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बुधवार, 24 जुलाई 2019

"क्षणिकाएँँ"

मन ऊब गया है अपने आप से
आज कल खुद से कुट्टी चल रही है 
वरना ऊब के लिए फुर्सत कहाँ….
जिन्दगी से तो अपनी गाढ़ी छनती है

अहसासों की जमीन को भी
होती है रिश्तों में उर्वरता की जरुरत 
माटी भी मांगती है चन्द बारिश की बूँदें...
सोंधी सी खुश्बू बिखेरने की खातिर

फोन उठाते ही उसने कहा --
क्या लाऊँ तुम्हारे खातिर  ?
नींद ले आना ढेर सारी…,
तुम्हारे साथ ही चली गई थी


                                 xxxxxxx

रविवार, 21 जुलाई 2019

"चोका"

(This image has been taken from Google)

सोचों मेंं डूबा
देख सृष्टि के रंग
माटी का लाल
कहीं बरस गया
तो अतिवृष्टि
कहीं भूली डगर
तो अनावृष्टि
पृथ्वी की विषमता
मन की पीड़ा
तोड़ कूल किनारे
बन्द दृगों से
बन के अश्रु बूँद 
बह निकली
आहत होता मन
तल्खी पा कर
घनीभूत सी पीड़ा
हिय में आई
अकुलाहट छाई
व्यर्थ सा लागे
दुविधा में उलझा
खुशियों का सपना

xxxxxxx



बुधवार, 17 जुलाई 2019

"दस्तक"

(This photo has been taken from Google)


कई बार आवाज दी मैने ....
कभी तुम्हे याद कर के
कभी खुद से उकता के..
दिल ने बहुत दिल से 
बहुत बार दस्तक भी दी
तुम्हारे दरवाजे पर
मगर तुम्हारी खामोशी ….,
कहाँ मुखर होती थी
बस दस्तक की प्रतिध्वनि
लौट आती थी मुझ तक
मै कौन हूँ मुझको यह
जताने की खातिर .....,
सुना है आज कल तुम भी
मेरे जैसे बनने लगे हो
बेवजह यूं ही कभी कभी
राहें भटकने लगे हो
अक्सर तुम्हारी मौजूदगी
पुरानी पगडंडियों पर 
दिखने लगी है 
यह जान कर ..
मुझे अच्छा लगा या बुरा
पता नही मगर 
एक बात कहूं...मानोगे
मेरी सुनोगे तभी तो 
खुद को जानोगे..
मत दो अपेक्षित 
दरवाजों पर दस्तक...
भूली राहें जुड़ नही पायेंगी
डाल लो अकेले रहने की आदत
धीरे धीरे यही दोस्त बन जाएगी

      ******   *** ******


शनिवार, 13 जुलाई 2019

"स्मृति मंजूषा"

स्वर्णिम हो उठी वसुंधरा 
ऊषा रश्मि आने के बाद
देख  नेहामृत बरसता
प्रकृति मेंं जागा अनुराग

कैनवास सी रत्नगर्भा
बिखरे अनगिनत गुलमोहर
पाथ मॉर्निंग वाक का
स्मृति मंजूषा की धरोहर

सांझ की उजास में
खग वृन्द नीड़ लौटते
देख भानु आगमन
नीड़ फिर से छोड़ते

जीया तूने जितना भी वक्त
मुझ से पहले या मेरे साथ
अपने मन की तुम जानो
मुझे रहेगा सब कुछ याद

  *******

सोमवार, 8 जुलाई 2019

"हम कदम"

(This photo has been taken from Google)

अनवरत भाग-दौड़ कभी खुद के पैरों पर खड़े होने की
जद्दोजहद तो कभी सब की अंगुली थाम कारवाँ के साथ
चलने की मशक्कत …, जीवन बीता जा रहा रहा था
गाड़िया लुहारों जैसा.. आज यहाँ-कल वहाँ ।  मेरे साथ
मेरे हम कदम बन भागते दौड़ते तुम ….., कब
Oasis की पहचान करना खुद सीख गए और कब उनकी
उपयोगिता मुझे सीखाते चले गए भान ही नही हुआ ।
कभी किसी उपन्यास में खुद को डुबोये एक ख्वाब देखा था इन्द्रधनुषी तितली सा ...जो कल्पित होते हुए भी मेरी आँखों
में जीवन्त था अपनी पूरी सम्पूर्णता के साथ…, उस ख्वाब
को मैं भूल गई थी किसी उपन्यास के बीच दबाये  
नोट की तरह । कभी फुर्सत के पलों में वह ख्वाब मैने
तुम से साझा किया था … आज वही पुराना उपन्यास तुमने
मेरी खुली हथेली पर रख दिया है…और इन्द्रधनुषी तितली
पंख फैलाये मेरी आँखों के सामने साकार है अपनी
पूरी जीवन्तता के साथ । थैंक्स...थैंक्स अ लॉट !!!
तुम्हारे नेह की मैं ऋणी रहूँगी युगों… युगों तक ।

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सोमवार, 1 जुलाई 2019

"अभिव्यक्ति"

नदी के पाट सी
हो गई अभिव्यक्ति
अनुभूतियों के लिए
चिंतन के तार ...
उलझे-बिखरे से
दूर-दूर नजर आते हैं
सच ही तो कहा है किसी ने...
'सोच गहरी हो तो फैसले
कमजोर पड़ जाते हैं'
अपने साथ भी कुछ ऐसा ही है
शिल्प के बंधन की
खोज में दो और दो का
जोड़ उलझ गया और
पाँच का सिरा ढूंढ़ते हुए
दिन यूं ही ढल गया
नारियल की डाली से
लुकाछिपी करते
चाँद के साथ चाँदनी भी
थक हार कर
बादलों में छुप गई
शून्य मे ताकती आँखे
मुट्ठी भर नींद के
आगोश में झपक गई
आधे-अधूरे ख्वाब...
रात भर नींद में
नज्म लिखते रहे
बस डायरी के सफहे
खाली थे वे
वैसे के वैसे रह गए

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