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बुधवार, 17 जुलाई 2019

"दस्तक"

(This photo has been taken from Google)


कई बार आवाज दी मैने ....
कभी तुम्हे याद कर के
कभी खुद से उकता के..
दिल ने बहुत दिल से 
बहुत बार दस्तक भी दी
तुम्हारे दरवाजे पर
मगर तुम्हारी खामोशी ….,
कहाँ मुखर होती थी
बस दस्तक की प्रतिध्वनि
लौट आती थी मुझ तक
मै कौन हूँ मुझको यह
जताने की खातिर .....,
सुना है आज कल तुम भी
मेरे जैसे बनने लगे हो
बेवजह यूं ही कभी कभी
राहें भटकने लगे हो
अक्सर तुम्हारी मौजूदगी
पुरानी पगडंडियों पर 
दिखने लगी है 
यह जान कर ..
मुझे अच्छा लगा या बुरा
पता नही मगर 
एक बात कहूं...मानोगे
मेरी सुनोगे तभी तो 
खुद को जानोगे..
मत दो अपेक्षित 
दरवाजों पर दस्तक...
भूली राहें जुड़ नही पायेंगी
डाल लो अकेले रहने की आदत
धीरे धीरे यही दोस्त बन जाएगी

      ******   *** ******


20 टिप्‍पणियां:

  1. एक बात कहूं...मानोगे
    मेरी सुनोगे तभी तो
    खुद को जानोगे..
    मत दो अपेक्षित
    दरवाजों पर दस्तक...
    भूली राहें जुड़ नही पायेंगी
    डाल लो अकेले रहने की आदत
    धीरे धीरे यही दोस्त बन जाएगी... बहुत सुंदर रचना मीना जी

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    उत्तर
    1. हौसला अफजाई करती त्वरित प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से हार्दिक आभार अनुराधा जी ! सस्नेह...

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  2. बस दस्तक की प्रतिध्वनि
    लौट आती थी मुझ तक
    मैं कौन हूँ यह
    जताने की खातिर
    वाह क्या बढ़िया लिखा मीनाजी अप्रतीम।बहुत ही सुंदर रचना।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत आभार सुजाता जी हौसला अफजाई के लिए..
      सस्नेह...

      हटाएं
  3. मीना जी बहुत सुंदर रचना है ।कवि कैसे कल्पना में अपने मन के भावों के अनुरूप दुसरे के भावों को रचता है, समझता है ,समाधान देता है और अपने में ही बहुत कुछ खोज लेता है।
    चाहे आत्मप्रवंचना कहो चाहे झुठी तसल्ली ।
    गहरे भाव लिए एहसास।

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    1. आपकी व्याख्यात्मक प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह और सार्थकता मिली कुसुम जी ! स्नेहिल आभार...

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  4. मत दो अपेक्षित
    दरवाजों पर दस्तक...
    भूली राहें जुड़ नही पायेंगी
    डाल लो अकेले रहने की आदत
    धीरे धीरे यही दोस्त बन जाएगी
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, मीना दी।

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  5. दरवाजों पर दस्तक...
    भूली राहें जुड़ नही पायेंगी
    डाल लो अकेले रहने की आदत
    धीरे धीरे यही दोस्त बन जाएगी
    बहुत ही खूबसूरत सा ख्‍याल है...हर पल को संजोना और फिर उसे हकीकत में बदलना भावमय करते शब्‍द....अच्छी लगी ये रचना

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    उत्तर
    1. आपकी ऊर्जावान प्रतिक्रिया सृजनात्मकता के लिए सदैव उत्साहवर्धन करती है संजय जी !

      हटाएं
  6. सुना है आज कल तुम भी
    मेरे जैसे बनने लगे हो
    बेवजह यूं ही कभी कभी
    राहें भटकने लगे हो....बेहतरीन सृजन प्रिय मीना दी जी

    जवाब देंहटाएं
  7. मेरी सुनोगे तभी तो
    खुद को जानोगे..
    मत दो अपेक्षित
    दरवाजों पर दस्तक...
    भूली राहें जुड़ नही पायेंगी..... अहसासों की सघन आत्यंतिक अभिव्यक्ति!!

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    उत्तर
    1. आपकी अनमोल प्रतिक्रिया पाकर लेखन सार्थक हुआ विश्वमोहन जी ।

      हटाएं
  8. एक बात कहूं...मानोगे
    मेरी सुनोगे तभी तो
    खुद को जानोगे..
    मत दो अपेक्षित
    दरवाजों पर दस्तक...
    भूली राहें जुड़ नही पायेंगी
    डाल लो अकेले रहने की आदत
    धीरे धीरे यही दोस्त बन जाएगी!!!
    मन के गहन एहसासों से भरा उद्बोधन प्रिय के नाम प्रिय मीना जी | एक कसक सी जगाता मार्मिक सृजन | सस्नेह

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    उत्तर
    1. आपकी स्नेहिल टिप्पणी...,
      लेखन सार्थक हुआ रेणु जी !
      असीम स्नेह सहित आभार !

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  9. जज़्बातों को कितना खुबसुरती से पिरोया है आपने !!!

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मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"