(1)
सांध्य आरती में,
जलती धूप सी ।
कुछ अनुभूत यादें,
जब भी आती हैं ।
मन के भूले-भटके,
छोर महकने लगते हैं ।
(2)
स्मृतियों का वितान
संकरा सा है...
जरा और खोल दो ।
यादों के जुगनू..
मन के बियाबान में
थोड़े और बढ़ गए हैं ।।
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बहुत बहुत सुंदर मनभावन मन में हल्की सी प्रीत जगाता कोमल सरस सृजन।
जवाब देंहटाएंआपकी अनमोल प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभारी हूँ कुसुम जी ।
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार जून 09, 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंमेरे सृजन को अपनी प्रस्तुति में स्थान देने के लिए मैं आप का हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ
हटाएंबहुत ही सुंदर मीना जी
जवाब देंहटाएंहृदयतल से आभार कामिनी जी ।
हटाएंवाह! बहुत सुन्दर!!!
जवाब देंहटाएंहृदयतल से आभार विश्वमोहन जी ।
हटाएंगज़ब
जवाब देंहटाएंक्षणिका बेहद खूबसूरत
क्षणिकाएं सार्थक हो गईंं आपकी सराहना पा कर ।
हटाएंबेहद खूबसरत दी...लाज़वाब क्षणिकायें👍
जवाब देंहटाएंस्नेहिल आभार श्वेता ।
हटाएंसुंदर....मन को हर्षाती सी क्षणिकाएं
जवाब देंहटाएंस्वागत आपका"मंथन" पर ... आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद आत्ममुग्धा जी ।
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार ओंकार जी ।
हटाएंयादें आपसी ही होती हैं ... महका जाती हैं जीवन के कोर कोर ...
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण लिखा है ....
बहुत बहुत आभार नासवा जी ।
हटाएंसुंदर शब्दों की माला मन को हर्षाती क्षणिकाएँ लाजवाब....मीना जी
जवाब देंहटाएंहृदयतल से आभार संजय जी ।
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