तिनका तिनका जोड़
तरु शाखाओं के बीच
बड़े जतन से उन्होंने
बनाया अपना घर
सांझ ढलते ही पखेरू
अपना घर ढूंढ़ते हैं
यान्त्रिक मशीन ने
कर दी उनकी बस्ती नष्ट
टूटे पेड़ों को देख कर
विहग दुखित हो सोचते हैं
उनके घर की नींव पर
बहुमंजिल भवन बनेंगे
हर शाख घरों से पटी होगी
कंक्रीट के जंगल में
हर जगह मनु के घर होंगे
विकलता पर कर नियन्त्रण
पंछी दल चिन्तन करता है
सामर्थ्य हीन मानव
अपने दम पर कब पलता है
हम ढूंढे ठौर कोई
यह वही कदम धरता है
सामर्थ्य सबल है अपना
हम और कहीं रह लेंगे
रहने दो इसे यहीं पर
हम नई ठौर कर लेंगे
★★★★★
सामर्थ्य सबल है अपना
जवाब देंहटाएंहम और कहीं रह लेंगे
रहने दो इसे यहीं पर
हम नई ठौर कर लेंगे...
हृदय में वैमनस्य का भाव न रखने का बोध कराती सार्थक रचना..
सच तो यह है कि इस नश्वर जगत में कुछ भी किसी का नहीं है,
वह कहा गया है न चिड़िया रैन बसेरा..।
आपकी सारगर्भित हौसलाअफजाई करती और रचना को सार्थकता देती प्रतिक्रिया के लिए हृदय से असीम आभार ।
हटाएंअद्धभुत भावाभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन के लिए असीम आभार दीदी ।
हटाएंसच दी मनुष्य की आँखों में स्वार्थपरता की पट्टी बँधी है पर एक पक्षी को भी अपना धर्म पता।
जवाब देंहटाएंकितना सुंदर संदेश छिपा है मरती इंसानियत के बीच लोककल्याणकारी भाव।
बहुत अच्छी रचना।
सराहना भरी सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए स्नेहिल आभार श्वेता ।
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में शुक्रवार 20 सितंबर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएं"पांच लिंकों का आनन्द" में रचना को साझा करने के बहुत बहुत आभार रविंद्र जी
हटाएंसामर्थ्य सबल है अपना
जवाब देंहटाएंहम और कहीं रह लेंगे
रहने दो इसे यहीं पर
हम नई ठौर कर लेंगे
:)
khud ki kaabiliyat ka ehsaas hona bahut zaruri he.....aur kabiliyat hona bhi
bahut hi achaa rchnaa meena ji
bdhaayi swikaaresarthak rchnaa ke liye
Apki snehij pratikriya utsaah badhati hai Joya ji. Yunhi Sneh banaayen rakhe.bahut bahut aabhar.
हटाएंसामर्थ्य सबल है अपना
जवाब देंहटाएंहम और कहीं रह लेंगे
रहने दो इसे यहीं पर
हम नई ठौर कर लेंगे
निर्बल असहाय और कर भी क्या सकते हैं
सामर्थ्य और सबलता जब विध्वंस पर उतर आये
बहुत ही लाजवाब सटीक सार्थक सृजन...
वाह!!!
आपकी अमूल्य प्रतिक्रिया के सस्नेह आभार सुधा जी ।
हटाएं" सामर्थ्य हीन मानव "
जवाब देंहटाएंपखेरू का ये सोचना कि हम ही तो इनको ढूंढ़कर देते हैं रहने लायक जगह.. बेहद ही सटीक बात है ये.
शानदार रचना.
पधारें- अंदाजे-बयाँ कोई और
उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए असीम आभार रोहित जी ।
हटाएंलाजवाब रचना
जवाब देंहटाएंहौसला अफजाई के लिए तहेदिल से शुक्रिया पम्मी जी ।
हटाएंबहुत सुंदर रचना मीना जी
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार अनुराधा जी । सस्नेह...
हटाएंसामर्थ्य हीन मानव समझता कहाँ है । प्रभावी सृजन ।
जवाब देंहटाएंआपका स्वागत 'मंथन' पर 🙏..आपकी अनमोल प्रतिक्रिया से लेखन सफल हुआ । सादर..
हटाएंसबसे सबल कहा जाने वाला मानव कितना निर्बल और स्वार्थी हैं ये आपने बहुत सुंदरता से बतलाया आपने मीना जी ,नित पेड़ों को काट अपने स्वार्थ का समान बनाता है मानव और निर्बल कहलाने वाले पंछी अपना नया बसेरा ढूंढ़ते हैं,नया नीड़ बनाते हैं ।
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक अभिव्यक्ति।
सारगर्भित और रचना को प्रवाह देती आपकी सुन्दर सराहनीय प्रतिक्रिया के लिए सस्नेह आभार कुसुम जी ।
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (21-09-2019) को " इक मुठ्ठी उजाला "(चर्चा अंक- 3465) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
चर्चा मंच पर मेरी रचना को मान देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार ।
जवाब देंहटाएंपंच्छी क्या चाहे ...
जवाब देंहटाएंजीवन उमंग से भरे रहते हैं वे ... फिर चाहे आशियाना उजड़ जाए तो क्या फर्क पढता है ... बहुत लाजवाब रचना है ...
आपकी उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ.. बहुत बहुत आभार नासवा जी ।
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