मन ऊब गया है अपने आप से
आज कल खुद से कुट्टी चल रही है
वरना ऊब के लिए फुर्सत कहाँ….
जिन्दगी से तो अपनी गाढ़ी छनती है
अहसासों की जमीन को भी
होती है रिश्तों में उर्वरता की जरुरत
माटी भी मांगती है चन्द बारिश की बूँदें...
सोंधी सी खुश्बू बिखेरने की खातिर
फोन उठाते ही उसने कहा --
क्या लाऊँ तुम्हारे खातिर ?
नींद ले आना ढेर सारी…,
तुम्हारे साथ ही चली गई थी
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