पहाड़ों की एक सांझ
गीले गीले से बादल
मोती सी झरती बूँदें
खाली बोझिल सा मन
ऐसे में चाय की प्याली
मन को स्पन्दित करती
प्राणों में उर्जा भरती
चिन्तन को प्रेरित करती
पंचभूत की है प्रधानता
जड़ चेतन मे सारे
यूं ही भागे फिरते हैं हम
मोह-माया के मारे
बूँद उठी सागर से
सागर में मिल जानी है
जीना जल की बूँद के जैसा
अपनी यही कहानी है
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