खामोशी का मतलब
बेज़ारी नही होता
और मूर्खता तो कभी नही
कुदरत ने हमें बख़्शी है
बोलने के लिए एक जुबान
और सुनने को दो कान
सुनना और सुन कर गुनना
अहम् अंश हैं जीवन के
नीरवता में फूटता संगीत
देता सीख व्यवहार की
और फूंकता है प्राण
सुप्तप्राय: नीरस मन में
एकांत की शांति में
द्रुम-लताओं के बीच से
बहता मंद समीर
कानों में रस घोलता
कानों में रस घोलता
पखेरुओं का मीठा कलरव
मोती सदृश बरखा की बूँदें
धरा पर जब
मद्धिम मद्धिम गिरती हैं
मद्धिम मद्धिम गिरती हैं
बस खामोशियाँ
गुनगुनाने लगती हैं
★★★★★
(चित्र-गूगल से साभार)
निश्चित ख़ामोशी वह पड़ाव है, जहाँ तनिक ठहर कर हम चिंतन करते हैं। अपने और पराये की पहचान करते हैं और फिर इससे बाहर निकल मंद-मंद मुस्कुराते हुये जीवन को सार्थक करते हैं।
जवाब देंहटाएंसार्थक चिन्तन को दर्शाती रचना।
सादर प्रणाम।
सारगर्भित प्रतिक्रिया द्वारा उत्साहवर्धन के लिए आपका बहुत बहुत आभार ।
हटाएंवाह बेहतरीन रचनाओं का संगम।एक से बढ़कर एक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंBhojpuri Song Download
आपकी हौसला अफजाई करती प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार ।
हटाएंजी सही का कई बार प्रकृति के संगीत को सुनने के लिए खुद का खामोश होना जरूरी होता है। सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंसराहना भरी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद
हटाएंविकास जी।
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (15-09-2019) को "लेइसी लिखे से शेयर बाजार चढ़ रहा है " (चर्चा अंक- 3459) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
चर्चा मंच में रचना को सम्मिलित करन के लिए हार्दिक आभार अनीता जी ।
हटाएंबेहतरीन रचना सखी
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार सखी .
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार कविता जी ।
हटाएंआपकी लिखी रचना "पाँच लिंकों का आनन्द" के हम-क़दम के 88 वें अंक में सोमवार 16 सितंबर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंहमकदम के 88वें अंक में रचना को साझा करने के लिए बहुत बहुत आभार रविन्द्र जी ।
हटाएंद्रुम-लताओं के बीच से
जवाब देंहटाएंबहता मंद समीर
कानों में रस घोलता
पखेरुओं का मीठा कलरव।
वाह मीना जी अनुपम सृजन, अभिनव भाव लिए बहुत सुंदर रचना।
खामोशी सच मनन और चिंतन की पृष्ठभूमि है।
सार्थक।
आपका उत्साहवर्धन लेखन के प्रति रूझान द्विगुणित कर देता है कुसुम जी । बहुत बहुत आभार । सस्नेह...
हटाएंनिश्चित ख़ामोशी वह पड़ाव है, जहाँ तनिक ठहर कर हम चिंतन करते हैं। अपने और पराये की पहचान करते हैं और फिर इससे बाहर निकल मंद-मंद मुस्कुराते हुये जीवन को सार्थक करते हैं।
जवाब देंहटाएंसार्थक चिन्तन को दर्शाती रचना।
सादर प्रणाम।
पुनः बहुत बहुत आभार आपका । शुभाशीष आपकी लेखनी निरन्तर सफलता और प्रगति के आयाम तय करती रहे ।
हटाएंबेहतरीन रचना मीना जी
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार अनुराधा जी ।
हटाएंखामोशी गुनगुनाती है...
जवाब देंहटाएंवाह!!!
बहुत बहुत आभार सुधा जी ।
हटाएंबस खामोशियाँ
जवाब देंहटाएंगुनगुनाने लगती हैं
बहुत ही सुंदर रचना मीना जी ,कभी अभी खामोशियाँ भी गुनगुनाने लगती हैं ,सादर
कामिनी बहन आपकी उपस्थिति बहुत बड़ी सुखानुभूति है । बहुत बहुत आभार उत्साहवर्धन हेतु ।
हटाएंएकांत की शांति में
जवाब देंहटाएंद्रुम-लताओं के बीच से
बहता मंद समीर
कानों में रस घोलता
पखेरुओं का मीठा कलरव
मोती सदृश बरखा की बूँदें
धरा पर जब
मद्धिम मद्धिम गिरती हैं
बस खामोशियाँ
गुनगुनाने लगती हैं!
बहुत सुंदर भाव्प्र्ण सृजन प्रिय मीना जी | सच में कभी कभी खामोशियों में ये सब चीजें चार चाँद लगाकर उसे यादगार बना देती हैं | ख़ामोशी के मनभावन रंग से रंगी रचना के लिए हार्दिक बधाई प्रिय सखी |
सुन्दर सार्थक और आपकी अपनत्व से सरोबार प्रतिक्रिया से बहुत उत्साहवर्धन होता है प्रिय रेणु बहन । सस्नेह आभार ।
हटाएंखामोशी एक चिंतन है जो स्वतः ही स्वय के माध्यम से कानों में गुनगुनाती ही ...इसका आनद लेना ही अनुभव है जो सीखने से आ जाता है ...
जवाब देंहटाएंहौसलाअफजाई के लिए तहेदिल से आभार नासवा जी ।
हटाएंhmmmm...pr moun ko smjhnaa bhi bahut zaruri he....moun se vartaalaap kne waalon ki taqleef koi nhi smjh skta kyunki moun ko smjhnaa bahut mushkil hota he bahuton ke liye
जवाब देंहटाएंhmm..bahut achhi rchnaa
Moun Apne aatmbal ke liye .. Insaan apne aap me santulit hoga sarthak soch rakhega aaj nahi to kal ... Dusare uske moun Ko samjhenge ..aisa Mai sochati hoon. Apka Sneh atulneey hai mere liye. Bahut bahut aabhar Joya ji .
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