचता हूँ क्षणिकाएँ "अधूरी" कविताएं की तरह होती है जो लेखक और पाठकों को अपने मन में कविता को पूर्ण करने की इजाज़त देती हैं !!
संजय जी मैं अपने क्षणिका लेखन में कुछ ऐसा सोचती हूँ..."मन के गहरे भावों को छोटे से शब्द समूह में इस तरह बाँधना की बात का मर्म पढ़ते ही समझ में जाए क्षणिका होती है ।" आप बिलकुल सही हैँ बस कविता अधूरी नही होती..कम शब्दों में मन की बात होती है । बहुत बहुत आभार आपका मेरे उत्साहवर्धन के लिए ।
हटाएंसही है विज्ञान और कला दोनों अलग अलग तरीके से सही है जैसे
जवाब देंहटाएंविज्ञान तो अंधेरे को अंधेरा ही कहेगा
लेकिन कला में इसके मायने बदल जाते है परिस्थितियों के मुताबिक।
विनम्रता को कमजोरी समझना आजकल की रीत सी हो चली है। इसी वजह से गांधी जी के सिद्धांतों पर भी न जाने कितने सवाल उठा दिए हैं।
बेहद उम्दा।
पधारे- शून्य पार
सारगर्भित विश्लेषणात्मक प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार रोहित जी ।
हटाएं
जवाब देंहटाएंअजीब सी
हलचल होती है
दूध के उबाल सी….
जब कहीं विनम्रता को
निर्बलता समझ
लिया जाता है
दादुर के वक्ता होने पर
कोयल का मौन
कोयल की कमजोरी नहीं
उसका अपना मूड है...
बहुत सुन्दर सृजन मीना दी |
उत्साहवर्धन के लिए हृदयतल से आभार प्रिय अनीता बहन !
हटाएंजब कहीं विनम्रता
जवाब देंहटाएंनिर्बलता समझ
लिया जाता है
दादुर के वक्ता होने पर
कोयल का मौन
कोयल की कमजोरी नहीं
उसका अपना मूड है
वाह!!!!
सुन्दर,सार्थक एवं लाजवाब क्षणिकाएं
आपकी प्रतिक्रिया सदैव मनोबल वर्धन करती है सुधा जी !
हटाएंअसीम और सस्नेह आभार आपका ।
बहुत खूब ...
जवाब देंहटाएंकला और विज्ञान दोनों के अपने तर्क होते हैं और यही तर्क विपरीत होते हुए भी अपना अपना आनंद रखते हैं ... तीनों क्षणिकाएं प्रभावी ...
आपकी हौसला अफजाई सदैव उत्साहवर्धन करती है हार्दिक आभार नासवा जी ।
हटाएंबहुत ही सुंदर और गहरे भाव पिरोते हैं आपने हर क्षणिका में ।
जवाब देंहटाएंभाव स्पष्ट और प्रभावशाली।
वाह अप्रतिम।
बहुत बहुत आभार कुसुम जी ! आपकी ऊर्जात्मक प्रतिक्रिया सदैव सृजन को सार्थकता देती है । सस्नेह..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार अनुराधा जी ।
हटाएंदादुर के वक्ता होने पर
जवाब देंहटाएंकोयल का मौन
कोयल की कमजोरी नहीं
उसका अपना मूड है
वाह ! बहुत सार्थक बात प्रिय मीना जी | वाचालता के आगे मौन एक पर्वत सरीखी शक्ति रखता है | सभी क्षणिकाएं सार्थक और पठनीय | सस्नेह ==
लिखना सफल हुआ आपकी उर्जात्मक प्रतिक्रिया से रेणु
हटाएंबहन ! हृदय से बहुत बहुत आभार । सस्नेह...