कुछ यादें
फाउंटेन पेन से
कागज पर उकेरी
इबारत सी होती हैं
भीग भले ही जाए
मगर अपना अक्स
नही खोती है
खुशी से लबरेज़
चंद अल्फाज़ और
खनकती आवाज
देते हैं गवाही
इस बात की.., कि
नेह के धागे
बड़े मजबूत हैं
अविरल प्रवाह
बहता खारापन
बना उसकी पहचान
अपने या बेगाने
कितने ही अश्रु
भरे उर में…,
सिन्धु रहा गतिमान
xxxxx
बहुत सुंदर और भावपूर्ण लिखा है दी।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत एहसास से लबरेज़..👌
स्नेहिल आभार श्वेता !!
हटाएंकितने ही अश्रु
जवाब देंहटाएंअविरल प्रवाह
बहता खारापन
भरे उर में…,
सिन्धु रहा गतिमान
बढ़िया रचना
सादर
आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली सखी !! सादर..
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (16 -06-2019) को "पिता विधातारूप" (चर्चा अंक- 3368) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
....
अनीता सैनी
"चर्चा मंच" पर मेरे सृजन को सम्मिलित करने के लिए सहृदय आभार अनीता जी ।
हटाएंकितने ही अश्रु
जवाब देंहटाएंभरे उर में…,
सिन्धु रहा गतिमान
बहुत ही सुंदर ,भावपूर्ण चित्रण...
उत्साहवर्धन करती स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार कामिनी जी ।
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार जोशी जी !
हटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार ओंकार जी !
हटाएंसुंदर भावपूर्ण
जवाब देंहटाएंआपका स्वागत एवन हृदयतल से आभार!!
हटाएंबहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति मीना जी सार्थक क्षणिकाएं।
जवाब देंहटाएंगहरे अर्थ लिये सार्थक अभिव्यक्ति।
सस्नेह आभार कुसुम जी आपकी प्रतिक्रिया सदैव मन को आल्हादित करती है !!
हटाएंसुन्दर क्षणिकाएँ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद विकास जी ।
हटाएंनेह के धागे मजबूत ही होते हैं ... अगर उनको कोई माने ...
जवाब देंहटाएंअच्छी हैं सभी क्षणिकाएं ...
हौसला अफजाई के लिए तहेदिल से आभार नासवा जी ।
जवाब देंहटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय ।
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