दोपहर का समय और दैनिक कामों में उलझी मैं कुछ सोच रही थी कि मोबाइल पर कोयल की कुहूक ने ध्यान अपनी ओर खींच लिया । जैसे ही कॉल अटैंड की उधर से बिना सम्बोधन के परिचित आवाज आई--'कब आओगी.. आठ बरस बीत गए । कल सपने में दिखी..कभी मिलने को मन नहीं करता ?'
उस लरजती आवाज से मन का कोई कोना भीग सा गया और भरे गले से मैने जवाब दिया--'आऊँगी ना..मन मेरा भी करता है । आप सब व्यस्त रहते हो..आऊँगी जल्दी ही.. वक्त निकाल कर ।'
'पक्का ना .., बहाना नहीं । मैं छुट्टी ले लूंगी एक-आध दिन की ।' इधर-उधर की कुशल-क्षेम के
बाद हम दोनों ने एक दूसरे से विदा ली ।
मोबाइल टेबल पर रखते हुए मैं सोच रही थी -- उम्र भर के नेह और आठ बरस के बिछोह के हिस्से में केवल एक-आध दिन । ---- 'आजकल वक्त बहुत कीमती हो गया है शायद ।'