दोपहर का समय और दैनिक कामों में उलझी मैं कुछ सोच रही थी कि मोबाइल पर कोयल की कुहूक ने ध्यान अपनी ओर खींच लिया । जैसे ही कॉल अटैंड की उधर से बिना सम्बोधन के परिचित आवाज आई--'कब आओगी.. आठ बरस बीत गए । कल सपने में दिखी..कभी मिलने को मन नहीं करता ?'
उस लरजती आवाज से मन का कोई कोना भीग सा गया और भरे गले से मैने जवाब दिया--'आऊँगी ना..मन मेरा भी करता है । आप सब व्यस्त रहते हो..आऊँगी जल्दी ही.. वक्त निकाल कर ।'
'पक्का ना .., बहाना नहीं । मैं छुट्टी ले लूंगी एक-आध दिन की ।' इधर-उधर की कुशल-क्षेम के
बाद हम दोनों ने एक दूसरे से विदा ली ।
मोबाइल टेबल पर रखते हुए मैं सोच रही थी -- उम्र भर के नेह और आठ बरस के बिछोह के हिस्से में केवल एक-आध दिन । ---- 'आजकल वक्त बहुत कीमती हो गया है शायद ।'
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जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (25 -05-2019) को "वक्त" (चर्चा अंक- 3346) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
"चर्चा मंच" पर मेरे सृजन को माश देने के लिए हार्दिक आभार अनीता जी ।
हटाएंआजकल वक्त बहुत कीमती हो गया ज्यादा वक़्त देना थोड़ा मुश्किल होता है पर ये दुनियां और ये जीवन दोनों ही बहुत खूबसूरत है व्यस्त जीवन से चंद लम्हे चुरा कर अपनों के लिए हमेशा वक्त निकलना पड़ता है बहुत सी यादें जुड़ी होती हैं...दिल को सहलाता छोटा पर बेहद खूबसूरत संस्मरण !
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन करती अमूल्य टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार संजय जी ।
हटाएंबहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति मीना जी
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार अनुराधा जी ।
हटाएंदिल के दरवाज़े पर दस्तक देती सी बहुत खूबसूरत लघु कथा ! हार्दिक बधाई सार्थक सृजन के लिए मीना जी !
जवाब देंहटाएंआपकी अनमोल प्रतिक्रिया पाकर हार्दिक खुशी मिली । सादर आभार साधना जी !
हटाएंमन को छू गई लघु कथा।
जवाब देंहटाएंसच रिश्ते स्नेह प्रेम सब समय के मोहताज हो गये हैं बस फोन तक सिमट कर रह गये।
बहुत सुंदर मीना जी ।
स्नेहिल आभार कुसुम जी ! आपकी प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता मिली । सस्नेह ...,
हटाएंमन को छूने वाली लघु-कथा। आजकल आदमी अपने जीवन की दौड़ में इतना व्यस्त है कि किसी चीज के लिए वक्त रह नहीं गया है। पहले बिना बहाने के मिल जाया करते थे और अब मिलने के लिए भी वक्त निकालना पड़ता है। महीनों तो इसी तालमेल में गुजर जाते हैं।
जवाब देंहटाएंउम्मीद है और भी ऐसी लघु-कथाएँ पढने को मिलती रहेंगी।
लघु-कथा पहली बार लिखी है आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से लेखन को सार्थकता मिली विकास जी । आगे भी लिखने का प्रयास रहेगा ।
हटाएंबिलकुल सही कहा आपने आज कल वक़्त बहुत कीमती हो गया हैं ,बहुत ही सुंदर लघु कहानी ,सादर
जवाब देंहटाएंस्नेहिल आभार कामिनी जी । आपकी सुन्दर और सार्थक प्रतिक्रिया से लेखन के सदैव सार्थकता मिलती है ।
हटाएंसही कहा मीना दी कि आजकल किसी पास वक्त नहीं है। बहुत कम शब्दों में आज की बहुत बड़ी कड़वी सच्चाई बयान कर दी आपने।
जवाब देंहटाएंआपकी अनमोल प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार ज्योति जी । सस्नेह....
हटाएंमार्मिक अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर।
स्नेहिल उपस्थिति के लिए हार्दिक आभार अनीता जी!
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (20-3-22) को "सैकत तीर शिकारा बांधूं"'(चर्चा अंक-4374)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
विशेष प्रस्तुति में मेरी रचनाओं का चयन हर्ष और गर्व का विषय है मेरे लिए.., बहुत बहुत आभार कामिनी जी!
जवाब देंहटाएंहृदय स्पर्शी लघुकथा।
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ कहती आज के भावात्मक संबंधों की टूटती डोर पर ।
सारगर्भित अनमोल प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सुधा जी । सस्नेह…
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