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कई बार आवाज दी मैने ....
कभी तुम्हे याद कर के
कभी खुद से उकता के..
दिल ने बहुत दिल से
बहुत बार दस्तक भी दी
तुम्हारे दरवाजे पर
मगर तुम्हारी खामोशी ….,
कहाँ मुखर होती थी
बस दस्तक की प्रतिध्वनि
लौट आती थी मुझ तक
मै कौन हूँ मुझको यह
जताने की खातिर .....,
सुना है आज कल तुम भी
मेरे जैसे बनने लगे हो
बेवजह यूं ही कभी कभी
राहें भटकने लगे हो
अक्सर तुम्हारी मौजूदगी
पुरानी पगडंडियों पर
दिखने लगी है
यह जान कर ..
मुझे अच्छा लगा या बुरा
पता नही मगर
एक बात कहूं...मानोगे
मेरी सुनोगे तभी तो
खुद को जानोगे..
मत दो अपेक्षित
दरवाजों पर दस्तक...
भूली राहें जुड़ नही पायेंगी
डाल लो अकेले रहने की आदत
धीरे धीरे यही दोस्त बन जाएगी
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एक बात कहूं...मानोगे
जवाब देंहटाएंमेरी सुनोगे तभी तो
खुद को जानोगे..
मत दो अपेक्षित
दरवाजों पर दस्तक...
भूली राहें जुड़ नही पायेंगी
डाल लो अकेले रहने की आदत
धीरे धीरे यही दोस्त बन जाएगी... बहुत सुंदर रचना मीना जी
हौसला अफजाई करती त्वरित प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से हार्दिक आभार अनुराधा जी ! सस्नेह...
हटाएंबस दस्तक की प्रतिध्वनि
जवाब देंहटाएंलौट आती थी मुझ तक
मैं कौन हूँ यह
जताने की खातिर
वाह क्या बढ़िया लिखा मीनाजी अप्रतीम।बहुत ही सुंदर रचना।
बहुत बहुत आभार सुजाता जी हौसला अफजाई के लिए..
हटाएंसस्नेह...
मीना जी बहुत सुंदर रचना है ।कवि कैसे कल्पना में अपने मन के भावों के अनुरूप दुसरे के भावों को रचता है, समझता है ,समाधान देता है और अपने में ही बहुत कुछ खोज लेता है।
जवाब देंहटाएंचाहे आत्मप्रवंचना कहो चाहे झुठी तसल्ली ।
गहरे भाव लिए एहसास।
आपकी व्याख्यात्मक प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह और सार्थकता मिली कुसुम जी ! स्नेहिल आभार...
हटाएंसुन्दर प्रेरित करती रचना
जवाब देंहटाएंहृदय से स्नेहिल आभार ऋतु जी !
हटाएंमत दो अपेक्षित
जवाब देंहटाएंदरवाजों पर दस्तक...
भूली राहें जुड़ नही पायेंगी
डाल लो अकेले रहने की आदत
धीरे धीरे यही दोस्त बन जाएगी
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, मीना दी।
हृदयतल से आभार ज्योति जी ! सस्नेह..
हटाएंदरवाजों पर दस्तक...
जवाब देंहटाएंभूली राहें जुड़ नही पायेंगी
डाल लो अकेले रहने की आदत
धीरे धीरे यही दोस्त बन जाएगी
बहुत ही खूबसूरत सा ख्याल है...हर पल को संजोना और फिर उसे हकीकत में बदलना भावमय करते शब्द....अच्छी लगी ये रचना
आपकी ऊर्जावान प्रतिक्रिया सृजनात्मकता के लिए सदैव उत्साहवर्धन करती है संजय जी !
हटाएंसुना है आज कल तुम भी
जवाब देंहटाएंमेरे जैसे बनने लगे हो
बेवजह यूं ही कभी कभी
राहें भटकने लगे हो....बेहतरीन सृजन प्रिय मीना दी जी
सस्नेह आभार प्रिय अनीता !!
हटाएंमेरी सुनोगे तभी तो
जवाब देंहटाएंखुद को जानोगे..
मत दो अपेक्षित
दरवाजों पर दस्तक...
भूली राहें जुड़ नही पायेंगी..... अहसासों की सघन आत्यंतिक अभिव्यक्ति!!
आपकी अनमोल प्रतिक्रिया पाकर लेखन सार्थक हुआ विश्वमोहन जी ।
हटाएंएक बात कहूं...मानोगे
जवाब देंहटाएंमेरी सुनोगे तभी तो
खुद को जानोगे..
मत दो अपेक्षित
दरवाजों पर दस्तक...
भूली राहें जुड़ नही पायेंगी
डाल लो अकेले रहने की आदत
धीरे धीरे यही दोस्त बन जाएगी!!!
मन के गहन एहसासों से भरा उद्बोधन प्रिय के नाम प्रिय मीना जी | एक कसक सी जगाता मार्मिक सृजन | सस्नेह
आपकी स्नेहिल टिप्पणी...,
हटाएंलेखन सार्थक हुआ रेणु जी !
असीम स्नेह सहित आभार !
जज़्बातों को कितना खुबसुरती से पिरोया है आपने !!!
जवाब देंहटाएंस्वागत एवं हार्दिक धन्यवाद नीतू करण :-)
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