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शनिवार, 15 जून 2019

"क्षणिकाएँ"

कुछ यादें
फाउंटेन पेन से
कागज पर उकेरी
इबारत सी होती हैं
भीग भले ही जाए
मगर अपना अक्स
नही खोती  है

खुशी से लबरेज़
चंद अल्फाज़ और
खनकती आवाज
देते हैं गवाही
इस बात की.., कि
नेह के धागे
बड़े मजबूत हैं

अविरल प्रवाह
बहता खारापन
बना उसकी पहचान
अपने या बेगाने
कितने ही अश्रु
भरे उर में…,
सिन्धु रहा गतिमान
xxxxx

22 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर और भावपूर्ण लिखा है दी।
    खूबसूरत एहसास से लबरेज़..👌

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  2. कितने ही अश्रु
    अविरल प्रवाह
    बहता खारापन
    भरे उर में…,
    सिन्धु रहा गतिमान
    बढ़िया रचना
    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली सखी !! सादर..

      हटाएं
  3. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (16 -06-2019) को "पिता विधातारूप" (चर्चा अंक- 3368) पर भी होगी।

    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ....
    अनीता सैनी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. "चर्चा मंच" पर मेरे सृजन को सम्मिलित करने के लिए सहृदय आभार अनीता जी ।

      हटाएं
  4. कितने ही अश्रु
    भरे उर में…,
    सिन्धु रहा गतिमान
    बहुत ही सुंदर ,भावपूर्ण चित्रण...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. उत्साहवर्धन करती स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार कामिनी जी ।

      हटाएं
  5. बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति मीना जी सार्थक क्षणिकाएं।
    गहरे अर्थ लिये सार्थक अभिव्यक्ति।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सस्नेह आभार कुसुम जी आपकी प्रतिक्रिया सदैव मन को आल्हादित करती है !!

      हटाएं
  6. नेह के धागे मजबूत ही होते हैं ... अगर उनको कोई माने ...
    अच्छी हैं सभी क्षणिकाएं ...

    जवाब देंहटाएं
  7. हौसला अफजाई के लिए तहेदिल से आभार नासवा जी ।

    जवाब देंहटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"