गर्मियों में खुली छत पर रात में सोने से पहले खुले साफ आसमान में ताकते हुए तारों की चमक को निहारना, आकाशगंगा की आकृति की कल्पना करना और ध्रुव तारे को देखना आदत सी रही है । इस आदत को पंख मिले "सौर परिवार" पाठ पढ़ने के
बाद । हर चमकते तारे को मन मुताबिक ग्रह मान लेना और आकाश गंगा के साथ
ब्लैक होल की काल्पनिक तस्वीर उस जगह बना लेना जहाँ तारे दिखाई ना दे … प्रिय शगल था मेरा जिसमें कई बार ना चाहते हुए भी पूरा परिवार शामिल हो जाता ।
बचपन के साथ धीरे धीरे यह आदत भी पीछे रह गई लेकिन सर्दियों में फुर्सत के समय यह बचपन फिर लौट आया "वीनस" के साथ ….खाली समय में छत के आंगन की सीढ़ी पर बैठ शाम के धुंधलके में एक चमकते तारे में "शुक्र" ग्रह की कल्पना करना जिसे सब से सुन्दर ग्रह के रूप में जाना जाता है स्वभाव सा बन गया मेरा जो आज भी बरकरार है । मेरी कल्पना में शुक्र ग्रह का अक्स कुछ यूं उभरता है ––-
लो रात भर जाग कर ,
फिर थका भोर का तारा ।
दिन भर सोने दो…. ,
सांझ को फिर आएगा ।
टिमटिम करता... ,
निज पथ पर बढ़ता ।
कहीं है मन का वीनस ,
कहीं सांझ का तारा ।
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बहुत सुंदर प्रस्तुति है।
जवाब देंहटाएंमन के भाव मोती बन छोटे आलेख के बाद की कविता में चमक गये।
बहुत सुंदर मीना जी ।
आपकी उपस्थिति सदा ही मन को प्रसन्नता देती है और लेखन को सार्थकता । सस्नेह आभार कुसुम जी ।
हटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति दी👌👌...तारे देखना मुझे भी बहुत पसंद..:)
जवाब देंहटाएंअपनत्व भरी मुस्कान और "तारे देखना मुझे भी पसन्द है" मन को आल्हादित कर गया :-) स्नेहिल आभार श्वेता ।
हटाएंकहीं है मन का वीनस ,
जवाब देंहटाएंकहीं सांझ का तारा ।
वाह !!!बहुत ही सुंदर भाव मीना जी ,हर किसी के मन में छुपा एक वीनस होता हैं और साँझ होते ही आँखों को एक तारे का इंतज़ार ,लाज़बाब
आपकी सारगर्भित सराहना भरी प्रतिक्रिया बहुत अनमोल है कामिनी जी । सस्नेह आभार ।
हटाएंबहुत ही ख्प्प्बसूतर दृश्य बनाया है ... शुक्र की चमक बहुत कुछ कहती है ..
जवाब देंहटाएंलाजवाब भाव ...
सराहनीय उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली... बहुत बहुत आभार नासवा जी ।
हटाएंदिन भर सोने दो…. ,
जवाब देंहटाएंसांझ को फिर आएगा ।
टिमटिम करता...
शुक्र की चमक बहुत कुछ कहती है जिसे आपने बहुत सूंदर शब्दों में ढाला है
चन्द्रमा के बाद रात के आकाश में सबसे ज्यादा शुक्र ही है। शुक्र का आकार और घनत्व करीब-करीब पृथ्वी जैसा है....सुंदर भाव पसंद आये मीना जी
सारगर्भित विश्लेषण करती प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली संजय जी... तहेदिल से आभार ।
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति। तारे देखना मुझे भी अच्छा लगता है लेकिन अक्सर घर जाकर ही ये काम हो पाता है। शहर में तो दौड़ भाग के बीच में ठहरकर कुछ करना हो ही नहीं पाता है।
जवाब देंहटाएंसही कहते है भागदौड़ भरी जिन्दगी और शहरों में बहुमंजिली इमारतों और स्ट्रीट लाइट्स की चकाचौंध में तारों को देखना मुश्किल है... घर जा कर अपने को समय देना कहीं न कहीं हमें हमें अपनी जड़ों से जोड़ता है .. आभार अपने अनमोल पल मेरी प्रस्तुति के साथ साझा करने के लिए ।
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