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शनिवार, 8 जून 2019

"क्षणिकाएँँ"





(1)

 सांध्य आरती में,
जलती धूप सी ।
कुछ अनुभूत यादें,
जब भी आती हैं ।
मन के भूले-भटके,
छोर महकने लगते हैं ।

(2)

स्मृतियों का वितान
संकरा सा है...
जरा और खोल दो ।
यादों के जुगनू..
मन के बियाबान में
थोड़े और बढ़ गए हैं ।।
     
       ********



20 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बहुत सुंदर मनभावन मन में हल्की सी प्रीत जगाता कोमल सरस सृजन।

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    1. आपकी अनमोल प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभारी हूँ कुसुम जी ।

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार जून 09, 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    उत्तर
    1. मेरे सृजन को अपनी प्रस्तुति में स्थान देने के लिए मैं आप का हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ

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  3. उत्तर
    1. क्षणिकाएं सार्थक हो गईंं आपकी सराहना पा कर ।

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  4. बेहद खूबसरत दी...लाज़वाब क्षणिकायें👍

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  5. सुंदर....मन को हर्षाती सी क्षणिकाएं

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. स्वागत आपका"मंथन" पर ... आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद आत्ममुग्धा जी ।

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  6. यादें आपसी ही होती हैं ... महका जाती हैं जीवन के कोर कोर ...
    भावपूर्ण लिखा है ....

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  7. सुंदर शब्दों की माला मन को हर्षाती क्षणिकाएँ लाजवाब....मीना जी

    जवाब देंहटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"