स्मृति के
गलियारों में
डूब कर मन
बस डूबता
चला जाता है
कभी रेशम की
उलझी सी
वीथियों में
तो कभी काँच की
किर्चों सी बिखरी
अंतहीन गलियों में
सारहीन
और व्यर्थ सी
बातों के
चक्रव्यूह
में मन
सिमट कर
रह जाता है
भ्रमित सा
चाहता है
भूलभुलैया
से निकलना
मगर चाह कर
भी निकल
नही पाता है
xxxxx
बहुत ही सुन्दर रचना सखी
जवाब देंहटाएंसादर स्नेह
बहुत बहुत आभार प्रिय अनीता!! सस्नेह...
हटाएंबहुत सुंदर मीना जी विधा कोई भी हो भावाभिव्यक्ति सदा लाजवाब होती है आपकी।
जवाब देंहटाएंअप्रतिम रचना ।
बातों के
चक्रव्यूह
में मन
सिमट कर
रह जाता है. . .
आपकी ऊर्जात्मक प्रतिक्रिया मन में उमंग जगाती है..अभिनव लेखन के लिए । सस्नेह आभार कुसुम जी !!
हटाएंब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 17/06/2019 की बुलेटिन, " नाम में क्या रखा है - ब्लॉग बुलेटिन“ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन में मेरी रचना सम्मिलित करने के लिए हृदयतल से आभार शिवम् जी ।
हटाएंआप तो दी हर लेखन के हर विधा में प्रयोग कर सकती हैं आपकी रचनात्मकता लाज़वाब है...बहुत सुंदर लिखा है..👌
जवाब देंहटाएंस्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए हृदय की गहराईयों से सस्नेह आभार श्वेता !!!
हटाएंवाह बहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार ऋतु जी ।
हटाएंस्मृति के गलियारे होते ही ऐसे हैं कि मन चाहकर भी नहीं निकल पाता है। सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार विकास जी ।
हटाएंमीना दी, चक्रव्यूह से निकलना ही तो जीवन की सबसे बड़ी चुनौती हैं। बहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार ज्योति जी ! सस्नेह..
हटाएंबेहतरीन रचना मीना जी
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार अनुराधा जी ! सस्नेह..
हटाएंबहुत खूब . जीवन सचमुच किसी चक्रव्यूह से कम नहीं .
जवाब देंहटाएंस्वागत आपका..आपकी अनमोल प्रतिक्रिया से लेखन के प्रति उत्साह में द्विगुणित वृद्धि हुई । सादर आभार..
हटाएंस्मृति के
जवाब देंहटाएंगलियारों में
डूब कर मन
बस डूबता
चला जाता है
.....बेहतीन
अलग अलग विधाओं की लेखन शैली पसंद आई मीना जी
आपकी प्रतिक्रिया सदैव लेखनी को सार्थकता और उत्साह प्रदान करती है । बहुत बहुत आभार संजय जी !
हटाएंबहुत खूब ...
जवाब देंहटाएंअच्छा है ये अंदाज़ भी ... थोडा और चुटीला हो तो स्वाद आ जाये ...
बहुत बहुत आभार नासवा जी ! आपका सुझाव ध्यान में रहेगा ।
हटाएंसुंदर प्रयोग।
जवाब देंहटाएंजी हृदय से आभार ।
हटाएं