( 1 )
पहाड़ों पर
कई दिनों के बाद
धूप खिली है
ओक भर धूप पी
तुहिन कण
रूपा सा रूप लिए
बिखर गए
यत्र-तत्र सर्वत्र
गिरि गोद में
मोती से चमकते
आकर्षित करते
( 2 )
उतर आया
झील की सतह में
पूनो का चाँद
चन्द्रिका और तारे
संग संग में
जल के आंगन में
दूर गगन
मन्त्रमुग्ध तकता
होता विस्मित
नीरव झील तट
मूक गवाह
अनुपम दृश्य के
वसुधा -नभ
मोहित हो हँसते
मैत्री वेला के
मौन पहरेदार
देवदार, चिनार
★★★
वाह !बेहतरीन सृजन दी
जवाब देंहटाएंसादर
सस्नेह आभार अनु ।
हटाएंअद्भुत!! सुंदर शब्दों का चयन, सुंदर मन भावन उपमाएं,लघु विधा का सुंदरतम अलंकारी प्रयोग।
जवाब देंहटाएंअभिनव रचना मीना जी ।
उत्साहवर्धन के लिए तहे दिल से आभार कुसुम जी ।
हटाएंवाह बेहतरीन रचना।
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार सुजाता जी ।
जवाब देंहटाएंपहाड़ों की धुप उतरती है झरनों के साथ मोती बन के फ़ैल जाती है सतह पर ... प्राकृति के इस नैसर्गिक रूप को इन सबदों की महक में उतार दिया ... सुन्दर दोनों भाव ...
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार नासवा जी ।
जवाब देंहटाएंसुंदरता से मन के भावों को व्यक्त किया है...बहुत खूब
जवाब देंहटाएंसराहना भरी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद संजय जी ।
हटाएंयत्र-तत्र सर्वत्र
जवाब देंहटाएंsach to he....har jghaan hi to ...ye rchnaaye jo door draaj bethe logon ko jodhti hain...yahaan wahaan har jghaa
ache lekhn ke liye bdhaayi
Thanks a lot VenuS "ज़ोया".. bahut bahut swagat aapka blog par .
हटाएंवाह बेहद खूबसूरत प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार अनुराधा जी ।
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंभावनाओं से भरा मनोरम चोका प्रिय मीना जी | मैं इन सब विधाओं से अनभिग्य हूँ |
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